हौसले से खुशी
अलबर्ट आइंस्टाइन बहुत बड़े वैज्ञानिक और महान मानववादी भी थे। एक बार वे एक स्कूल में आमंत्रित थे। वहां वे बच्चों से बातें कर रहे थे। कक्षा में बच्चे तरह-तरह के सवाल कर रहे थे। सबको बहुत मजा आ रहा था। आइंस्टाइन ने गौर किया कि वहां पर एक छात्र कुछ उदास है। वे तुरंत उठकर उसके पास गये और उसके विषय से अनजान बनकर उससे विज्ञान के सरल सवाल करने लगे। छात्र इनके जवाब जानता था। उसने अनमने ढंग से सही जवाब दिये। जवाब सुनकर आइंस्टाइन बहुत खुश होकर उसको शाबाशी देने लगे। अब एक चमत्कार हुआ कि वह छात्र सतर्क हो गया और उसका उत्साह बढ़ गया। यह देखकर आइंस्टीन के सचिव हैरान रह गये और हैरत से इसका राज पूछा तो आइंस्टाइन ने बताया कि कई बार शाबाशी देने का उद्देश्य यह भी होता है कि कमियों को नजरअंदाज किया जाए। तारीफ करने का जो भाव है, वह काफी हद तक खुशी जैसा ही है। हौसला बढ़ाने से खुशी बढ़ती है। ऐसा ही होता है मुस्कुराने से। इस तरह खुशी एक से दूसरे के पास पहुंचती है और उदासी दूर हो जाती है। इसी मंत्र से बालक की उदासी दूर हुई और वह सबके साथ इस बातचीत में पूरे समय जुड़ा रहा।
प्रस्तुति : पूनम पांडे