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खराब का अच्छा होने का फार्मूला

07:50 AM Dec 01, 2023 IST
खराब का अच्छा होने का फार्मूला
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विनय कुमार पाठक

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‘अरे वाह!’ श्रीमहानगरी समाचार-पत्र में किसी समाचार को पढ़ते ही उछल पड़े।
‘क्या हुआ?’ श्रीग्रामीण ने आश्चर्य से पूछा। किसी अच्छे समाचार की अपेक्षा वह श्रीमहानगरी से कर रहे थे। शायद सरकार कोई कल्याणकारी योजना ला रही हो। वैसे सरकार की कल्याणकारी योजना से कल्याण तो सरकार का ही होता है। पर जनता को भी दिल बहलाने को गालिब खयाल अच्छा है, की तर्ज पर झुनझुना तो मिल ही जाता है।
‘हमारे शहर में हवा की गुणवत्ता खराब श्रेणी में आ गई है और अगले दस दिनों तक खराब श्रेणी में ही रहने की संभावना है।’ बोलते हुए उनके चेहरे से जो प्रसन्नता झलक रही थी, उसका वर्णन करना शब्दों से परे है। श्रीग्रामीण उजबक की तरह श्रीमहानगरी को देखने लगे। उन्हें लगा महानगरी शायद कोई नशा करने लगे हैं। वैसे समाचार-पत्र में उन्होंने पढ़ा था कि प्रदूषण का प्रभाव ऐसा है कि प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन इकतीस सिगरेट के बराबर धुआं अपनी सांसों के जरिए ले रहा है। हो सकता है उस धुएं में कोई विशेष प्रकार का नशा शामिल हो जिस कारण महानगरी हवा की गुणवत्ता के खराब श्रेणी में रहने के समाचार पढ़कर उत्साहित हो रहे हैं। भोलेपन से पूछा, ‘हवा की गुणवत्ता खराब होने पर इतनी खुशी?’
‘आप क्या समझोगे हवा की गुणवत्ता ‘खराब’ होना कितने सौभाग्य की बात है हमारे महानगर में।’ उन्होंने कुछ इस भाव से कहा मानो पुष्पा कह रही हो कि चुटकी भर सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू? ‘हमारे महानगर में हवा की गुणवत्ता ‘अत्यंत खराब’ और खतरनाक श्रेणी में रहती है। कभी-कभी तो पर्यावरणविदों द्वारा निर्धारित हर श्रेणी को पार कर जाती है। वैसे इसमें पर्यावरणविदों की कोई गलती नहीं है। उन्हें क्या पता था कि प्रदूषण के मामले में हम विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर हैं। महानगरी जी ने अपनी बात जारी रखी, ‘खराब’ श्रेणी में होने का मतलब है कि गुणवत्ता पहले से अच्छी हो गई है। अर्थात‍् सुधार हुआ है। अतः ‘खराब’ का होना हमारे लिए उत्सव की बात है। यह बात अलग है कि ऐसा वरुण भगवान की कृपा से होता है न कि किसी ‘सतत आश्वासन-प्रदाता’ दलों के प्रयास से।’ कुछ दिनों पहले हुई बरसात की ओर इशारा करते हुए श्रीमहानगरी ने खुलासा किया।
श्रीग्रामीण अभी भी आपादमस्तक प्रश्नवाचक चिन्ह बने हुए श्रीमहानगरी को विस्फारित नेत्रों से देख रहे थे।
‘अरे भाई, मान लो, मान क्या लो समझ लो, पार्टी ‘क’ के डेढ़ सौ उम्मीदवार दागी हैं, किसी न किसी जघन्य अपराध में लिप्त होने के दोषी हैं और पार्टी ‘ख’ के सिर्फ एक सौ पच्चीस उम्मीदवार दागी हैं, आपराधिक छवि वाले हैं तो पार्टी ‘ख’ तुलनात्मक रूप से ज्यादा साफ-सुथरी पार्टी हुई कि नहीं?’ श्रीमहानगरी ने समझाया।
श्रीग्रामीण का मुंह इस उदाहरण के बाद न सिर्फ खुला का खुला रह गया वरन‍् और भी चौड़ा हो गया। उन्हें यथावत‍् छोड़ श्रीमहानगरी हवा की गुणवत्ता के आंकड़ों को पढ़ने में मशगूल हो गए।

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