हार की सीढ़ियों से जीत की मंज़िल तक
रेनू सैनी
किसी भी कार्य में जीत व्यक्ति के तन-मन को जोश और हौसले से भर देती है। क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति से मिले हैं जो हारना चाहता हो। शायद नहीं मिले होंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोगों के दिमाग में एक छवि बनी हुई है कि जो हार जाता है वह कमज़ोर, पराजित, नौसिखिया होता है। पर क्या वास्तव में ऐसा है? क्या हारने वाला व्यक्ति सचमुच ऐसा होता है? नहीं, बिल्कुल नहीं। अगर ऐसा होता तो कई बार असफल होने वाले थॉमस अल्वा एडीसन बल्ब का आविष्कार न कर पाते। उम्र के अधिकतर मौकों पर हारने वाले अब्राहम लिंकन अमेरिका के सबसे सफल राष्ट्रपति के रूप में अमर न हो जाते। हार है तभी तो जीत है। यदि केवल जीत का ही विकल्प होता तो हार जैसे शब्द की उत्पत्ति ही न होती। हर दृष्टिकोण के दो पहलू होते हैं। एक तरफ जहां हार से लोग स्वयं को विवश और लाचार महसूस करते हैं, वहीं कई बार हार व्यक्ति के लिए नए अवसरों को उत्पन्न करती है।
कभी-कभी हारने पर व्यक्ति वह सब कुछ प्राप्त कर लेता है जो वह जीत कर भी हासिल नहीं कर सकता। इसलिए जीवन में बचपन से ही बच्चों को खेल-खेल में जान-बूझकर हारने के बारे में बताना बहुत जरूरी है। ऐसा करने से बच्चे प्रारंभ से ही हार को सामान्य तरह से लेना सीख जाएंगे। एक जापानी वाक्यांश ‘माकेरु गा काची’ यही बताता है। इसका हिन्दी में अनुवाद है ‘हारना जीतना है।’ ‘माकेरु गा काची’ यह विचार व्यक्त करता है कि, ‘हार को न केवल हृदय से स्वीकार करो अपितु कभी-कभी किसी विशेष स्थिति में हार मान लेने को भी जीवन से जोड़ लो। जब व्यक्ति जान-बूझकर हारता है तो वह जीवन में अच्छे मित्रों को प्राप्त कर लेता है और अधिक तरक्की करता है।
‘माकेरु गा काची’ की अवधारणा हमें यह बताती है कि कई बार हम अपने अहं के कारण सही मायनों में जीत और हार की व्याख्या को समझने में भूल कर जाते हैं। इसलिए सदैव जीत को अपने व्यक्तित्व का प्रश्न नहीं बनाना चाहिए। हारने के बाद जीवन में आश्चर्यजनक तरीके से वह सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है जो जीत नहीं दे सकती।
जीत यदि मंजिल है तो हार सीढ़ियां हैं। मंज़िल तक पहुंचने की कोई लिफ्ट नहीं होती। वहां पर एक-एक सीढ़ी के पड़ाव को पार करना ही पड़ता है। लिफ्ट वह सबक कभी नहीं सिखा सकती जो एक-एक सीढ़ी पार करने के बाद व्यक्ति सीखता है। एक-एक सीढ़ी ऊपर चढ़ने के बाद ही जीत के सही मायने समझ में आते हैं। यदि कोई व्यक्ति हार जाता है तो इसका अर्थ होता है कि उसने मंज़िल पार करने के लिए कदम बढ़ाने आरंभ कर दिए हैं। मगर कोई व्यक्ति शुरुआत ही नहीं करता तो वह ‘माकेरु गा काची’ को कभी समझ ही नहीं सकता।
सीधी-सी बात है जो आगे बढ़ेगा वही हारेगा और वही एक दिन जीतेगा भी। इसलिए हारना ही जीतना है। हार ऐसे सबक सिखाती है जो सीधे जीत कर भी नहीं मिल पाते। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति के अपने जीवन में हार का भी मुस्करा कर स्वागत करना चाहिए। हार बताती है कि व्यक्ति जीवंत है, उसके अंदर कुछ कर गुजरने की अग्नि धधक रही है। यही अग्नि प्रज्वलित होकर कीर्ति रचती है।
सम्राट अशोक को पूरी दुनिया जानती है। उन्हें आज पूरी दुनिया बौद्ध धर्म के प्रचारक के रूप में जानती है। उनका अहिंसा की स्थापना करने में महत्वपूर्ण रोल था। लेकिन वे सदैव ऐसे नहीं थे। पहले उनका दूर-दूर तक अहिंसा से कोई लेना-देना नहीं था। वे एक महान योद्धा थे। उन्होंने कलिंग का युद्ध लड़ा। ऐसा माना जाता है कि यह एक बहुत भयानक युद्ध था। इस युद्ध में असंख्य लोग मारे गए थे। जब अशोक विजय के दंभ में चूर अपनी माता को यह संदेश देने पहुंचे तो उनकी माता ने उन्हें झकझोरते हुए कहा, ‘तुमने कभी सोचा है कि इस जीत से तुम्हें क्या प्राप्त हुआ है? कुछ नहीं। इस जीत में तुमने मानवता को खो दिया है। असंख्य महिलाओं ने अपने पति, पिता और पुत्र को खो दिया है। तुम्हें उनकी बद्दुआएं लगी हैं। युद्ध जीतना जीत नहीं है।
मां ने कहा—वास्तविकता तो लोगों के मन को जीतना है, लोगों को जीतना है। यदि तुम सचमुच जीतना चाहते हो तो पहले हारना सीखो। जान-बूझकर हारो ताकि लोग तुम्हारे करीब आएं, तुम्हें अपनाएं। यह बात अशोक के अंतर्मन को छू गई। बस उसी दिन से उन्होंने हिंसा को त्याग दिया और निर्णय किया कि मैं अब कभी युद्ध नहीं करूंगा? उन्होंने ‘माकेरु गा काची’ की अवधारणा को लेकर चलना आरंभ कर दिया और इसी अवधारणा ने उन्हें आज अमर बना दिया।
वर्तमान समय में ‘माकेरु गा काची’ की अवधारणा को व्यक्ति हर स्तर पर कर सकता है। इसे संबंधों, शिक्षा, रोजगार हर स्तर पर प्रयोग किया जा सकता है। कुछ समय बाद आप भी इस बात को समझ जाएंगे कि वास्तव में हारना ही जीतना है। केवल एक बार ऐसा करके देखें, आप जीवन के विशाल फलक को देख पाएंगे।