सतुआनी को जानिए
अरुण साथी
विविध संस्कृतियों का यह हमारा देश अनूठा है। यहां अलग-अलग पर्व और त्योहार अलग रंगत में होते हैं। सबकी अपनी खूबी होती है। ऐसा ही एक पर्व है सतुआनी। इसे सतुआनी या बिसुआ भी कहा जाता है। भारतीय संस्कृति का एक अनोखा पर्व बिसुआ, सतुआनी आज सत्तुआ खाने का पर्व है। हमारा देश भी अद्भुत है। सनातन परंपरा और भी अद्भुत। वैज्ञानिक समझ। वैज्ञानिक परंपरा। वैज्ञानिकता को धर्म से जोड़ने वाला देश। धर्म। सत्तू। एक समय में गांव से गरीबों को गाली दी जाती थी या औकात बताई जाती थी तो कहा जाता था, ‘सतुआ खइते दिन जाहौ आऊ फूटनी करे हे।’ पर देखिए, इसी सत्तू को पर्व से जोड़ा गया है। अमीर। गरीब। सबका पर्व। कहा जाता है कि सतुआनी के बाद अन्य पर्व खत्म हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है। कहावत है। नागपंचमी पसार, बिसुआ उसार। मतलब नागपंचमी से पर्व शुरू, बिसुआ के बाद खत्म।
बिसुआ का एक अपना महत्व भी है। कई जगह सत्तू से पूजा भी होती है। कई जगह सत्तू के साथ जौ भी चढ़ाया जाता है। जौ आज विश्व भर में प्रसिद्ध है। मिलेट में शामिल। आज जबकि फास्ट फूड या इंस्टेंट फूड का जमाना है, इसके नुकसान सभी बता रहे। कई तरह के हानिकारक रसायन इनमें मिला दिया जाता है। घटिया तेल। और खतरनाक रसायन अजीनोमोटो। कहते हैं यह बेहद खतरनाक है। खैर। आज गांव-गांव चाउमिन, एग रोल, मोमो बिक रहे। भीड़ भी है। वहीं सत्तू। एक पौष्टिक आहार। शुद्ध। प्रोटीन युक्त। स्वास्थ्यवर्धक। सुपाच्य। पुरानी परंपरा में सत्तू सिर्फ चने का नहीं होता था। मिलौना सत्तू सबसे अधिक उपयोगी माना जाता। कहा जाता था कि यह पेट ठंडा रखता है। और उपयोगकर्ता जानते है कि सत्तू के सेवन से प्यास अधिक लगती है। तो गर्मी में पानी अधिक पीना पड़ता है, जो फायदेमंद है।
सत्तू। सबसे इंस्टेंट फूड है। झटपट तैयार। कई तरह से उपयोग। घोट कर पीना। सान कर खाना। नमक। चीनी। मीठा। सबके साथ। कहा जाता है कि हमारे बुजुर्ग लोग खेत में गमछी पर ही सत्तू सान कर खा लेते थे। आज सत्तू का चलन बढ़ा है। कई नवाचार कंपनी भी है। मतलब यह कि भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म का जुड़ाव यहां भी प्रकृति से है। तो इन परंपराओं के मर्म को समझिए।
साभार : चौथा खंभा डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम