पाठकों को बांधती ताजगी की ग़ज़लें
फूलचंद मानव
हिन्दी में अकविता, नई कविता या प्रयोगवादी कविता जब आम आदमी से दूर जाने लगी और लय छंद से मुक्त कविताओं की भरमार पुस्तकाकार पत्रिकाओं में नजर आने लगी, ऐसे दौर में गीत एक मात्र विधा थी जिसको सुनने, पढ़ने और गुनगुनाने के लिए पाठक या श्रोता लालायित रहते थे। हिन्दी की छन्द मुक्त कविता और नवगीत का प्रभाव भी जब हल्का पड़ने लगा तो 1970 के आसपास उर्दू ग़ज़ल का विकसित रूप हिन्दी में सामने आने लगा। दुष्यंत कुमार और उनके बाद के अनेक कवियों ने इस दिशा में अपने रंग दिखाए और समाज ने हिंदी गजल को अपनाना शुरू कर दिया। ’रंग नहीं उतरा है’ नंदी लाल का ग़ज़ल संग्रह पढ़कर मेरे पाठक और आलोचक को संतोष हो रहा है।
‘रंग नहीं उतरा है’ में नंदी लाल की 116 ग़ज़लें शामिल हैं। इन ग़ज़लों में परिपक्वता है जो गजलकार की पहचान बनाने में सफल रही है। काफिया, रदीफ, छंद शास्त्र या ग़ज़ल के व्याकरण को समझने वाले बहुत कम रचनाकार हिन्दी में सामने आए हैं। नकल करते हुए उन्होंने ग़ज़ल में हाथ तो आजमाए लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। नंदी लाल के पास पैनी नजर है और निजी नजरिया भी। ग़ज़ल की तकनीक इसकी बारीकियां इसकी बनावट और बुनावट गहरे में कहीं न कहीं प्रभाव डालती है। गजल मन को छू जाए, संवेदना के स्तर पर पाठक या श्रोता को प्रभािवत करे और मानीखेज यथार्थ को समाज के सामने ला पाए तभी वह सफल ग़ज़ल कहलाएगी। यहां ग़ज़लों का रंग नहीं उतरा है। इनकी गहराई में कहीं समाज है तो मनुष्य की संवेदना और उसकी हैसियत भी उभरकर सामने आ रही है। इन गजलों में एक देश, एक प्रांत, एक शहर या मात्र एक संवेदना नहीं, एक जंक्शन की तरह यहां बहुत कुछ आकर मिलता है और अपनी अपनी दिशा में गतिशील हो जाता है। यथाmdash;
‘और क्या क्या नहीं किया उसने
उम्र भर हौसला दिया उसने
दोष उसका नहीं था, मौसम का,
अश्क, प्यासा था पी लिया उसने।’
‘रंग नहीं उतरा है’ ग़ज़ल संग्रह की रचनाओं में नंदी लाल ने छोटी बहर या बड़ी बहर का इस्तेमाल किया है। और जी भरकर समाज के सौंदर्य को निखारकर सामने दिखाने की कोशिश की है। मनुष्य में भद्दापन या भदेस भला कहां नहीं है। लेकिन अपने अपने अंदर झांककर हरकोई उसे नितार या निखार सकता है। नंदी लाल की ग़ज़लों की ये खािसयत है कि उनमें एक लयात्मकता, एक झोंका, एक ताज़गी इस तरह से मिलती है कि पाठ से दूर कोई जा ही नहीं पाता। नंदी लाल के चार-पांच ग़ज़ल संग्रह 2017 और 2021 के बीच छप चुके हैं।
पुस्तक : रंग नहीं उतरा है रचनाकार : नन्दी लाल प्रकाशक : श्वेतवर्णा प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 116 मूल्य : रु. 150.