प्रथम पूज्य व विघ्नहर्ता सिद्धिविनायक श्रीगणेश
डॉ. पवन शर्मा
आस्था के आकार और धर्म के धरातल पर भारतीय संस्कृति में गणेशजी को प्रथम पूज्य कहा गया है। वैदिक सनातन धर्म में प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता सिद्धिविनायक भगवान गणेश जी का प्राकट्य दिवस भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के मध्याह्न काल में हुआ। सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति में भगवान गणेश को विद्या-बुद्धि का प्रदाता, विघ्न-विनाशक, मंगलकारी, रक्षाकारक, सिद्धिदायक, समृद्धि, शक्ति और सम्मान के प्रदान करने वाले देव माने गए हैं।
शिवपुराण के अनुसार देवी पार्वती ने उबटन से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाल दिए। इस बालक को द्वारपाल बना माता पार्वती ने स्नान से पूर्व आदेश दिया कि वह उनकी आज्ञा के बिना किसी को भी अन्दर नहीं आने दें और स्नान के लिए चली गई। तभी भगवान शंकर आते हैं और अन्दर जाने का प्रयास करते हैं लेकिन बालक उन्हें अंदर नहीं जाने देता है। भगवान शिव के बार-बार कहने पर भी बालक नहीं मानता है। इससे भगवान शिव को क्रोध आ जाता है और वे अपने त्रिशूल से बालक के सिर को धड़ से अलग कर देते हैं। इससे माता पार्वती क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने मां जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया। तब मृत्युंजय भगवान रुद्र ने बालक के धड़ पर गज मस्तक रखकर उसे पुनर्जीवित किया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक को आशीर्वाद देते हुए कहा हे गिरिजानंदन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। उन्होंने बालक को सब का पूज्य बनाकर अपने समस्तगणों का अध्यक्ष बनाने की घोषणा की और कहा कि हे गणेश्वर! तुम भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुए हो, इस स्थिति में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश होगा और सब सिद्धियां प्राप्त होगी। इस दिन व्रत से प्रसन्न होकर गणेश जी सब संकट दूर कर देते हैं।
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन निषिद्ध किया गया है। माना जाता है कि जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है। यदि दैववश चंद्र दर्शन हो जाएं तो इस दोष शमन के लिए स्यमन्तक मणि का आख्यान सुनना चाहिए। सृष्टि निर्माण के समय ब्रह्मा जी के समक्ष जब सब बाधाएं उत्पन्न होने लगीं तो उन्होंने गणेश की स्तुति कर सृष्टि निर्माण निर्विघ्न संपन्न होने का वर मांगा। उस दिन भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी थी। गणेश जी ने अभीष्ट वर प्रदान किया, तब से इसी दिन से गणेश उत्सव मनाया जाता है।
इसी दिन जब गणेश जी पृथ्वी लोक पर आ रहे थे, तब चंद्रमा ने गणेश जी का उपहास उड़ाया। तब गणेश जी ने चंद्रमा को श्राप दिया कि आज के दिन जो भी तुम्हें देखेगा वह मिथ्या कलंक का भागी होगा। चंद्रमा लज्जित हुए, तब ब्रह्माजी तथा देवताओं की प्रार्थना पर चंद्रमा को क्षमा करते हुए श्री गणेश ने कहा जो शुक्लपक्ष की द्वितीया के चंद्र दर्शन करके चतुर्थी को मेरा विधिवत् पूजन करेगा, उसे चंद्र दर्शन का दोष नहीं लगेगा।
हम भारतीय सभी मांगलिक कार्यों में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा करते हैं। ‘विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा। संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।’