For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

माले मुफ्त दिले बेरहम, कहीं खुशी कहीं गम

07:59 AM Jul 31, 2024 IST
माले मुफ्त दिले बेरहम  कहीं खुशी कहीं गम
Advertisement

डॉ. हेमंत कुमार पारीक

Advertisement

आज तक कभी ऐसा हुआ है कि बजट देखकर विरोधी खुश हुए हों। कुछ न कुछ नुक्स तो निकाल ही देते हैं। स्कूल में बाप-बेटे और खच्चर की कहानी पढ़ी थी। अंग्रेजी शीर्षक था, यू केन नाॅट प्लीज एवरी वन। कुछ भी कहो अंग्रेजी भाषा प्रभावित करती है। कुछ करो न करो रैपिडेक्स से अंग्रेजी की दो-चार लाइन रट लो बस। काम चल जाएगा। कभी किसी से छुटकारा पाना हो तो अंग्रेजी की उक्त फ्रेज ब्रह्मास्त्र का काम करती है। यह फ्रेज सारगर्भित है। बजट की नुक्ताचीनी के समय सटीक बैठती है। आजकल टीवी की बहसों और संसद में पुराने कवियों और शायरों की कविता और शे’र पढ़कर जनता में अपनी साख जमायी जाती है। लेकिन देश के बजट की बात है। बजट सुनते ही सब खुशी से उछल पड़ें, यह नहीं हो सकता। सबकी अपनी-अपनी ढपली होती है और अपना-अपना राग। किसी के मुंह से आह निकलती है तो किसी के मुंह से वाह।
फिलवक्त मानसून सेशन चल रहा है। पता नहीं इस बेईमान मौसम में बजट क्यों पेश आया है? शायद इसलिए कि आह और वाह भीगते रहें। साइंस के हिसाब से बारिश में स्वरों की तीव्रता धीमे पड़ जाती है। जनता से दूर वालों को न तो जनता की आह सुनायी देती और न वाह। सो भाई साहब ने रट ली अंग्रेजी की उक्त फ्रेज। बजट के बीच आह और वाह में बोल दिए। बहरहाल, हम तो मुफ्तखोरी वाली जगह ढ़ूंढ़ रहे थे। मुफ्त में लंगोट ही मिल जाए तो क्या बुरा? बजट में यह मुख्य विषय होता है। बजट की पूर्व संध्या पर कयास लगाए जाते हैं फ्री के माल के। पता नहीं कल आंसू निकलें तो खुशी के निकलें। हमें तो जैमिनी प्रॉडक्शन वाले दो बच्चे तुरही लिए खड़े दिखे। एक पूरब की तरफ मुंह किए था तो दूसरा पश्चिम की तरफ। अब तुरही शहनाई तो है नहीं। तुरही से एक ही आवाज आती है तू-तू और शहनाई लय और ताल में बजती है।
सो फिलहाल ऑफर चल रहे हैं। मानसूनी धमाका! एक तरफ बजट की गा रहे हैं भैया और दूसरी तरफ ऑफर दिए जा रहे हैं। मगर बजट में तो तेरा तुझको अर्पण वाली बात होती है। जैसे कि स्कूल में गीली स्लेट पट्टी को सुखाने के लिए गाते थे, नदी का पानी नदी में जाए, मेरी पट्टी सूख जाए। सो बाट बूंट के हाथ झाड़ लिए। खाली हाथ दिख रहे हैं। कुछ मुफ्तखोर खुश हैं तो कुछ गम में डूबे हैं। मगर सरकार कह रही है, वी कांट प्लीज एवरी वन, जितना था सब झाड़ दिया। अपने-अपने भाग्य की बात है कि कोई हराभरा है तो कोई सूखा सट्ट। जिन्हें मिला वे लेट गए और जिन्हें नहीं मिला वे मूंछों पर ताव दे रहे हैं।

Advertisement
Advertisement
Advertisement