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सैलाब के सवाल

08:49 AM Dec 27, 2023 IST

यह अच्छी बात है कि साल के समापन और नये साल के स्वागत से जुड़े आयोजनों व पर्यटन के लिये हिमाचल की वादियों में सैलानियों का सैलाब उमड़ा है। यह सुखद है कि मानसून की अतिवृष्टि से आहत हिमाचल में अरसे बाद पर्यटन की रंगत नजर आ रही है। होटल-गेस्ट हाउस फुल हैं। अटल टनल से लेकर सड़कों तक में कारों के काफिले ही काफिले नजर आ रहे हैं। निश्चित रूप से हिमाचल की आर्थिकी के लिये यह शुभ संकेत हैं। लेकिन इसके बावजूद हमें पहले पर्यटन के अनुरूप ढांचा भी तैयार करना है। यह अच्छी बात नहीं है कि शिमला व कुल्लू मनाली की तरफ जाने वाले हाईवे पर कारों के कई किलोमीटर लंबे जाम नजर आ रहे हैं। यह तार्किक है कि जब देश के विभिन्न भागों से लोग नया साल का जश्न मनाने पहाड़ों की तरफ आ रहे हैं तो उनकी सुख-सुविधा का ख्याल रखना भी जरूरी है। जिन स्थानों पर अक्सर जाम लगता है, वहां ऐसी वैकल्पिक व्यवस्था होनी चाहिए जो पर्यटकों के लिये राहतकारी हो। आसपास जरूरी चीजों की दुकानों,पानी और प्रसाधन आदि की व्यवस्था होनी चाहिए। कहीं न कहीं वाहनों के पंजीकरण और सड़कों पर वाहनों के दबाव को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाना चाहिए। ऑनलाइन पंजीकरण के जरिये वाहनों का आगमन नियंत्रित किया जा सकता है। पर्यटन के सीजन में शासन-प्रशासन को भी पर्यटकों की सुख-सुविधा का विशेष ख्याल रखना चाहिए। प्रयास हो कि पर्यटकों से वस्तुओं के जायज दाम लिए जाएं। अक्सर देखा जाता है कि पीक सीजन में होटल मालिक पर्यटकों से मनमाने किराये वसूलते हैं। सामान के दाम भी महंगे हो जाते हैं। प्रयास हो कि बाहर से आने वाला पर्यटक राज्य से अच्छा अनुभव लेकर जाए। इसके अलावा यह भी है कि राज्य का पर्यटन विभाग राज्य के नये पर्यटक स्थलों को प्रचारित-प्रसारित करे। जिससे परंपरागत पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों का दबाव कम हो सके। साथ ही पहले ही आबादी के बोझ से चरमरा रहे हिल स्टेशनों को कुछ राहत मिल सके।
लेकिन वहीं सरकार को हाल के मानसून में अतिवृष्टि से बाढ़ व भूस्खलन की त्रासदी को याद रखना चाहिए। हमें पर्यटन को तो बढ़ावा देना चाहिए लेकिन पहाड़ के पर्यावरण को भी बचाने का प्रयास करना चाहिए। हमें तात्कालिक आर्थिक हितों के बजाय पहाड़ों के दूरगामी भविष्य को ध्यान में रखना चाहिए। पहाड़ के साथ सहजता व सामंजस्य का व्यवहार अपरिहार्य है। दरअसल, हिमालय के पहाड़ अपेक्षाकृत नये हैं,जिन पर आधुनिक विकास व निर्माण का ज्यादा बोझ नहीं डाला जा सकता। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तमाम पर्यावरणवादी मानते रहे हैं कि ये पहाड़ फोर-लेन के लिये नहीं बने हैं। सड़कों के विस्तार के लिये जहां पहाड़ों की जड़ों को खोदा गया,वहां इस बार भूस्खलन का ज्यादा प्रकोप देखा गया। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पहाड़ हमारी विलासिता के लिये नहीं बने हैं। ये अध्यात्म के स्थल भी हैं और आस्था के केंद्र भी हैं। पर्यटक पहाड़ों पर सिर्फ मौज-मस्ती के लिये न आयें। प्रकृति के सौंदर्य का भी संरक्षण जरूरी है। वह तभी संभव है जब हमारा व्यवहार पहाड़ की संस्कृति के अनुरूप होगा। इसके लिये जरूरी है कि हम पर्यावरण व प्रकृति की गरिमा के अनुरूप व्यवहार करें। आज जब पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिंग के घातक प्रभावों से जूझ रहा है तो देश के पर्यावरण और मौसम को प्रभावित करने वाले पहाड़ों के परिवेश का संरक्षण बेहद जरूरी है। हाल के दिनों में जोशीमठ के भूस्खलन के बाद यह बात सामने आई है कि पहाड़ जनसंख्या के बोझ से चरमरा रहे हैं। हिमाचल के कई जिले इस दृष्टि से संवेदनशील पाये गये हैं। नीति-नियंताओं को विकास व पर्यटन की दृष्टि से पहाड़ों के साथ संवेदनशील व्यवहार करना चाहिए। हमें न केवल वर्तमान को सुखदायी बनाना है बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिये पहाड़ों का पर्यावरण संरक्षित भी करना है। पहाड़ सुकून के लिये हैं, हमारी भोग-विलासिता के लिये नहीं है। यह बात सरकारों को भी ध्यान में रखनी है और पर्यटकों का आचरण भी इसके ही अनुरूप होना चाहिए।

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