मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

पुण्यकर्म का फल

05:50 AM Nov 28, 2024 IST

चीन के जिन साम्राज्य के गोंग परिवार में फाह्यान का जन्म हुआ था। वह बौद्ध भिक्षु, यात्री, लेखक एवं अनुवादक थे। एक दिन विद्वान संत फाह्यान किसानों के साथ चावल की खेती कर रहे थे। तभी अकाल पीड़ितों का एक दल चावल की चोरी करने आया। उन्हें देखकर सभी भिक्षु भाग गए। फाह्यान ने चोरों से कहा कि अगर तुम्हें चावल चाहिए तो तुम ख़ुशी-ख़ुशी ले सकते हो पर उससे पहले यह जान लो कि तुम आज भूखे और इस स्थिति में क्यों हो। पिछले जन्म में तुमने कोई पुण्य कर्म और दान नहीं किए हैं, इसलिए तुम आज यहां हो। अभी भी तुम किसी दूसरे के हिस्से का चावल लेना चाहते हो तो तुम सदा आशाहीन ही रह जाओगे। मैं तुम्हारे भविष्य व अगले जन्म को लेकर चिंतित हूं। ऐसा कहकर वे बौद्ध मंदिर की ओर लौट गए। चोरों के जीवन पर इस बात का गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने फिर चोरी नहीं की। फाह्यान के इस व्यवहार को भिक्षुओं ने ख़ूब सराहा। वे 399 ईसवी से लेकर 412 ईसवी तक भारत, श्रीलंका और नेपाल की यात्रा पर रहे। दस साल तक भारत में रहकर फाह्यान ने भारत की सभ्यता और संस्कृति पर नजर रखी और उसे यात्रा वृत्तांत में उद्धृत किया।

Advertisement

प्रस्तुति : मुग्धा पांडे

Advertisement
Advertisement