ज़िंदगी के भावी जोखिम
इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस यानी आईईपी की हालिया रिपोर्ट गंभीर चिंता का विषय है। रिपोर्ट में व्यापक अध्ययन के बाद कहा गया है कि पांचवें दशक तक दुनिया के 2.8 अरब लोगों को पारिस्थितिकी खतरे वाले क्षेत्रों में रहना पड़ेगा। यद्यपि मौजूदा समय में भी 1.8 अरब लोग गंभीर पारिस्थितिकी खतरों से जूझ रहे हैं। दरअसल, आईईपी ने 221 देशों और 3594 उप-राष्ट्रीय क्षेत्रों में विभाजित स्वतंत्र क्षेत्रों को अपने अध्ययन में शामिल किया है, जहां दुनिया की 99.99 प्रतिशत आबादी निवास करती है। इसमें से करीब 66 देशों को कम से कम एक गंभीर पारिस्थितिकी खतरे का फिलहाल सामना करना पड़ रहा है। इसमें तीन देश हॉटस्पॉट बनने से उनका अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया। दरअसल, जल, वायु, ध्वनि व मिट्टी प्रदूषण के अलावा खाद्य आपूर्ति शृंखला का बाधित होना, जनसंख्या वृद्धि तथा प्रतिकूल कुदरती परिस्थितियों के कारण होने वाला विस्थापन आदि पारिस्थितिकी संकट के मूल में हैं। पर्यावरण की दिन-प्रतिदिन खराब होती स्थिति ने इस संकट को बढ़ाया ही है। इसी के चलते आशंका व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2050 तक 2.8 अरब से अधिक लोग संकटग्रस्त इलाकों में रहने को बाध्य होंगे। मौजूदा हालात इतने खराब होते जा रहे हैं कि गंभीर संकट से जूझते देशों की संख्या बीते साल तीन से बढ़कर तीस हो गई है। इतना ही नहीं, गंभीर परिस्थितियों के चलते तीन देश पारिस्थितिकी संकट के चलते हॉटस्पॉट बनकर उभरे हैं और उनका अस्तित्व ही संकट में पड़ता नजर आ रहा है। इन तीन देशों में हमारा पड़ोसी म्यांमार व नाइजर तथा इथियोपिया सम्मिलित हैं। इन देशों में आंतरिक अशांति व अकुशल शासनतंत्र के चलते पर्यावरणीय चिंताएं हाशिये पर चली जाती हैं, जिसके चलते मानवीय त्रासदी लगातार भयावह होती जा रही है। मौसम की तल्खी के चलते जहां फसलों के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ा है, वहीं बाढ़ व भूस्खलन जैसी आपदाओं ने संकट को और गहरा किया है। गरीबी व आंतरिक अशांति ने इस संकट को अधिक बढ़ाया है।
दरअसल, ग्लोबल वार्मिंग से उपजे गहरे संकट ने हमारे दरवाजे पर दस्तक दे दी है। कमोबेश, भारत भी ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों से अछूता नहीं है। पिछले दिनों में अतिवृष्टि, बाढ़ व सूखे के मंजर भारत में नजर आए हैं। यही वजह है कि असामान्य बारिश व सूखे की मार के चलते देश के कई राज्य खाद्य असुरक्षा की श्रेणी में आ गये हैं। वैसे तो यह पूरे दक्षिण एशिया का संकट है, जो तीसरा बड़ी आबादी वाला क्षेत्र भी है। अनुमान है कि यहां 17.5 करोड़ आबादी भारी खाद्य असुरक्षा वाले क्षेत्रों में रहती है। आशंका व्यक्त की जा रही है कि सरकारों व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने यदि समय रहते इस दिशा में प्रयास नहीं किये तो वर्ष 2050 तक इन क्षेत्रों की खाद्य असुरक्षा वाली आबादी की संख्या इक्कीस करोड़ से अधिक हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि देश में खाद्य असुरक्षा वाले इलाकों में पूर्वी और दक्षिण पूर्वी उत्तर प्रदेश का कुछ भाग, बिहार, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के कुछ इलाके शामिल हैं। साथ ही पश्चिमी भारत के कुछ इलाकों में संकट बना रह सकता है। पर्यावरण मामलों के जानकार बता रहे हैं कि इस संकट के मूल में अनियंत्रित शहरीकरण भी है। दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के तमाम इलाके जिस तरह प्रदूषण की चपेट में हैं, उससे इस संकट का अहसास किया जा सकता है। विडंबना देखिये कि हमारी दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी है। दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित बीस शहरों में नौ भारत के हैं। दरअसल, ये वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, पेयजल संकट व अंधाधुंध शहरीकरण की ही देन है। इससे हमारे पारिस्थितिकीय संतुलन पर भारी प्रतिकूल असर पड़ा है। इसी तरह पानी से जुड़ा संकट भी लगातार गहरा होता जा रहा है। जीवनदायिनी नदियां जहरीली होती जा रही हैं। कमोबेश यह संकट पूरी दुनिया का है। अभी भी विश्व में दो अरब लोग ऐसे इलाकों में रहते हैं जहां स्वच्छ व सुरक्षित पेयजल आपूर्ति अभी स्वप्न जैसा है। खासकर पेयजल के मामले में मध्यपूर्व तथा उत्तरी अफ्रीका में यह संकट बड़ा है।