तूफानी थपेड़ों से उपजे सुकोमल अहसास
सुशील ‘हसरत’ नरेलवी
समीक्ष्य कृति ‘प्रलय का प्यार’ कहानीकार महेंद्र सिंह ‘सागर’ की सातवीं पुस्तक है। इससे पहले उनके तीन काव्य संग्रह, एक कहानी संग्रह, एक उपन्यास ‘अनबुझी प्यास’ और एक नाटक संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।
‘प्रलय का प्यार’ में ग्यारह कहानियों का समावेश है, जिनके कथानक अलग-अलग विषयों को लेकर बुने गये हैं। शीर्षक कहानी ‘प्रलय का प्यार’ सामाजिक बंधनों की बेड़ियां तोड़ती हैं, जो कि रिश्तों पर इंसानियत के धर्म को सार्थक करते हुए हालात के मुताबिक चलने का संदेश देती है। एक तरफ़ नायिका अवनि अपने पति को, दूसरी ओर आकाश अपने पूरे परिवार को सैलाब में खो बैठते हैं। विभिन्न परिस्थितियों से जूझते हुए अन्त में वे दो दिशाएं एक-दूसरे की पूरक बनती हैं। अतिरिक्त संबंधों की बुनियाद पर खड़ी कहानी ‘निर्णय’ एकतरफ़ा फ़ैसले की परिणति को प्राप्त होकर नायक राकेश के चरित्र, मनोवृत्ति एवं विवेक पर प्रश्नचिन्ह छोड़ जाती है। जैसे को तैसा कहावत को चरितार्थ करती है कहानी ‘जि़न्दगी का गणित’। मनोविनोद के माध्यम से एक सार्थक एवं सकारात्मक सोच का संदेश देती है कहानी ‘चांद पर चिंता’। पति-पत्नी के मध्य अडिग विश्वास एवं प्रगाढ़ प्यार, मान-मनुहार के चलते जवान पलों की एक अधूरी इच्छा को पूर्णता प्रदान करने की कशमकश और जद्दोजहद का चित्रण है कहानी ‘अधूरा अध्याय। कुण्ठाग्रसित एवं स्वार्थपरता का बोध कराती हैं कहानियां ‘वारिस’ एवं ‘अतिथि देवो भव:’। समर्पण एवं स्वार्थ-नि:स्वार्थ के तराज़ू में झूलती कहानी ‘दो रात का पति’ त्याग, आवश्यकतानुसार एवं समय के अनुरूप आचरण का संदेश देती है। शिक्षाप्रद एवं संदेशात्मक कहानी ‘भूत का भय’ भूत के मिथक का पटाक्षेप करती प्रतीत होती है। कहानी ‘बंदूक वाला लड़का’ प्रेरक प्रसंग के रूप में कथ्य कहानी को प्रेरणात्मक धरातल पर छोड़ देता है, जहां से यह एक भावनात्मक यात्रा पर अग्रसर होते हुए सार्थक संदेश के निष्पादन पर समाप्त होती है।
‘प्रलय का प्यार’ का कथानक पारिवारिक धरातल पर रिश्तों में समर्पण, संवेदना, सामंजस्य व नैतिकता को बल देते हुए आदर्शवाद की ओर उन्मुख रहता है। कुछेक कहानियों में शिल्प बांधता है तो शैली साधारण है।
पुस्तक : प्रलय का प्यार लेखक : महेन्द्र सिंह ‘सागर’ प्रकाशक : साहित्यसागर प्रकाशन, जयपुर पृष्ठ : 135 मूल्य : रु. 250.