धमकियों की उड़ान
यह सवाल हर भारतीय को परेशान कर रहा है कि भारतीय एयरलाइन्स के जहाजों को लेकर दी जा रही धमकियों की यह बाढ़ सी क्यों आ रही है? आखिर फ्लाइट्स को डिजिटली धमकी देने वालों तक हमारा खुफिया तंत्र क्यों नहीं पहुंच पा रहा है? बार-बार मिलने वाली फर्जी धमकियों से जहां इन विमानन कंपनियों को आर्थिक नुकसान हो रहा है, वहीं यात्रियों को उड़ान में देरी व सुरक्षा जांच के चलते भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। विमानन कंपनियों के आर्थिक नुकसान व यात्रियों पर मानसिक दबाव के मद्देनजर जो तत्परता सरकार की तरफ से दिखायी जानी चाहिए थी,वो नजर नहीं आ रही है। इस घटनाक्रम से आम यात्रियों में हवाई यात्रा को लेकर असुरक्षाबोध पैदा हो रहा है। हालांकि, अधिकांश धमकियां फर्जी ही निकली हैं, लेकिन इन अपराधियों तक पहुंचना जरूरी है। चिंता यह भी कि यदि भविष्य में किसी आतंकी साजिश के प्रति कोई वास्तविक सचेतक सूचना भी आएगी तो संभव है, उसे गंभीरता से न लिया जाए। अत: हर स्तर पर सावधानी बरती जानी जरूरी है। वहीं ऐसी हरकत करने वाले असामाजिक तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की जरूरत है। इस तरह लगातार मिल रही धमकियों की वजह से निरंतर फ्लाइट्स देर से उड़ान भर रही हैं, यात्री और उनके परिजन परेशान हो रहे हैं। विमानन कंपनियों को अपनी फ्लाइट कैंसिल करनी पड़ रही हैं।
ऊपरी तौर पर ऐसे घटनाक्रम का आर्थिक नुकसान विमानन कंपनियों को हो रहा है, लेकिन बाद में उसका असर आखिर यत्रियों की जेब पर ही पड़ना स्वाभाविक है। कुल मिलाकर नुकसान देश का ही है। लेकिन सरकार की तरफ से ऐसा संकेत नहीं मिल रहा है कि इससे निपटने के लिये कोई बड़ी व कड़ी कार्रवाई की जा रही है। कमोबेश ऐसी ही स्थिति ट्रेनों के मार्ग पर लगातार अवरोधक लगाने की घटनाओं से भी सामने आई है। जिसके सामने तंत्र लाचार नजर आता है। सरकार को समझना चाहिए कि ऐसे अफरा-तफरी के माहौल से विमानन कंपनियों की सेवा व सुरक्षा व्यवस्था के प्रति लोगों में अविश्वास पैदा होता है। वास्तव में होना तो यह चाहिए कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था इतनी चाक-चौबंद हो कि ऐसी फर्जी धमकियों पर विचलित होने के बजाय उड़ानों का संचालन सहज ढंग से हो सके। कहीं न कहीं हमारे तंत्र में आत्मविश्वास की कमी की वजह से भी ऐसी अफरा-तफरी मचती है। हमारा सुरक्षा तंत्र इतना लचर भी नहीं होना चाहिए कि एक फर्जी धमकी से हम भयभीत हो जाएं। किसी भी स्तर पर लापरवाही की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। देखना यह भी जरूरी है कि फर्जी धमकी देने वाले सुरक्षित कैसे बच रहे हैं। लगातार विस्तार पाती डिजिटल दुनिया में होने वाले साइबर अपराधों की तह तक पहुंचने वाला हमारा तंत्र कमजोर क्यों नजर आ रहा है। क्यों हम धमकी भेजने वाले के ई-मेल पते को ट्रेस नहीं कर पा रहे हैं। आधुनिक तकनीक से डिजिटल निगरानी को वक्त की जरूरतों के हिसाब से तैयार किया जाना चाहिए।