कोहरा-कहर और सितम
इन दिनों उत्तर भारत समेत देश के तमाम भागों में शीतलहर और कोहरे का प्रकोप व्याप्त है। जगह-जगह से खबरें आ रही हैं कि मैदानी इलाकों में कहीं तापमान जमाव बिंदु तो कहीं माइनस तक जा पहुंचा है। ऋतुचक्र में बदलाव कुदरत का नियम है। गर्मी के बाद बरसात और फिर ठंड, जीवन सृष्टि का नियम है। लेकिन जब ये स्थितियां चरम की ओर बढ़ती हैं तो लोगों को खासी मुश्किल होती है। खासकर समाज में निर्धन व बेघर लोगों के लिये तो यह कष्टकारी समय है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या कोहरे के कारण यातायात में आने वाली बाधा है। देश में तमाम हवाई उड़ानें व रेलों के आवागमन में व्यवधान आम बात होती है। सैकड़ों ट्रेन घंटों देरी से चल रही हैं। निश्चित रूप से यात्रियों के लिये ठंड में घंटों की प्रतीक्षा कष्टकारी होती है। कमोबेश, हवाई यात्रियों के साथ भी ऐसी दिक्कतें इस मौसम में आती हैं। विडंबना यह है कि जिस देश के पास चंद्रमा, मंगल व अंतरिक्ष तक पहुंचने की कूवत है, वहां हम कोहरे के दौरान सुरक्षित यातायात सुनिश्चित नहीं कर पाते? हर बार कोहरे के दौरान हवाई जहाजों व ट्रेनों के सुचारु संचालन के लिये उन्नत तकनीक के प्रयोग की बात होती है। मौसम सामान्य होते ही बात आई-गई हो जाती है। बहरहाल, सोमवार को दिल्ली में उड़ान में देरी से क्षुब्ध एक यात्री द्वारा पायलट के साथ अभद्र व्यवहार की घटना दुर्भाग्यपूर्ण ही कही जाएगी। निश्चित रूप से विलंब परेशान करता है लेकिन हवाई उड़ानों का मामला बेहद संवेदनशील व जोखिमभरा होता है। कोहरे के कारण दृश्यता कम होने पर परिचालन में जरा-सी चूक से सैकड़ों जानों काे खतरा पैदा हो जाता है। ऐसे में यदि उड़ान में विलंब होता है तो यह यात्रियों की सुरक्षा के लिये ही होता है। निश्चित रूप से अभद्रता करने वाले यात्री को इस घटना के बाद दंडित किया जाएगा। लेकिन असुविधा के बावजूद संयम खोने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती।
निश्चित रूप से मौसम की प्रतिकूलता के दौरान जीवन व यातायात सामान्य रह सके, इसके लिये युद्धस्तर पर ठोस कदम उठाने की जरूरत है। शासन-प्रशासन को ‘आग लगने पर कुआं खोदने’ वाली सोच से बचना चाहिए। इसके बावजूद दिल्ली हवाई अड्डे पर गोवा जाने वाली फ्लाइट में तेरह घंटे के विलंब से बौखलाए यात्री द्वारा चालक दल से अभद्रता स्वीकार्य नहीं है। बताया जा रहा है कि यात्री का कहना था कि यदि उड़ान में ज्यादा विलंब हो रहा है तो उसे उतरने की अनुमति दी जाए क्योंकि वह लंबे समय तक बैठा नहीं रह सकता। समाधान का एक पहलू यह भी है कि विमानन सेवा से जुड़े प्रबंधन द्वारा ऐसी विकट स्थितियों की पूर्व सूचना लगातार यात्रियों को देने का तंत्र विकसित किया जाए। उन्हें मौसम के अपडेट से यात्रा पूर्व ही अवगत कराने के प्रयास होने चाहिए। साथ ही उड़ान में यदि ज्यादा देरी है तो उनको सहज बनाने के विकल्पों पर भी विचार किया जाना चाहिए। हालांकि, सुरक्षा कारणों से विमान से यात्रियों को उतरने की इजाजत नहीं होती, लेकिन यदि विलंब ज्यादा है तो सुविधाजनक विकल्प तलाशे जाने चाहिए। यात्री धैर्य न खोएं इसके लिये हवाई अड्डे पर राहतकारी व्यवस्था जरूर होनी चाहिए। वहीं यात्रियों को भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी विमान चालक दल के सदस्य के साथ यदि असहज करने वाली स्थितियां उत्पन्न होती हैं तो इसका नकारात्मक असर चालक दल की परिचालन क्षमता और मनोदशा पर पड़ सकता है। एक चालक के हाथ में सैकड़ों यात्रियों का जीवन भी होता है। यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि विमानों की सुरक्षित उड़ान काफी हद तक मौसम की दशा-दिशा पर निर्भर करती है। इसमें जरा-सी चूक अथवा परिस्थितियों का समुचित आकलन न कर पाना बड़ा खतरा पैदा कर सकता है। निश्चित रूप से चालक दल का पहला कर्तव्य होता है कि विमान को सुरक्षित ढंग से गंतव्य स्थल तक पहुंचाया जाए। जिसके लिये वह अपने विवेक से विमान परिचालन करता है। ऐसे में किसी भी तरह की अभद्रता उसकी एकाग्रता को बाधित कर सकती है।