अमावस्या पर पका खाना गायों के लिए बन सकता है जानलेवा
जसमेर मलिक
अमावस्या के दिन और खासकर श्राद्ध पक्ष की अमावस्या पर गोवंश को हलवा, खीर, पूरी, रोटी, चावल आदि खिलाकर अगर आप पुण्य कमाना चाहते हैं तो आपको सावधान होने की जरूरत है। वह गाय के लिए जानलेवा भी साबित हो सकता है। ऐसी सूरत में गोवंश को यह सब खिलाना पुण्य की जगह आपके लिए पाप का सबब बन जाता है।
अमावस्या पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए ज्यादातर घरों में हलवा, खीर, पूरी आदि बनती है। बड़ी संख्या में महिलाएं घर में बनी खीर, हलवा, पूरी और रोटी गायों को जाकर खिलाती हैं। ऐसा करने के पीछे उनकी मंशा पुण्य कमाने और अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति देने की रहती है। ये लोग इस तथ्य से अनजान रहते हैं कि वह गोवंश को हलवा, पूरी, खीर और रोटी खिलाकर उसकी सेहत के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ कर रहे हैं। कई बार गाय की जान भी ले रहे हैं।
जींद के एडीसी आईएएस अधिकारी और पशु चिकित्सक डॉ. हरीश वशिष्ठ के अनुसार गाय या दूसरे पशुओं को बहुत कम मात्रा में अनाज की जरूरत पड़ती है। गाय और दूसरे पशुओं का पेट केवल चारे से भरता है। अनाज अधिभार एक ऐसा रोग है, जो जुगाली करने वाले पशुओं में पाया जाता है। इस रोग में अपच, डिहाइड्रेशन, एसिडोसिस, असंयम और आमतौर पर इसमें पशु की मौत तक हो जाने की संभावना बनी रहती है। इस रोग के मुख्य कारण गेहूं, ज्वार, बाजरा, पूरी, चावल, खीर, रोटी आदि बड़ी मात्रा में अचानक सेवन करना बनता है। कार्बोहाइड्रेट युक्त राशन गोवंश और दूसरे पशुओं के लिए कतई सुरक्षित नहीं माना जाता।
डॉ. हरीश वशिष्ठ के अनुसार अनाज के अत्यधिक सेवन से गाय के पेट में 2 से 6 घंटे के भीतर ही बड़ी मात्रा में लैक्टिक एसिड बढ़ जाता है। इससे गाय के पेट के अंदर द्रव भरने लगता है और उसके शरीर में डिहाइड्रेशन हो जाता है। लैक्टिक एसिड होने के बाद गाय या दूसरे पशु के रक्त में एसिड की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। इस बीमारी को रूमेनिक एसिडोसिस कहा जाता है। इससे पशु के पेट में गैस बनकर अफारा हो जाता है। इन लक्षणों से दिल और गुर्दे फेल भी हो सकते हैं। इससे पशु की मौत हो जाती है। जो पशु ज्यादा मात्रा में अनाज का सेवन करने के बाद जीवित रहते हैं, उनमें कई दिनों तक माइकोटिक रूमेनाइटिस हो जाता है, या यकृत में फोड़े हो सकते हैं।
डॉ. वशिष्ठ सुझाव देते हैं कि श्राद्ध पक्ष की अमावस्या या सामान्य अमावस्या पर आपको अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए गायों को भोजन करवाना ही है तो सवा मन चारा दान करें, जिसे चारे की सवामनी भी कहा जाता है। उनका कहना है कि पशुओं को अपने आहार में बहुत कम मात्रा में अनाज की जरूरत पड़ती है।