मोदी के तीसरे कार्यकाल में भू-राजनीतिक चुनौतियां
जहां कुछ लोग स्वाभाविक रूप से भारत की आर्थिक नीतियों के आलोचक बने रहेंगे, वहीं अब यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य है कि आर्थिक उदारीकरण के उद्भव और कभी ‘लाइसेंस, परमिट, कोटा राज’ के रूप में पहचान रखने वाले तंत्र के खात्मे के बाद भारत की विकास दर में तेजी से वृद्धि हुई है। दुनिया भी यह मानती है कि इस बदलाव के मुख्य वास्तुकार डॉ. मनमोहन सिंह थे, जिनके योगदान को देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद और अधिक मान्यता मिली। यह भी उल्लेखनीय है कि मुक्त अर्थव्यवस्था के लिए उठाए उनके कदमों ने नई मंज़िलें तय की हैं। दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में भारत को मान्यता प्राप्त है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान है कि मौजूदा साल में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.6 प्रतिशत रहेगी।
बहरहाल, यह बात ज़हन में ध्यान में रखनी चाहिए कि दुनिया में इसकी हैसियत और प्रभाव काफी हद तक आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र की प्रगति से निर्धारित होगा। इन अनिवार्यताओं के परिप्रेक्ष्य में, भारत के लिए अपने निकटतम पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। इससे लाल सागर और फारस की खाड़ी से लेकर पश्चिम में मलक्का जलडमरूमध्य तक फैले क्षेत्र में सुरक्षा और शांति सुनिश्चित होगी। अब यह व्यापक रूप से सर्वविदित है कि भारत को अपनी सीमाओं से परे जिन मुख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, वे चीन की विस्तारवादी महत्वाकांक्षाएं और नीतियों से पैदा हुई हैं।
भारत की लंबे समय से कोशिश रही है कि ईरान और अरब राज्यों सहित उस तेल संपन्न (फारस) खाड़ी क्षेत्र के साथ संबंध घनिष्ठ बने रहें, जहां पर लगभग 60 लाख भारतीय कामगार रोजी-रोटी कमा रहे हैं। एक तरफ भारत ने सऊदी अरब के साथ संबंध प्रगाढ़ किए हैं तो वहीं संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ अपने पहले से मजबूत संबंधों को और सुदृढ़ किया है। राष्ट्रपति बाइडेन द्वारा सऊदी अरब राजघराने को लेकर की गई असंयमित टिप्पणियों के बाद दोनों मुल्कों के बीच आई खटास को फिर से कामकाजी सौहार्द्र का रूप देने में भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शेख तहनून बिन ज़ायद अल नाहयान ने भी अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन और सउदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान के बीच वार्ता में भाग लिया। कहा जाता है कि इस बैठक के सूत्रधार भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल रहे। संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका और भारत के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक समझौते को अंतिम रूप देने के बाद जल्द ही इस पर मुहर लग गई। अब भारत के पास समूचे हिंद महासागरीय तटों पर, छह पड़ोसी अरब खाड़ी मुल्कों के साथ मिलकर, एक सकारात्मक और सहयोगात्मक भूमिका निभाने का मंच तैयार है।
भारत-अमेरिका संबंधों में तब काफी मजबूती आई जब अमेरिका ने फैसला किया कि हिंद महासागर में चीनी ताकत में हो रही वृद्धि को संतुलित करने में भारत उपयोगी हो सकता है और यह करने की हैसियत भी रखता है। दोस्ती के दिखावे के बावजूद, चीन की नीतियां भारतीय प्रभाव को सीमित करने और नियंत्रित करने से बंधी हुई हैं। चीन पाकिस्तान को मिसाइलें और परमाणु हथियार देकर उसकी सैन्य क्षमताओं को मजबूत करने का काम जारी रखे हुए है। अफगानिस्तान की तरफ लगती भारत की पश्चिमी सीमाओं पर वह पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ सहयोग बनाते हुए काम कर रहा है। ईरान के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए भारत के हालिया कदम, जिसमें सामरिक महत्व के चाबहार बंदरगाह का विकास कार्य भी शामिल है, यह मध्य एशिया तक भारत की आर्थिक एवं समुद्री पहुंच बनाने में मददगार तो होगा ही बल्कि इससे अफगानिस्तान तक भारत के पहुंच मार्गों में अड़चन डालने के पाकिस्तानी प्रयास भी बेकार जाएंगे।
एक समय ईरान के साथ भारत के बढ़ते संबंधों पर अमेरिका ने आपत्ति जताई थी, किंतु अब लगता है कि भारत द्वारा अफगानिस्तान और ईरान को जोड़ने वाले परिवहन गलियारा परियोजना को आगे बढ़ाने में वह भी राज़ी है। महत्वपूर्ण यह भी कि इसके पूरा होने पर रावलपिंडी में बैठे पाकिस्तानी सेना के कर्ता-धर्ताओं की अफगानिस्तान, ईरान और मध्य एशिया तक भारत के पहुंच मार्ग में बाधा डालने की गुंजाइश जाती रहेगी। भारत के लिए यह बंदरगाह अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) का एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार बन जाएगा, जो आगे भारत को समुद्री, रेल और सड़क मार्ग से मध्य एशिया, रूस और अंततः यूरोप से जोड़ेगा।
भारत-अमेरिका संबंधों पर साया डालने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है अमेरिकी मीडिया द्वारा भारत में लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के तथाकथित उल्लंघन की निरंतर आलोचना, जाहिर है इसके पीछे अमेरिकी प्रशासन की शह है। भारत उन चंद देशों में एक होगा जहां के नेतृत्व और लोगों ने राष्ट्रपति ट्रम्प को उनके भारत दौरे के दौरान दोस्ताना, किंतु बेबाक पाया। भारत को भरोसा है कि दोनों देशों के बीच संबंध बढ़ेगा, चाहे आगामी राष्ट्रपति चुनाव में जीत कमला हैरिस की हो या ट्रम्प की।
तथापि, अमेरिका और भारत के बीच नौवहनीय सुरक्षा संबंधों को मजबूत करने के साथ दोनों देशों के बीच सहयोग लगातार बढ़ रहा है। गाजा पर इस्राइल के कब्जे और समुद्री डकैती प्रकरणों से हिंद महासागर के गहरे समुद्री भाग में बने तनाव और लूटमार की वारदातों के बाद यह एक महत्वपूर्ण घटना है। मलक्का जलडमरूमध्य से लेकर फारस की खाड़ी तक के इलाके समेत समूचे हिंद महासागरीय क्षेत्र में चीन की बढ़ती दबंगता के आलोक में अमेरिका भारत को सामरिक रूप से महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में लेना जारी रखे हुए है।
चीन और पाकिस्तान के साथ अपनी सीमाओं पर भारत की समस्याएं और तनाव आगे भी बने रहेंगे। लगभग दिवालिया होने के बावजूद, पाकिस्तान भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए बज़िद लगता है। भारत के समक्ष एक तरफ शरीफ बंधु है जिन्होंने अपने नागरिक प्रतिष्ठानों और पाकिस्तान को दिवालियापन की कगार पर पहुंचा दिया है तो दूसरी तरफ वह पाकिस्तानी सेना प्रमुख (जनरल असीम मुनीर) हैं जिनका स्वभाव उग्र है और देश की राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों के निर्धारण में काफी प्रभाव है। जनरल मुनीर भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने पर आमादा हैं, खासकर जम्मू और कश्मीर में। भारत को जनरल मुनीर द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का कूटनीतिक और सैन्य, दोनों तरह से, जवाब देने की जरूरत है।
भारत को जनरल असीम मुनीर के मंसूबों पर कड़ी नज़र रखने की ज़रूरत है। अफ़गानिस्तान के साथ लगती अपनी सीमाओं पर जारी तनाव से निपटने में पाकिस्तान बेतरह फंसा हुआ है। इस बीच, भारत और ईरान, दोनों के अफगानिस्तान के साथ रचनात्मक संबंध बने हुए हैं, जिसमें भारत का ध्यान मुख्य रूप से आर्थिक सहयोग पर केंद्रित है, जबकि ठीक इसी वक्त पाकिस्तान को शामिल किए बिना, भारत अपने समुद्री पड़ोसियों के साथ ‘पर्दे के पीछे’ संवाद जारी रखे हुए है, जिससे पाकिस्तान के पास उसे बैठकों में न बुलाने को लेकर भारत को दुष्प्रचार का निशाना बनाने का मौका नहीं बचता। इसके साथ ही, अगर पाकिस्तान भारत में आतंकवाद को प्रायोजित करना जारी रखता है, तो भारत को उचित निवारण कार्रवाई करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
लेखक पूर्व राजनियक हैं।