मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

प्रेम के पांच रंग

06:30 AM Sep 24, 2023 IST

स्वाति श्वेता

Advertisement

(1)

मेरी मुहब्बत की चाक पर
तुम्हारी मिट्टी खामोशी में ही
कई खूबसूरत रूप ले
उतर गई...

चाक अब भी घूम रही है।

Advertisement

(2)

मैं शब्द थी
बिखरती रही तुम्हारे गीतों में
तुम आरजू थे
सिमटते रहे मेरे ख्वाबों में...

(3)

शाम के पीले अलाव में
पुरइन की पात पर से
फिसलता है सूरज...

कुछ रंग चटकते हैं
यादों के शिगाफों में से
फिर भी
खामोशी के पन्नों पर
हरफ़ों में छिपी रह जाती हैं
प्यार की अमराइयां...

(4)

तू धूप बना रहा
मेरे सर्द दिनों की,
मेरी गर्म रातों का
बना रहा तू ठंडी बयार...
रात-दिन मुझ ख़िज़ां पर
बस तू लाता रहा बहार
झड़ने से पहले भी
झड़ने के बाद भी।
इस देह के सारे मौसम
बस तुझसे बने रहे...

(5)

कुछ और कविताएं लिखूंगी
मैं पलाश पर,
तुम आसमान की
कानात के नीचे रंग भरते रहना,
मेरी आवाज़ को
यूं ही थपकियां देते रहना।
शाम रोज
ऐसे ही अंगड़ाई लेती रही
सूरज धीरे-धीरे
ऐसे ही अपनी गश्त
पूरी करता रहा।

तुम यूं ही बोते रहना मुझे
अपने मन की ज़मीन पर
गेहूं की फसल की तरह,
मैं हमेशा लहलहाती रहूंगी।

Advertisement