For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

गंगा-जमुनी विरासत पर आफत

06:29 AM Jul 26, 2024 IST
गंगा जमुनी विरासत पर आफत
Advertisement

शमीम शर्मा

Advertisement

अब्दुल के बागों के बेलपत्र सावन में शिवलिंग पूजा रूप में मंदिरों में चढ़ रहे हैं। जिन्होंने सावन में उपवास रखे हैं, वे भी रोजाना इन आम-जामुन फलों का सेवन कर रहे हैं। क्या यह मुमकिन है कि एक-एक फल अपने मालिक का धर्म उजागर करे। रेहड़ी और दुकानों पर तो फिर भी नाम लिखे जा सकते हैं। पर नाम भी तो धोखा देते हैं। ढाबों में बन रहे राजमा-चावल का एक-एक दाना कैसे बतायेगा कि वह हिंदू या मुसलमान। सोचो, कैसा लगेगा अगर तंदूरी-परांठे सुलगती आग से निकल कर यह बताने लगें कि वे हिंदू हैं या मुसलमान। बात मुद्दे की नहीं, संकीर्ण सोच की है। ये दिन भी आयेंगे, यह सोचा न था। राजनीति आज के दिन सिर्फ धर्म और जाति की नोक पर चढ़ी हुई है और ये बातें नोक की तरह सबको चुभ रही हैं। एक सामाजिक क्रान्ति की सख्त जरूरत है। कल एक ट्रक पीछे लिखा हुआ नारा बेहद सटीक प्रतीत हो रहा है—
शेर टंग गये फांसी पर और गीदड़ बन गये राजा,
एक क्रान्ति की जरूरत है, मेरे भगतसिंह वापिस आजा।
बात सिर्फ गीदड़ और शेरों की नहीं है। बात इससे आगे की है। शेर कोई भी हो और गीदड़ कोई भी हो पर साथ मिलजुल कर तो रहें। जंगल में भी तो वे एकसाथ रह ही रहे हैं। तो यहां अनहोनी क्यूं हो रही है? यह साथ ही हमारे भविष्य की विचारधारा, पारस्परिक सौहार्द और रिश्तों की डोर की मजबूती को तय करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
जहां देखो वहीं स्वयं को बेहतर बताने की होड़ लगी हुई है। सब पॉवर गेम में बावले हुए जा रहे हैं। हजारों साल पूर्व कर्म के आधार पर बनी जाति प्रथा का वीभत्स रूप अब देखने को मिल रहा है। आज के दिन यह कोई नहीं कह सकता कि ऊंची-नीची जातियां भी होती हैं। अब तो सब एक-दूसरे को नीचा दिखाने पर उतारू हैं। धर्म की ओट में ओछी नीतियां फन फैला रही हैं। ये फन कुचले जाने जरूरी हैं।
000
एक बार की बात है अक जाट नैं राजपूत तै बूज्झया अकथम म्हारै तैं घणे ताकतवर होण का दावा किस बात पै करा हो? उनकी बात न्यूं होई :-
जाट- बता तू क्यूंकर बड्डा?
राजपूत- मैं ठाकुर, राजपूत हूं।
जाट- मैं चौधरी अर आंडी जाट हूं।
राजपूत- मैं छत्री (क्षत्रिय)।
जाट- तूं छत्री तो मैं हूं तम्बू।
राजपूत- यो तम्बू के होवै भाई?
जाट- यो सै तेरी छत्री का फूफ्फा।

Advertisement
Advertisement
Advertisement