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सोनीपत में पहली बार दो ब्राह्मण आमने-सामने

08:51 AM Apr 28, 2024 IST
सोनीपत में पहली बार दो ब्राह्मण आमने सामने
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दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 27 अप्रैल
सोनीपत लोकसभा सीट पर एक बार फिर दिलचस्प मुकाबला तय हो गया है। पहली बार ऐसे समीकरण बने हैं कि दो ब्राह्मण नेता आमने-सामने होंगे। चुनावी नतीजे चाहे कुछ भी हों, लेकिन कांग्रेस ने इस संसदीय सीट में इस बार मुकाबले को कांटे का बना दिया है। भाजपा ने जहां अपने मौजूदा सांसद रमेशचंद्र कौशिक की जगह राई विधायक और संघ पृष्ठभूमि के मोहनलाल बड़ौली पर दांव खेला है। वहीं कांग्रेस ने उनके मुकाबले सतपाल ब्रह्मचारी को चुनावी रण में लाकर नये समीकरण बना दिए हैं।
इस सीट की सियासी तासीर ही कुछ ऐसी है कि तीन बार ब्राह्मण चेहरों ने जाट दिग्गजों को चुनावी रण में शिकस्त दी है। 2019 का लोकसभा चुनाव तो पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी हार गए थे। हुड्डा सबसे हेवीवेट प्रत्याशी थे। इसके बाद भी वे भाजपा के ब्राह्मण उम्मीदवार रमेश चंद्र कौशिक के सामने चुनाव नहीं जीत सके। इस बार एक बड़ा बदलाव यह भी है कि कांग्रेस ने मूल रूप से जींद के सफीदों हलके के गांगोली गांव के नेता को चुनावी मैदान में उतारा है। ऐसे में सोनीपत लोकसभा सीट की जीत-हार में जींद जिला इस बार निर्णायक भूमिका अदा करेगा। इस संसदीय क्षेत्र में नौ हलके – खरखौदा, बरोदा, गोहाना, सोनीपत, राई व गन्नौर सोनीपत जिले के हैं और जींद जिले के पांच हलकों में से तीन – जींद, जुलाना और सफीदों भी इसका हिस्सा हैं। नौ हलकों में से पांच में कांग्रेस, तीन में भाजपा और एक से जजपा विधायक हैं। समझा जाता है कि जातिगत-क्षेत्रीय समीकरणों को ध्यान में रख कर कांग्रेस ने ब्रह्मचारी पर दांव खेला।
बेशक, सोनीपत लोकसभा सीट पर अभी तक एक उपचुनाव सहित 12 लोकसभा चुनावों में केवल तीन बार ही ब्राह्मण सांसद बने हैं, लेकिन तीनों ही बार उन्होंने प्रभावशाली नेताओं को हराया है। भूतपूर्व उपप्रधानमंत्री चौ़ देवीलाल भी सोनीपत से सांसद रह चुके हैं। 1977 में सोनीपत लोकसभा का पहला चुनाव हुआ और भारतीय लोकदल ने पहले ही चुनाव में कांग्रेस को शर्मनाक हार के लिए मजबूर कर दिया। लोकदल के मुख्तयार सिंह ने कांग्रेस की सुहाषिनी को बड़े अंतर से चुनाव हराया।
इसके बाद 1980 के चुनावों में चौ़ देवीलाल ने सोनीपत से जीत हासिल की। देवीलाल ने जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ा और 2 लाख 55 हजार 363 मत लेकर कांग्रेस के रणधीर सिंह को हराया। रणधीर सिंह को महज 97 हजार 572 ही वोट मिल पाए। ऐसा माना जाता है कि उस समय देवीलाल और चौ़ चरण सिंह के बीच किसी विवाद के चलते देवीलाल ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 1983 में हुए उपचुनाव में देवीलाल फिर से चुनावी रण में आए। इस बार चौ़ रिज्जकराम ने देवीलाल को करीब 50 हजार मतों से चुनाव हरा दिया।
1984 में देवीलाल फिर लोकदल की टिकट पर चुनावी मैदान में आए। इस बार वे कांग्रेस के धर्मपाल सिंह मलिक के हाथों शिकस्त खा बैठे। हालांकि हार का अंतर बहुत कम रहा। 1989 में सोनीपत में फिर समीकरण बदले। इस बार जनता दल के कपिल देव शास्त्री ने कांग्रेस के धर्मपाल सिंह मलिक को हराया। कपिल देव शास्त्री मूल रूप से बरोदा हलके के घड़वाल गांव के रहने वाले थे। हालांकि उनका बहुत अधिक प्रभाव नहीं था, लेकिन देवीलाल के प्रभाव के चलते वे आसानी से चुनाव जीत गए। 1991 में धर्मपाल सिंह मलिक ने कपिल देव शास्त्री से हार का बदला चुकता कर लिया।
जब अरविंद से हारे रिज्जकराम
1996 का लोकसभा चुनाव सोनीपत के लिए यादगार रहा। यह अपनी तरह का पहला चुनाव था जब शिवसेना से जुड़े डॉ़ अरविंद शर्मा निर्दलीय चुनावी रण में उतरे। इस इलाके के प्रभावशाली व सोशल नेताओं में शुमार चौ़ रिज्जकराम समता पार्टी के उम्मीदवार थे। अरविंद शर्मा ने निर्दलीय होते हुए 2 लाख 31 हजार 552 वोट लेकर चौ. रिज्जकराम को चुनाव में पछाड़ा। वहीं हरियाणा विकास पार्टी के अभय राम दहिया को 1 लाख 51 हजार 294 और कांग्रेस के धर्मपाल सिंह मलिक को महज 57 हजार 615 वोट हासिल हुए।

एक नजर उम्मीदवारों पर
मोहनलाल बड़ौली : 1989 से आरएसएस से जुड़े बड़ौली 2019 में पहली बार राई से विधायक बने। इस हलके से जीत हासिल करने वाले वे पहले भाजपा नेता हैं। 1995 में भाजपा के मुरथल के मंडल अध्यक्ष रहे। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय वे जिला परिषद में भी रहे। भाजपा के प्रदेश महामंत्री रह चुके बड़ौली के पिता कली राम कौशिक जाने-माने कवि रहे हैं। वे हरियाणा के ‘शेक्सपियर’ कहे जाने वाले पंडित लख्मीचंद के मुरीद रहे। पेशे से बिजनेसमैन के साथ-साथ बड़ौली किसान भी हैं।
सतपाल ब्रह्मचारी : जींद जिला के गांगोली के रहने वाले ब्रह्मचारी हरिद्वार नगर पालिका के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वे हरिद्वार विधानसभा से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। पांडु-पिंडारा की धर्मशाला और गांगोली मंदिर का प्रबंधन वे खुद देखते हैं। वे हरिद्वार में दो आश्रमों के महंत भी हैं और हरियाणा के लोगों की वहां आवभगत करते हैं। हरिद्वार के राधा-कृष्ण धाम के परमाध्यक्ष ब्रह्मचारी के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ भी पुराने रिश्ते हैं। इस एरिया के लोगों के लिए ब्रह्मचारी नया नाम नहीं हैं।

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सांगवान ने ऐसे लगाई हैट्रिक
भाजपा के पूर्व सांसद दिवंगत किशन सिंह सांगवान सोनीपत लोकसभा सीट पर बड़ा नाम रहे हैं। 1998 में उन्होंने हरियाणा लोकदल (राष्ट्रीय) की टिकट पर चुनाव लड़ा और 2 लाख 90 हजार 299 वोट लेकर पहली बार संसद पहुंचने में कामयाब रहे। इस चुनाव में मौजूदा सांसद अरविंद शर्मा शिवसेना की टिकट पर चुनावी रण में आए लेकिन लोगों ने इस बार उन्हें पूरी तरह से नकार दिया। बाद में किशन सिंह सांगवान भाजपा में शामिल हो गए। 1999 में उन्होंने भाजपा की टिकट पर लगातार दूसरी बार चुनाव जीता और 2004 में उन्होंने जीत की हैट्रिक लगाई। 2009 में किशन सिंह सांगवान चौथी बार संसद पहुंचने के लिए मैदान में आए लेकिन इस बार कांग्रेस के जितेंद्र सिंह मलिक ने उन्हें रोक दिया। जितेंद्र मलिक 3 लाख 38 हजार 795 वोट लेकर चुनाव जीते।
2014 व 2019 में रहा ब्राह्मणों का डंका
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सोनीपत में नये समीकरण बनाने की कोशिश की। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए रमेश चंद्र कौशिक को कांग्रेस के जगबीर सिंह मलिक के मुकाबले चुनावी रण में उतारा। पहले ही चुनाव में कौशिक 3 लाख 47 हजार 203 वोट लेकर संसद पहुंच गए। मलिक को 2 लाख 69 हजार 789 वोट हासिल हुए। 2019 के लोकसभा चुनावों में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने रमेश चंद्र कौशिक के सामने ताल ठोकी लेकिन वोटों के ध्रुवीकरण के चलते हुड्डा भी कौशिक की राह को रोक नहीं सके। कौशिक ने हुड्डा को 1 लाख 64 हजार 864 मतों से शिकस्त दी।
इसलिए की गई ब्रह्मचारी की सिफारिश
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि सोनीपत संसदीय सीट पर कांग्रेस के पांचों विधायक इस बार ब्राह्मण को टिकट देने की मांग कर रहे थे। इतना ही नहीं, उन्होंने सतपाल ब्रह्मचारी के नाम की सिफारिश भी की हुई थी। हुड्डा के भी ब्रह्मचारी के साथ पुराने संबंध हैं। माना जा रहा है कि पूर्व सीएम ने समीकरणों को समझने के बाद ही यह दांव खेला। सोनीपत से सुरेंद्र पंवार, गोहाना से जगबीर सिंह मलिक, खरखौदा से जयवीर सिंह वाल्मीकि, बरोदा से इंदूराज नरवाल और सफीदों से सुभाष गंगोली कांग्रेस विधायक हैं।

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