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अखंड सुहाग की कामना का त्योहार गणगौर

10:55 AM Apr 08, 2024 IST
अखंड सुहाग की कामना का त्योहार गणगौर
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प्रभा पारीक
राजस्थान अपने प्राकृतिक सौन्दर्य एवं समृद्ध इतिहास की वजह से सम्पूर्ण विश्व में आकर्षण का केन्द्र है। राजस्थान की रेत के कण-कण में बसा है सौन्दर्य और विविधता और रंगों का सुन्दर समायोजन। सांस्कृतिक धरोहरों का अतुल्य भंडार है, जहां पर हर अवसर हर त्योहारों पर गाये जाने वाले गीत, परिधान और रीति-रिवाज भिन्नता लिये होते हैं।

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गणगौर का त्योहार

गणगौर का त्योहार राजस्थान में विशेष हर्षोल्लास से मनाया जाता है। गणगौर की सवारी राजसी गौरव के साथ शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए निकलती है। वैसे राज्य के हर शहर में गणगौर की शाही सवारी अपने-अपने विशेष अंदाज से निकाली जाती है। जिनमें हाथी, घोड़े, ऊंट, बैल, सभी रंगीन सजे-धजे अपनी मस्त चाल में इस आयोजन की शोभा बढ़ाते नजर आते हैं। वहीं रंग-बिरंगे परिधानों में सजी महिलाएं, पुरुष, बालक-बलिकाएं इस शोभायात्रा में एक नया जोश भर देते हैं। शाही वाहन पर सवार ईसर, गणगौर शिव और पार्वती का स्वरूप लिये पात्र साज-सज्जा के साथ होते हैं। वहीं बैंडबाजे तुरही, सारंगी, ढोल, नगाड़े, बाजों के साथ इस सवारी को प्रांतीय व विदेशी लोगों की भीड़ देखने आती हैं।

आकर्षण का केन्द्र

उल्लास व आस्था का त्योहार गणगौर में गीत गाती स्त्रियों का समूह मुख्य आकर्षण का केन्द्र होती हैं। यह त्योहार चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से शुरू होकर चैत्र शुक्ल तीज तक लगातार चलता है। तीज के अगले दिन मुख्य रूप से वृहद रूप में पड़ने वाला यह त्योहार ‘गणगौर’ समस्त राजस्थान की शान है। उमंगों से सराबोर गणगाैर का त्योहार सुहागिनों, युवतियों और नवविवाहिताओं के लिये विशेष महत्व रखता है।

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गणगौर का अर्थ

गणगौर अर्थात‌् ‘गण’ शिव, गौर अर्थात‌् ‘गौरा’ पार्वती। महिलाओं पर केन्द्रित यह भावनाओं का पर्व पूजा-अर्चना के साथ सोलह-शृंगार कर शिव-पार्वती को मनाने का अवसर है। सदा सुहागन रहने व परिवार में खुशहाली की कामना के साथ स्त्रियां सोलह दिनों तक गणगौर का पूजन करती हैं।
माना जाता है कि इन दिनों भगवान शिव अपने ससुराल आते हैं। होलिका दहन के अगले दिन धुलेटी के रंगों के साथ सोलह दिन की पूजा आरंभ होती है। ठीक 8वें दिन ईसरजी मां पार्वती के साथ अपने ससुराल आते हैं। जहां उनकी पूजा की जाती है। उस दिन घर की लड़कियां कुम्हार के घर से मिट्टी के बर्तन, पार्वती व शिव (इसर गणगौर, कानीराम, मालन, गोरा बाई) की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लाती हैं। इस मिट्टी से वे ईसर व गणगौर की छोटी-छोटी मूर्तियां कानीराम ईसर जी के भाई, गोरा बाई कानीराम जी की बहन मालण आदि बनाकर सुन्दर वस्त्र पहनाकर व तरह-तरह के आभूषणों से सजाती हैं। थाली में पानी, दही, सुपारी, हल्दी, चांदी का सिक्का, कौडी, कंकु, मेहंदी, फूल दूब आदि रखकर पूजा करती हैं। आठ दिनों के लिए वहीं शिवजी का ससुराल होता हैं और विदा करते समय जहां विसर्जित किया जाता है वह पार्वती का ससुराल होता है। सोलह दिनों के बाद गणगौर को किसी तालाब सरोवर, कुएं आदि में विसर्जित करते हुए प्रतीकात्मक रूप से पुत्री की तरह विदा किया जाता है। साथ में सोलह दिनों तक की गई पूजा का पूरा सामान वस्त्र, रुपये, गहने आदि दिया जाता है।

त्योहार का मुख्य आकर्षण

सुखी वैवाहिक जीवन के लिए ‘गोर गोर गणपति इसर पूजै पारवती’ गीत गाये जाते हैं। पचरंगी ओढ़नी व साड़ी इस त्योहार का मुख्य आर्कषण हैं। इस त्योहार पर स्त्रियां विशेष तौर पर हाथ-पांव में मेहंदी रचाती हैं। सोलह-शृंगार के साथ लहरिया, मोठड़ा, पचरंगिया जैसी साडि़यां, लहंगा, ओढ़नी आदि पहनती हैं। मेहंदी रचे हाथों से गणगौर पूजती हैं। गणगौर का उत्सव घेवर (एक तरह का पकवान) के बिना अधूरा माना जाता है। खीर, चूरमा, पूड़ी, मठरी से ईसर गणगौर को जिमाया जाता है। बाजारों में भी तरह-तरह की सजी-धजी ईसर गणगौर, पचरंगी साडि़यां, मोठड़ा, लहरिया, मेहंदी और घेवर की बहार देखते ही बनती हैं।

अखंड सुहाग की कामना

होलिका दहन के दूसरे दिन सुहागिनें स्त्रियां व कुंआरी कन्याएं सिर पर पानी का कलश रखकर, दूब, फल एकत्रित करने निकलती हैं। वे गीत गाती हुईं जिधर से भी निकलती हैं उनका शृंगार सबको आकर्षित करता है। उस समय के गीतों में माली से फूलबाड़ी खोलने की प्रार्थना करती हैं कि हम शिव-पार्वती की आराधना के लिये पुष्प दूब लेने आई हैं। गणगौर के गीतों में बाबुल का प्यार, भाई का निश्छल प्रेम, पति प्रेम, ननद संग छेड़छाड़ आदि का सुन्दर चित्रण देखने को मिलता है। नवविवाहिता पीहर में अपनी सखी-सहेलियों के साथ सोलह दिन की गणगौर पूजने आती हैं। पितृगृह में वे सखी-सहेली, भाभी, बहनों के साथ सज-संवर कर गणगौर की पूजा करके अखंड सुहाग की कामना (शंकर-पार्वती) ईसर गणगौर से करती हैं। अन्न जल ग्रहण किये बिना ये अपने इष्ट की पूजा करने निकल पड़ती हैं।

गणगौर पूजन की शुरुआत

होली दहन के अगले दिन धुलेंडी के दिन सुबह होली की भस्म से सोलह अथवा आठ पिंडियां बनाकर पूजा आरंम्भ की जाती है। गणगौर पूजन का स्थान समूह में किसी एक स्थान अथवा गृह में निश्चित किया जाता है। गणगौर के अनेक मधुर गीत हैं जो पूजन के समय गाये जाते हैं। इस दिनों शिव-पार्वती के साथ गणेश, पीपल पूजने, सूर्य देव काे मनाने के भी विधान हैं। महिलाओं के अलावा कुंवारी कन्याओं को भी यह व्रत इच्छित वर के लिये करवाया जाता है।

महत्व

यह त्योहार घर-परिवार की विवाहित बहन-बेटियों का त्योहार माना जाता है। प्राचीन काल में पार्वती जी ने भगवान शिव को पाने के लिये जिस तरह तपस्या की थी उसी तरह यह भी इच्छित वर सुहाग व परिवार में समृद्धि के लिये की गयी उपासना है। इन सोलह दिनों में गणगौर को चांदी के छल्ले से पानी पिलाने का रिवाज है। गणगौर पूजने वाली कुंआरी कन्याएं विवाह के बाद गणगौर का उद‍्यापन करती हैं।

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