सृजन में प्रकृति की सुगंध
पुस्तक समीक्षा
सरोज गुप्ता
पुस्तक : ‘क’ से कुदरत लेखिका : डॉ. अंजू दुआ जैमिनी प्रकाशक : अयन प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 140 मूल्य : रु. 340.
घुमक्कड़ी के बादशाह पंडित राहुल सांकृत्यायन जी की ये पंक्तियां प्रसिद्ध हैं :-
सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहां,
जिंदगानी गर रही तो यह जवानी फिर कहां।
इन्हीं पंक्तियों को चरितार्थ करती डॉ. अंजू दुआ जैमिनी की कृति ‘क’ से कुदरत’ मेरे सामने है। डॉ. अंजू हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा सर्वश्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान से सम्मानित हो चुकी हैं। अब तक 26 मौलिक और 5 संपादित पुस्तकों का सृजन कर चुकी हैं। ‘क से कुदरत’ इनका दूसरा यात्रा संस्मरण है। इससे पूर्व इनका विदेश यात्रा संस्मरण आ चुका है। प्रस्तुत कृति में 18 शीर्षकों के अंतर्गत देश के 14 राज्यों और 4 केंद्रशासित प्रदेशों की यात्राओं के खट्टे-मीठे संस्मरण सम्मिलित हैं।
कश्मीर, केरल, कन्याकुमारी, पांवटा साहिब गुरुद्वारा, अक्षरधाम मंदिर, शिमला, मसूरी आदि स्थलों की इन यात्राओं में धार्मिक आस्था के साथ प्राकृतिक सौंदर्य का सरस वर्णन पाठकों को अपने साथ बहाकर ले जाने में पूरी तरह सक्षम है।
डॉ. अंजू कहानीकार, उपन्यासकार होने के साथ-साथ एक कवयित्री भी हैं और इसीलिए उनके गद्य में भी पद्य की अनुगूंज सुनाई देती है। बीच-बीच में उनकी कविताओं की पंक्तियां संस्मरण को अलंकारों से सुसज्जित करती हैं।
पुस्तक को पढ़ते हुए प्रकृति की सुगंध का अनुभव होता है। प्रकृति के दृश्यों का वर्णन आंखों के सामने घूमता सा प्रतीत होता है।
कुल मिलाकर यह यात्रा संस्मरण प्रत्येक आयु वर्ग के पाठकों के लिए है क्योंकि कहीं न कहीं सब में एक यायावर छिपा है।
पुस्तक की भाषा सरल, सहज, प्रवाहमयी तथा रोचकता से भरपूर है। पुस्तक के अंतिम कुछ पृष्ठों पर रंगीन चित्र पुस्तक को रोचक के साथ आकर्षक भी बना रहे हैं भ्रमण प्रेमी पाठकों के लिए पुस्तक अत्यंत उपयोगी है।