For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

प्राथमिकता से हो खाद्य मुद्रास्फीति का नियंत्रण

07:51 AM Jan 03, 2024 IST
प्राथमिकता से हो खाद्य मुद्रास्फीति का नियंत्रण
Advertisement

Advertisement

सुबीर रॉय
अब जबकि अगले साल आम चुनाव होने को हैं तो हम राजनीतिक मंतव्य से प्रेरित आर्थिक नीतियां देखने को तैयार रहें, यहां तक कि सामान्य से कहीं अलहदा। सरकार ने पहले ही संकेत दे दिया है कि आगामी केंद्रीय बजट में कुछ नया शामिल करने का इरादा नहीं है। लिहाजा जो भी सरकार सत्ता में आएगी, उसकी नई नीतियां बनने तक मौजूदा यथास्थिति बनी रहेगी।
एक बार नई सरकार अपनी जगह बैठ गई तो ध्यान का केंद्र चुनाव प्रचार अवधि के दौरान मुफ्त की रेवड़ियों के वादे की एवज में जन-आकांक्षाओं को पहुंचे नुकसान की भरपाई करने पर होगा। इसलिए, जायजा लिया जाए तो चुनाव उपरांत ही वित्तीय लेखा-जोखा दुरुस्त करके, उत्तरदायी सामान्य प्रशासन बनाकर, आर्थिक नीतियों को स्वरूप मिल पाएगा। अतएव, अप्रैल माह तक माहौल मौज-मस्ती का रहेगा और जून के बाद ‘गंभीरता से काम पर पुनः लगने’ वाला चरण शुरू होगा।
जैसे-जैसे नया साल आगे बढ़ेगा, यूक्रेन और पश्चिम एशिया में चल रही लड़ाई जारी रहने और इससे वैश्विक व्यापार में आगे भी अस्थिरता बनी रहेगी। हालांकि, उम्मीद जगाती खबरों की मानें तो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अब शांति वार्ता को राजी हैं और शायद प्रयास फलदायक रहें। लेकिन पूरी संभावना है कि रूस कब्जाए इलाके के कुछ हिस्से अपने पास रखना चाहेगा– जिस पर शायद वोल्दोमीर जेलेंस्की के नेतृत्व वाले यूक्रेन की प्रतिक्रिया यह होगी ‘यह हमारी लाशों पर संभव है’। इसलिए, अब समझदारी यही अंदाज़ा लगाने में है कि लड़ाई जारी रहेगी। वहीं इस्राइल-हमास के बीच भी जंग खत्म होने के आसार फिलहाल क्षीण लगते हैं।
लिहाजा हमें, जारी युद्ध प्रभावित वैश्विक व्यापार और वैश्वीकरण को क्षति भरा एक और साल बिताने की तैयारी करने की जरूरत है। इसके अलावा, एक अन्य खतरा तेजी से उभर रहा है, यमन के हुती विद्रोही लाल सागर से गुजरने वाले समुद्री जहाज़ों को निशाना बना रहे हैं, जिससे उन्हें अफ्रीका वाला लंबा रास्ता अपनाना पड़ रहा है। नतीजतन न केवल अंतर्राष्ट्रीय गंतव्यों तक माल पहुंचाने के समय में बल्कि ढुलाई खर्च में भी इजाफा हो रहा है। पूरी संभावना है कि वैश्विक समुद्री आवाजाही में विघ्न से भारतीय आयात (विशेषकर तेल जैसी आवश्यक वस्तु) एवं निर्यात पर नए सिरे से वित्तीय बोझ पड़ेगा। इन परिस्थितियों के तहत, नई सरकार को ‘बंद अर्थव्यवस्था’ (आयात-निर्यात रहित) चलाने की योजना पर सोचना होगा, अलबत्ता, इससे उच्च आर्थिक दर पाने की हमारी आकांक्षा को धक्का लगेगा।
इन सबके साथ, अगले साल की आर्थिक नीति को पर्यावरणीय परिवर्तनों के परिणामवश अतिशयी मौसमीय घटनाओं का सामना करने को योजना तैयार रखनी होगी। अतएव, यही वक्त है जब केंद्र सरकार चेन्नई और हैदराबाद में आई अचानक बाढ़ सरीखे ऊंचे दर्जे की प्राकृतिक मार झेलने वाले राज्यों की शीघ्रातिशीघ्र मदद के वास्ते एक विशेष फंड बनाए। किसी सूबे को बाढ़ या सूखे का सामना करने पर, आर्थिकी को बहुत नुकसान झेलना पड़ता है और सहायतार्थ केंद्र सरकार से लगातार गुहार लगानी पड़ती है। इस पर आकलन और प्रतिक्रिया करने में केंद्र सरकार को समय लगता है। लिहाजा अतिशयी मौसमी घटनाओं के लिए बना विशेष सहायता-फंड बीमा पॉलिसी सरीखा होगा, जिसे पाने की नियम और शर्तें पूर्वनिर्धारित हों ताकि पावती में कीमती वक्त और स्रोत खराब न होने पाए।
इन तमाम नकारात्मकताओं के बीच, अच्छी खबर यह है कि नया साल 2023 की सकारात्मक आर्थिक विरासत के साथ शुरू होगा। भारत की आर्थिक विकास दर 6.5 प्रतिशत या उससे अधिक रहने की उम्मीद है, मुद्रास्फीति कुल मिलाकर काबू में है, विदेशी मुद्रा भंडार काफी ऊंचा है और मुद्रा-विनिमय दर स्थिर है। बहुस्तरीय एंजेसियों और वैश्विक विशेषकों का कहना है कि विश्व की मुख्य आर्थिक शक्तियों में भारत सबसे ज्यादा तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है। व्यापारिक मोर्चे पर, वस्तु निर्यात की कारगुजारी आगे भी अनुमान के अनुरूप कमज़ोर बनी रहेंगी लेकिन आयात–निर्यात संतुलन में अंतर की क्षतिपूर्ति सेवा निर्यात (विशेषकर सॉफ्टवेयर का), भारतीय आप्रवासियों से भेजे जाने वाले धन और विदेशी पूंजी प्रवाह से हो सकेगी। फिलहाल, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अगले लगभग 18 महीनों तक आयात करने के बराबर है। यह स्थिति पड़ोसी मुल्कों पाकिस्तान और श्रीलंका के मुकाबले कहीं बेहतर है।
आइए अब मुद्रास्फीति के मुख्य कारकों पर निगाह डालें। यह 5.5 फीसदी के साथ नियंत्रण में है, जो कि वहनीय स्तर यानी 6 प्रतिशत से कुछ ही नीचे है। लेकिन खाद्य मुद्रास्फीति (8.7 फीसदी) उच्च बनी हुई है, जो कि देश के गरीब तबके के लिए बुरी खबर है और उनमें अधिकांश पहले ही अतिरिक्त बोझ सहने लायक नहीं बचे, तिस पर बाढ़ अथवा सूखे से खेती प्रभावित होने का खतरा मंडरा रहा है। देश की लगभग आधी आबादी (47 फीसदी) का व्यवसाय कृषि है और इसकी आय का लगभग आधा (54 फीसदी) पेट भरने के इंतजाम में खप जाता है। इस स्थिति का आदर्श हल कृषि उत्पादन में वृद्धि करना है ताकि उतनी फसल कम हाथों के इस्तेमाल से उग पाए, जिससे कि उनकी आय में बढ़ोतरी हो। कार्यबल में महिलाओं की गिनती बढ़ानी चाहिए ताकि वे बच्चे पालने और घर संभालने के काम से इतर रोजगार में लगें, जिससे उनकी आय बढ़े, जबकि छोटे ग्रामीण परिवारों में घर-गृहस्थी की देखभाल करने वाली औरतों को अपने इस काम के बदले कोई औपचारिक कमाई नहीं होती।
वर्ष 2022 के आंकड़ों के अनुसार कुल कार्यबल में मर्दों का अंश 74 प्रतिशत है, जो कि महिलाओं के 24 फीसदी से तिगुणा है। यदि देश में कृषि के लिए हाथों की जरूरत कम करनी है तो इसके लिए उत्पादन और सेवा क्षेत्र में अधिक नौकरियां पैदा करनी पड़ेंगी। उच्च कृषि उत्पादन सदका ग्रामीण आय में बढ़ोतरी होने से ग्रामीण अंचल के लोग अधिक उपभोक्ता वस्तुएं जैसे कि दोपहिया वाहन, टीवी सेट और मोबाइल फोन इत्यादि खरीद पाएंगे, जिससे संलग्न सेवा क्षेत्र में भी ज्यादा मांग पैदा होगी। इस प्राप्ति से ग्रामीण सेवा क्षेत्र में अपने-आप ज्यादा रोजगार अवसर पैदा होंगे।
जहां तक उत्पादन क्षेत्र में नौकरियों की बात है, तेज आर्थिक वृद्धि के साथ उनकी गिनती भी बढ़ेगी, लेकिन इस प्रक्रिया में सहायता तभी मिल पाएगी जब तमाम किस्म के धंधे– चाहे लघु एवं सूक्ष्म स्तर के हों या कॉर्पोरेट्स स्तर के– उन्हें खोलने-चलाने की प्रक्रिया का सरलीकरण हो। साथ ही, कारोबार के लिए वाजिब ब्याज दर पर पूंजी उपलब्ध हो ताकि कारोबारी अपना दायरा बढ़ाने लायक बन पाए (इसके लिए अधिक कार्यकारी पूंजी चाहिए होती है) और नया पूंजीगत निवेश कर पाएं। वहनयोग्य दर पर पूंजी तक पहुंच सुनिश्चित करने को, वास्तविक ब्याज दर को नीचा रखना आवश्यक है (मुद्रास्फीति घटाने के बाद मामूली दर)। इस ध्येय की पूर्ति मुद्रास्फीति के असर को दूर रखकर पाई जा सकेगी और मौजूदा वर्ष के लिए इससे बड़ी चुनौती है खाद्य मुद्रास्फीति दर में कमी लाना। जो भी नई सरकार आएगी, उसके समक्ष दो आर्थिक काम करने को होंगे, एक है कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी और दूसरा, आय सहित रोजगार में महिलाओं के लिए अवसरों में इजाफा करवाना। हालांकि, यह दोनों काम देश की दीर्घ-कालीन कार्यसूची का अंग हैं परंतु मौजूदा साल के लिए, यथेष्ट योजना के साथ इन पर फौरी काम शुरू करने पर ध्यान देना होगा।

लेखक आर्थिक मामलों के  वरिष्ठ विश्लेषक हैं।

Advertisement

Advertisement
Advertisement