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मुक्ति

07:45 AM Jul 14, 2024 IST
चित्रांकन : संदीप जोशी
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सब के लिए जीवन की परिभाषा अलग-अलग है। बाहर निकलो, दुनिया देखो, सीखो, अनुभव करो और अंत में धोखे खाओ। सुमन के जीवन में प्रेम दस्तक दे चुका था। सुमन अब तक हवा महल में ही रह रही थी। जिंदगी कितनी खूबसूरत हो जाती है जब कोई अपना कहता है तुम बहुत याद आती हो।

स्वप्ना मंडल
‘अगर तेरा बाप इतना ही पैसे वाला होता, तो तेरे हाथ में दस हजार का मोबाइल फोन होता।’
सुमन ने इस वाक्य को याद करते हुए बिना आंसू बहाए अपनी सारी यादों को ब्रह्मपुत्र में विसर्जित कर दिया। वह एक छोटे-से शहर नगांव से अपनी आगे की पढ़ाई के लिए गुवाहाटी आई है। बहुत ही शांत स्वभाव की एक शर्मीली लड़की।
कुछ ही दिनों में सुमन की मुलाकात अपने एक सीनियर से हुई। उसका नाम प्रीतम था। तब उसे बिल्कुल ही अनुमान नहीं था कि यह प्रेम-प्रसंग बन जाएगा। सुमन संग प्रीतम! वह तो सामान्य दोस्ती समझ कर उसके साथ जुड़ी थी। हमेशा खुश और सब से बात करने का यह अंजाम होगा उसे बिल्कुल भी भान नहीं था। अपनी सुंदरता का उसे थोड़ा भी गुमान नहीं था। लम्बे घने काले बाल, साफ गहरी आंखें बड़ी-बड़ी, गोरा रंग जैसे दूध-आलता का मिश्रण हो। साधारण वेशभूषा में भी वह परी जैसी दिखाई देती है। लेकिन उसे क्या पता था कि उसके जीवन के भयावह दिन शुरू हो रहे थे। जो लड़की वफादार होती है उसे धोखेबाज लड़का मिलता है। सुमन के साथ भी यही हुआ। प्रीतम एक घटिया इंसान था। बल्कि कहें इंसान ही नहीं था। कई लड़कियों से सम्बंध, नशाखोरी, सभी अवगुण थे उसमें। लेकिन सुमन इन सब से बेखबर अपने पहले प्यार में झूम रही थी। प्रीतम से जुड़ने से पहले सुमन की पहचान उसके फूफा से हुई थी। सुमन के परिवार में सभी उन्हें सुमन के सर के रूप में जानते थे। इसलिए परिवार के सभी लोग उनको जानते थे। डॉ. रमेश नाम था उनका। सौम्य और मृदुभाषी सर का गम्भीर व्यक्तित्व ही अलग था। उन्होंने सुमन को समझाया, ‘मैं तुमको अपनी बेटी के समान मानता हूं। इसलिए तुमको आगाह कर रहा हूं कि प्रीतम से जितनी दूर रह सको, उतना ही अच्छा है। तुम मेरी जिम्मेदारी हो। अगर तुम्हें कुछ भी हुआ तो मैं कभी भी तुम्हारे माता-पिता को मुंह नहीं दिखा पाऊंगा।’ सुमन ने सुना और लापरवाही से हंसते हुए बोली, ‘मुझे कुछ नहीं होगा सर। आप निश्चिंत रहिए।’
सब के लिए जीवन की परिभाषा अलग-अलग है। बाहर निकलो, दुनिया देखो, सीखो, अनुभव करो और अंत में धोखे खाओ। सुमन के जीवन में प्रेम दस्तक दे चुका था। सुमन अब तक हवा महल में ही रह रही थी। जिंदगी कितनी खूबसूरत हो जाती है जब कोई अपना कहता है तुम बहुत याद आती हो।
***
आज कॉलेज का ग्यारहवां दिन था। सुमन को लेने प्रीतम आया। वह शरमा रही थी। लेकिन प्रीतम तो पुराना खिलाड़ी था। उसे पता था अपना गेम किस तरह खेलना है। सुमन का हॉस्टल ब्रह्मपुत्र के पास ही था। उसके हृदय में प्रेम की शीतलता और गम्भीरता दोनों ही थी। जिस दिन वह हॉस्टल आयी रात के 11 बजे प्रीतम का फोन आया- ‘हैलो! कहां है तू?’ ‘पढ़ाई कर रही हूं।’ वह बोली। ‘जरा गेट के बाहर आना।’ – वह जैसे आदेश दे रहा था। ‘मुझे नींद आ रही है। कल बात करते हैं। बाय!’ सुमन ने टाल दिया। प्रीतम झटका खा गया। गुस्से में जोर से बोला ‘बाय!!’ और कॉल काट दिया।
सुमन को रातभर नींद नहीं आई। गुवाहाटी जैसे घर से दूर शहर में वह पहली बार आई थी। यहां रोने के लिए कंधा भी नहीं था।
प्रीतम अब रोज-रोज फोन करने लगा। सुमन को नये-नये प्यार का रंग अच्छा लगने लगा था। वह कुछ भी खाने का सामान लेकर आती, सबसे पहले प्रीतम को पूछती। फिर एक दिन वह मनहूस दिन आया 25 दिसम्बर। सुमन का जन्म दिन। घर से कोई फोन कॉल नहीं आया। वह मायूस बैठी हुई थी। उसी समय प्रीतम का कॉल आया। इंसान के दुःख का कारण प्रेम ही है। जितना अधिक वह प्रेम में अपने आप को बांधेगा, उतना ही कष्ट देगा। ‘हैलो! कहां है तू?’ वह हमेशा इसी वाक्य से बात शुरू करता है। ‘रूम में।’ सुमन का सहज उत्तर यही होता। ‘मार्केट चलेगी?’ उसने पूछा। सुनकर सुमन को अच्छा लगा। प्रीतम ने आगे जोड़, ‘मुझे कुछ लेना है।’ ‘हुम्म.. ओके!’ वह तैयार थी। ‘जल्दी आ नीचे। मैं तैयार होकर पांच मिनट में आ रहा हूं।’ सुमन को पता नहीं था कि वह कांटों पर पैर रखने जा रही है। सुमन नीचे उतर आई। प्रीतम उसे अपने साथ लेकर मार्केट चल दिया। लेकिन वह पहले से प्लान करके आया था। बोला, ‘मुझे अपने लिए जूते खरीदने हैं।’ जेब टटोलते हुए बोला, ‘अरे! मेरा पर्स रूम में ही रह गया। पहले रूम पर जाना होगा। फिर मार्केट।’ सुमन राजी हो गयी। प्रीतम सुमन को लेकर रूम में आ गया। छोटा-सा कमरा था। सुमन खड़ी रही। वह पर्स ढूंढ़ने का नाटक करने लगा। सुमन बोली, ‘अरे! जल्दी चलो। देर हो रही है।’ प्रीतम बेड पर बैठ कर कुछ सोचता रहा। ‘चलो न अब।’ –सुमन सहज नहीं थी।
‘तू मुझसे प्यार करती है?’ उसने पूछा।
‘ये कैसा सवाल है!’ –चकित हो सुमन ने कहा।
‘पहले बता। तू मुझसे प्यार करती है या नहीं?’ वह झुंझला गया।
‘हां.. करती हूं। चलो न अब।’ सुमन ने टाला।
सुमन को अपने पास खींचते हुए उसकी आंखों में देखा।
‘चलो न अब।’-सुमन ने फिर कहा। वह सहज नहीं थी।
प्रीतम का उद्देश्य सामने था। दरअसल सुमन को पता नहीं था कि छल कर के वह उसे ‘रूम डेट’ के लिए लाया है। पहले फोन पर बातें। अब वही सब व्यवहार में सामने था। सुमन ने बहुत कोशिश की लेकिन प्यार के सामने उसे हारना ही पड़ा। और हार तो होनी ही थी, जब खिलाड़ी इतना माहिर हो।
सुमन उस दिन से अपने अंदर एक नकारात्मक ऊर्जा अनुभव करने लगी। उसे अपने आप से घृणा होने लगी। एक मध्यम परिवार से होने के नाते उसके लिए यह सहज नहीं था। उसने तय किया अब इस प्रेम-प्रसंग को शादी तक ले जाना ठीक रहेगा। इसी उम्मीद के साथ उसने अपना नया दिन शुरू किया। लेकिन यह क्या? वह जब डिपार्टमेंट पहुंची, देखा प्रीतम किसी और लड़की के साथ बैठकर बातें कर रहा है। दोनों को देखकर उसे सामान्य नहीं लगा। जैसे ही वह उनके पास पहुंची, लड़की ने कहा, ‘अरे! प्रीतम फिर एक नयी चिड़िया!’ ये बोलकर दोनों हंसने लगे। सुमन को अच्छा नहीं लगा।
सुमन अपना क्लास खत्म करके हॉस्टल की ओर जाने लगी, प्रीतम बाइक पर सवार होकर पास आया और बोला, ‘चल बैठ।’ वह जिस तरह से बोलता है, सुमन को बिल्कुल पसंद नहीं। वह चुपचाप से बैठ गयी। अब कॉलेज में धीरे-धीरे उन दोनों की चर्चा होने लगी। दोस्त लोग प्रीतम से मजे लेने लगे। सुमन को भी अलग नजर से देखने लगे। यह सुमन को अच्छा नहीं लगता।
सुमन के जन्मदिन पर एक छोटी-सी पार्टी का आयोजन रखा गया। जिसमें प्रीतम के दोस्त भी आमंत्रित थे। सुमन के लिए यह एक सपना जैसा था। वह बहुत खुश थी। उसे लगता था कि प्रीतम अब सुधर रहा है। सब ने केक खाया और खूब मस्ती की। इसी बीच सुमन के घर से फोन आया कि आज उसके पापा का प्रमोशन हुआ है। अब वेतन कुल पचास हजार हो गया था। सुनते ही सुमन को बहुत खुशी हुई। यह खुशी उसने अपने जन्मदिन की पार्टी में आये दोस्तों के साथ बांटी। सब बहुत खुश हुए, सिर्फ प्रीतम नहीं। अपनी आदत के मुताबिक उसने कहा, ‘तू तो ऐसे खुश हो रही है, जैसे कुबेर हो तेरा बाप! ...इतना ही पैसे वाला होता तो तेरे हाथ में दस हजार का फोन होता। चल छोड़ केक खा। ...कभी देखा है इतना शानदार जश्न?’
सुमन और उसके दोस्त दंग रह गये। ये किस प्रकार के शब्द हैं!?
सुमन को अब यकीन हो चला था कि इस नर्क से निकलना है। फिर भी उसने इस रिश्ते को अंतिम अवसर देना चाहा, ताकि उसे अपनी पसंद पर यकीन हो सके। सेमेस्टर भी खत्म हो रहा था। प्रीतम ने सुमन को मिलने के लिए बुलाया। सुमन को लगा आज हम अपने रिश्ते की बात करेंगे। घर से कई रिश्ते आ रहे थे। शाम को वह प्रीतम से मिलने गयी। जाकर देखा प्रीतम अपना सामान पैक कर रहा है। सुमन को आश्चर्य हुआ। उसने पूछा, ‘कहीं जा रहे हो?’ ‘हां।’ ‘कहां?’ ‘मुम्बई।’ ‘वापसी कब तक?’ ‘कभी नहीं।’ सुनकर सुमन चुप रह गयी।
प्रीतम ने सधे हुए शब्दों में कहा, ‘मुझे पता है, तू एक अच्छी लड़की है। लेकिन तेरी जाति और मेरी जाति में बहुत अंतर है। मेरे घर वाले कभी भी तुझे स्वीकार नहीं करेंगे। वैसे मेरे घर वालों ने एक लड़की देख रखी है। जॉब मिलते ही शादी। मुझे माफ कर दे। तेरे को मैं हमेशा याद रखूंगा। तूने मुझे बहुत प्यार दिया। लेकिन मैं मजबूर हूं। माफ़ कर देना मुझे।’ सुमन चुप होकर बैठी रही। इतना ही बोली, ‘मैं चलती हूं।’
‘अरे! सुन तो। एक अंतिम बार मुझे तुझ को प्यार करना है।’ प्रीतम गिड़गिड़ाया। सुमन कुछ नहीं बोली। उठकर खड़ी हो गयी। ‘रुक।... ये ले कुछ पैसे। मेरे पास बहुत है। अगर चाहिए तो मांग लेना।’ ये कहते हुए प्रीतम ने सब पैसे उसकी ओर फेंके। सुमन अंदर तक हिल गयी।
सुमन को घृणा होने लगी और वह अपने आप को कोसने लगी। किस जन्म का पाप था, जो भगवान ने इस इंसान से मिलाया। क्यों उसने अपने घर वालों, दोस्तों और सर की बात नहीं सुनी। लेकिन इस कांटे को उसने स्वयं चुना था। सेमेस्टर खत्म करके सुमन घर के लिए निकल पड़ी। हॉस्टल से निकलकर वह ब्रह्मपुत्र के किनारे बैठकर जोर-जोर से रोने लगी। लेकिन एक स्त्री के लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है। वह कुछ नहीं भूलती। साथ रोने वालों को, और रोने की वजह बनने वालों को। अपने आंसू ब्रह्मपुत्र में विसर्जित कर वह लौट आयी। फिर कभी उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। प्यार तो इंसान को पूर्णता दिलाता है। लेकिन सुमन आज उस पूर्णता से मुक्त है। चिर मुक्त।

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