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फर्जी मुठभेड़ मामले में पूर्व डीआईजी व डीएसपी दोषी करार

06:56 AM Jun 07, 2024 IST
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मोहाली, 6 जून (निस)
पंजाब के मोहाली में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत ने वीरवार को एक तत्कालीन डीएसपी सिटी तरनतारन (सेवानिवृत्त डीआईजी) और तत्कालीन एसएचओ पंजाब पुलिस (सेवानिवृत डीएसपी) को 31 साल पुराने हत्या मामले में दोषी ठहराया है। दोनों आरोपियों को शुक्रवार को सीबीआई की स्पेशल कोर्ट में सजा सुनाई जाएगी। विशेष सीबीआई न्यायाधीश राकेश कुमार की अदालत में मामले की सुनवाई हुई। तरनतारन के जंडाला रोड निवासी गुलशन कुमार की कथित हत्या के लिए पूर्व डीआईजी दिलबाग सिंह और पूर्व डीएसपी गुरबचन सिंह के खिलाफ सीबीआई कोर्ट में मामला विचाराधीन था। गुलशन कुमार फल विक्रेता था। आरोपियों के खिलाफ वर्ष 1997 में सीबीआई ने आईपीसी की धारा 302, 364, 201, 218, 120बी व 34 के तहत मामला दर्ज किया था।
सीबीआई द्वारा दायर आरोप-पत्र के अनुसार एजेंसी ने 1996 में मामला दर्ज किया था, जब गुलशन कुमार के पिता चमन लाल ने एजेंसी को बयान दिया था कि जून 1993 में डीएसपी दिलबाग सिंह (जो डीआईजी के पद से सेवानिवृत्त हुए) के नेतृत्व में तरनतारन पुलिस की एक पुलिस पार्टी ने 22 जून, 1993 की शाम को उनके बेटे को जबरन उठा लिया और 22 जुलाई, 1993 को उसकी हत्या कर फर्जी मुठभेड़ दिखा दी। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने उन्हें सूचित किए बिना उनके बेटे का अंतिम संस्कार कर दिया। सीबीआई जांच रिपोर्ट, जिसे एजेंसी ने आरोप-पत्र के साथ अदालत में पेश किया, से पता चला कि गुरबचन सिंह, जो उस समय सब-इंस्पेक्टर थे और तरनतारन (शहर) पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) के रूप में तैनात थे, ने गुलशन कुमार को अवैध हिरासत में रखा था। सीबीआई ने 28 फरवरी 1997 को दिलबाग सिंह, तत्कालीन डीएसपी सिटी तरनतारन (अमृतसर) और 4 अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया था। जांच पूरी होने के बाद सीबीआई ने 7 मई 1999 को तत्कालीन डीएसपी दिलबाग सिंह, तत्कालीन इंस्पेक्टर गुरबचन सिंह, तत्कालीन एएसआई अर्जुन सिंह (मुकदमे के दौरान मर गए), तत्कालीन एएसआई देविंदर सिंह (मुकदमे के दौरान मर गए) और तत्कालीन एसआई बलबीर सिंह (मुकदमे के दौरान मर गए) के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था। 7 फरवरी 2000 को आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए थे। मुकदमे के बाद अदालत ने दोनों आरोपियों को दोषी ठहराया।
सीबीआई ने कुल 32 गवाहों का हवाला दिया था। मुकदमे के दौरान चश्मदीद गवाहों के ठोस सबूतों से दोनों आरोपी साबित हुए थे और दस्तावेजों से दोषी पुलिस अधिकारियों द्वारा गढ़ी गई कहानी झूठी साबित हुई थी।

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