बदलते परिवेश में पुरोहितों के लिए बदली गयी भोजन शैली
ललित शर्मा/हप्र
कैथल, 6 अक्तूबर
पितृ पक्ष अपने विसर्जन की ओर है। पूर्वजों के प्रति श्रद्धाभाव रखने के लिए नयी पीढ़ी को संदेश देने वाला यह पक्ष समय के साथ कुछ बदलाव लाने लगा है। साथ ही पितृ पक्ष का संदेश, मानो फिर चेता रहा हो कि पर्यावरण को बचाएं ताकि कौओं, श्वानों और गायों को भी आप श्रद्धा से भोजन करा सकें। क्योंकि अब मुंडेरों पर कौए दिखते ही नहीं, शहरों में देसी गायें नहीं दिखतीं। इसी बदलावों के बीच पंडित जी भी अब कम ही रह गए हैं क्योंकि किसी ने कोई दूसरा रोजगार पकड़ लिया है तो कोई शुगर या बीपी जैसी बीमारी से ग्रस्त हो गया है।
श्राद्ध पक्ष में हर किसी के मन में अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा तो पूरी है लेकिन श्राद्ध के तर्पण-अर्पण में कुछ दिक्कतें आ रही हैं। कुल पुरोहित तो अब मिलते ही नहीं, पंडिताई का पेशा अपनाने वाले भी कम दिखते हैं। हालांकि इनका तोड़ भी लोगों ने निकाल लिया है। यहां बता दें कि पितृ पक्ष में लोग खीर, मालपुए, पूरी, सब्जी, रायता आदि बनाते हैं। माना जाता है कि मन से बनाया गया स्वादिष्ट व्यंजन पंडितों, पशु-पक्षियों और अपने घर के सभी सदस्यों के बीच बांटकर खाने से तर्पण पूर्ण होता है।
पितृ तर्पण में भोजन से पहले तीन टुकड़ों में इसे श्रद्धा से रखा जाता है। एक कौए का, एक श्वान यानी कुत्ते एवं एक अन्य गाय के लिए होता है। असल में कौऐ को दिए जाने वाले ग्रास को काक बलि कहा जाता है। मान्यता है कि इंद्र के पुत्र जयंत का ही एक रूप कौआ है। कई लोग अपने पूर्वजों का पसंदीदा भोजन भी इस दिन बनाते हैं। शुगर, बीपी की समस्या के कारण कम मीठा, कम चिकनाई और कम नमक-मिर्च वाला भोजन बनाया जा रहा है। इस संबंध में कैथल के पंडित कृष्ण दत्त कहते हैं, ‘श्राद्ध में अगर यजमानों के यहां भोजन करने नहीं जाओ तो वो बुरा मान जाते हैं, लेकिन उम्र अधिक होने और शुगर के कारण हलका यानी कम चिकनाई और कम मसाले वाला भोजन लेता हूं।’
पितरों की पसंद के दे रहे कपड़े
श्रद्धा का आलम यह है कि कई यजमान पुरोहित व ब्राह्मणों को वैसे ही कपड़े दे रहे हैं जैसे उनके पितर पहनते थे। किसी को कुर्ता पायजामा, किसी को धोती-कुर्ता तो किसी को कोट पैंट भी मिल रहे हैं। तर्पण कराने वाले ब्राह्मणों को अच्छे चप्पल व जूते भी दिए जा रहे हैं।
कई जगह टिफिन सिस्टम शुरू
समय के साथ एक नया बदलाव भी आया है। पंडितों को अनेक जगह जाना होता है। ऐसे में हर घर में भोजन कर पाना संभव नहीं। कुछ लोग टिफिन बनाकर पंडित जी के घर पहुंचा जाते हैं और वे समय के हिसाब से उसे चखते हैं। इस बारे में पंडित रामकुमार कहते हैं, ‘अब भारी भोजन पचाना मुश्किल हो रहा है। अनेक यजमानों के यहां से टिफिन में भोजन आता है।’ एक अन्य पंडित सोनू ने कहा कि जगह-जगह जाने के बजाय यजमान के घर से टिफिन ही मंगवा लेता हूं।
इस तरह लें संकल्प
यहां के पंडित बनारसी दास शास्त्री कहते हैं कि पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने उनकी सद्गति, तृप्ति और प्रीति के लिए श्राद्ध किया जाता है। यह श्राद्ध तिथि के हिसाब से किया जाता है। गायत्री मंत्र के उच्चारण के साथ शिखा बांधकर, तिलक लगाकर दाहिनी अनामिका के मध्य पोर में दो कुशों और बायीं अनामिका में तीन कुशों की पवित्री धारण कर लें। इसके बाद हाथ में त्रिकुश, यव, अक्षत और जल लेकर संकल्प करें।