फुलप्रूफ सीमा सुरक्षा
ऐसे वक्त में जब साम्राज्यवादी चीन गाहे-बगाहे भारतीय संप्रभुता को चुनौती देता रहता है वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर रक्षा तैयारियों को तेजी से पूरा करने की जरूरत है। इसी दिशा में केंद्र की पहल के बाद भारतीय सीमा सड़क संगठन ने काराकोरम में 17,800 फुट ऊंचाई पर स्थित सासेर दर्रे के पास सामरिक महत्व की चार किलोमीटर लंबी सड़क बनाने की तैयारी शुरू की है। बीआरओ ने इस निर्माण से जुड़ी निविदाएं आमंत्रित की हैं। दरअसल, बेहद दुर्गम इलाके में बनने वाली यह सड़क 56 किमी लंबी सैन्य उपयोग वाली महत्वाकांक्षी सड़क का हिस्सा होगी। दरअसल, इस मार्ग को उत्तरी लद्दाख में सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण देपसांग और दौलत बेग ओल्डी तक पहुंचने के वैकल्पिक मार्ग के रूप में देखा जा रहा है। दरअसल, पिछले तीन वर्षों में कुछ विवादित स्थलों को लेकर चीन के साथ कोर कमांडर स्तरीय वार्ता के 18 दौर चलने के बाद भी किसी निर्णायक समझौते तक नहीं पहुंचा जा सका है। वास्तव में चीन की आक्रामकता का मुकाबला करने के लिये सीमा पर बुनियादी ढांचे के विस्तार के क्रम में सीमावर्ती इलाके में इस कंक्रीट की सड़क का निर्माण किया जा रहा है, जो सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकता कि चीन सेना को शीघ्र एलएसी तक पहुंचाने के मकसद से अपने क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सड़कों व पुलों का निर्माण कर रहा है।
इन्हीं चुनौतियों के चलते हाल ही में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने दो टूक शब्दों में चीन को चेताया कि पूर्वी लद्दाख सीमा में स्थिति सामान्य बनाये बिना भारत-चीन के संबंध सहज नहीं हो सकते। निस्संदेह जरूरी हो जाता है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगे इलाकों में सड़कें व अन्य बुनियादी ढांचा परियोजनाएं निर्धारित समय अवधि में पूरी कर ली जाएं। ऐसे ही कदम देश के अन्य राज्यों से लगती चीन की सीमा पर भी उठाये जाएं। खासकर अरुणाचल में बनायी जा रही रणनीतिक महत्व की सेला सुरंग के काम को जल्द पूरा किया जाये। इस सुरंग के बनने के बाद अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती तवांग जिले में सेना की आवाजाही हर मौसम में सुनिश्चित हो सकेगी। गत वर्ष दिसंबर में तवांग में ही भारतीय व चीनी सैनिकों के बीच झड़प हुई थी। निस्संदेह, इन परियोजनाओं के यथाशीघ्र पूरा होने से न केवल सेना व सशस्त्र बलों को लाभ होगा बल्कि स्थानीय लोगों की आवाजाही भी आसान हो सकेगी। निस्संदेह, स्थानीय लोग ही सेना व खुफिया एजेंसियों के लिये आंख व कान का काम करते हैं। वे सीमा पर किसी असामान्य हलचल को भांप कर समय रहते सेना और इंटेलीजेंस एजेंसियों को सजग कर सकते हैं। यही वजह है कि अरुणाचल के सीमावर्ती इलाकों में वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम को गति दी जा रही है, ताकि संवेदनशील सीमावर्ती इलाकों में स्थानीय लोगों की सक्रियता बनी रहे। इसी व्यापक योजना के क्रम में अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश में ऐसे तीन हजार गांवों की पहचान की गई है।