इस्कॉन प्रचार समिति की श्रीमद् भागवत कथा का चौथा दिन
कैथल, 19 जून (हप्र)
इस्कॉन प्रचार समिति कैथल द्वारा श्री गीता भवन मंदिर में आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन कथा व्यास श्रीमन साक्षी गोपाल दास ने भागवत के 16वें अध्याय की कथा में महाराजा चित्रकेतु व शंकर जी की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि महाराजा चित्रकेतु के शिव पर व्यंग करने के कारण और शिव के कुछ ना कहने के कारण उस पर मां पार्वती क्रोधित हो गई और उसे श्राप दे दिया कि जाओ, तुम असुर कुल में जन्म लो। सुकदेव गोस्वामी कहते हैं कि हे परीक्षित महाराज इस श्राप को सुनकर महाराज चित्रकेतु घबराए नहीं। तब उन्होंने माता के सामने हाथ जोडक़र कहा कि माता मैं आपके श्राप को हाथ जोडक़र स्वीकार करता हूं। मुझे इस श्राप की कोई परवाह नहीं है क्योंकि मुझे मालूम है कि मनुष्य अपने पूर्व कर्मों के अनुसार ही इस संसार में सुख अथवा दुख भोगता है। मां इसमें आपका कोई दोष नहीं है। इसलिए मैं आपसे यहां क्षमा मांगने नहीं आया। हे माता, आप तो व्यर्थ ही क्रोधित हो क्योंकि यह सब सुख-दुख मेरे पूर्व कर्मों के द्वारा सुनिश्चित हैं। अत: न तो मैं आपसे क्षमा प्रार्थी हूं और न ही आपके द्वारा मुक्त होना चाहता हूं। यद्यपि मैंने यदि कुछ अनुचित नहीं कहा है फिर भी उसके लिए आप मुझे क्षमा कर देना। यह कहने के बाद माता पार्वती और शंकर जी को प्रणाम करता हुआ चित्रकेतु वहां से चला गया।
एक बार लिया हुआ भगवान का नाम उसके पापों को नष्ट कर देता है।
उन्होंने बताया कि शास्त्रों में यह भी उल्लेख है कि एक बार लिया हुआ भगवान का नाम उसके इतने पापों को नष्ट कर देता है कि वह जीवन भर भी इतने पाप भी नहीं कर सकता। जैसा कि सभी शास्त्रों में गया गया है कि मनुष्य योनि पाना बहुत ही मुश्किल है और अगर मनुष्य योनि मिल गई तो उसमें भगवान के भक्तों के संग बैठकर भगवान की चर्चा यह उससे भी अधिक दुर्लभ है।