मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

हकीकत से लेकर अफवाहों तक बम ही बम

07:07 AM Oct 26, 2024 IST

सहीराम

Advertisement

बम ही बम हैं जी! नहीं जी नहीं, सावन का महीना नहीं है। सावन के अंधे को सब कुछ हरा ही हरा दिखाई देने के अलावा बम ही बम सुनाई भी देता है- माने बम भोले। लेकिन यह सावन का महीना नहीं है। फिर भी बम ही बम हैं। हकीकत में भी हैं, अफवाहों में भी हैं। हकीकत में यूक्रेन में बरस रहे हैं, गाजा में और लेबनान में बरस रहे हैं। कोई रोकने वाला नहीं है। भाजपा वाले कहते हैं कि मोदीजी ने यूक्रेन-रूस युद्ध रुकवा दिया था। लेकिन वह अपने छात्रों को निकलवाने के लिए रुकवाया था। वरना जी, न रूस किसी की सुनता है, न यूक्रेन। रूस से कोई कहता भी नहीं, क्योंकि उन्हें लगता है कि पुतिन जैसे आदमी से क्या कहें। उन्हें कहने का अर्थ होगा, अपने को छोटा करना। यूक्रेन छोटा है, लाड़ला भी। पर दिक्कत यह कि लाड़ला कब बिगड़ जाएगा, क्या पता चलता है।
फिर इस्राइल है, उससे सबने कह लिया। अमेरिका तो हर हफ्ते कहता है। हर हफ्ते युद्ध के लिए हथियार भी देता है, डॉलर भी देता है और युद्ध रोकने के लिए भी कहता है। लेकिन इस्राइल जानता है कि उसके कहने का क्या अर्थ है। वह बात नहीं मानता सिर्फ उसका अर्थ समझता है। बाकी किसी का कोई अर्थ है ही नहीं। वह तो संयुक्त राष्ट्र की भी नहीं मानता। वहां युद्धविराम के प्रस्ताव होते रहते हैं और वह बम गिराता रहता है। वह तो अपने यहां संयुक्त राष्ट्र महासचिव को घुसने तक नहीं देता।
खैर जी, यह तो हुई बम की हकीकत। लेकिन इधर बम की अफवाहें भी खूब चल रही हैं। नहीं-नहीं, दंगों-वंगों वाले नहीं और वैसे भी दंगों-वंगों में तो चाकू-छुरे और तलवारें ही काफी होते हैं। फिर दंगों के बाद बुलडोजर चलते हैं। लेकिन यह अफवाहें दंगों की नहीं हैं, जैसा कि अक्सर माना जाता है कि अगर बिना अफवाहों के दंगे हुए तो क्या हुए। बम की अफवाहें तो हवाई उड़ानों के लिए फैल रही हैं। फैलती ही जा रही हैं। पहले हवाई उड़ानों के लिए बम की एक-आध अफवाह होती थी, लेकिन अब तो सैकड़ों होने लगी हैं। मानने को इसे तरक्की भी माना जा सकता है। लेकिन ऐसी तरक्की को तरक्की कौन मानता है साहब। लोग तो असली तरक्की को तरक्की नहीं मानते।
उधर हकीकत में बरसने वाले बमों से दुनिया तंग आई हुई है और इधर बम की अफवाहों से दुनिया हलकान है। सचमुच अफवाहों का अपच हो गया है। दिन की कोई एक-आध अफवाह हो तो दुनिया उसे पचा भी ले। लेकिन यहां तो इफरात में अफवाहें हैं। कैसे पचंे। दुनिया इतनी हलकान हो चुकी है कि इन अफवाहों को लेकर कुछ पक्का इंतजाम करने की मांग करने लगी है। वैसे हो जाए तो अच्छा ही है। पर सिर्फ उड़ानों के लिए अफवाहों पर रोक क्यों लगे। सभी अफवाहों पर क्यों नहीं?

Advertisement
Advertisement