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पहले रुचि को पहचानें फिर कैरियर की दिशा जानें

08:47 AM Jan 25, 2024 IST
पहले रुचि को पहचानें फिर कैरियर की दिशा जानें
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सोनम लववंशी
बच्चे की योग्यता को परखना, समझना और फिर उसे उसी दिशा में आगे बढ़ाना, आसान नहीं है। न परिवार के लिए और न स्कूल के लिए। बेशक, अमेरिकी स्कूलों में यह काम बरसों पहले ही शुरू हो गया। अभी यह काम हमारे देश में शुरू नहीं हुआ, पर होना चाहिए। इसलिए कि एक क्लास के सभी बच्चे समान योग्यता के नहीं होते। कुछ बच्चे ऐसे होते हैं, जिनकी समझने की शक्ति बाकी स्टूडेंट से अलग होती है। जिस बात को समझने में बाकी बच्चों को एक घंटा लगता है ये बच्चे उसे 15 मिनट में समझ जाते हैं। इसलिए जरूरी है कि बच्चों को उनकी रुचि के साथ उनकी योग्यता को भी परखा जाना चाहिए और उसे आगे बढ़ाने की सोच होना चाहिए।
अक्षय ने अपने दोस्तों की बात में आकर साइंस संकाय ले लिया। जब सेमेस्टर एग्जाम हुए तो बहुत कम नंबर आए। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। उसे लग गया कि वह साइंस नहीं पढ़ सकेगा। इससे वह तनाव में रहने लगा, यह देखकर उसके माता-पिता ने काउंसलिंग कराई। उससे पता चला कि उसे कॉमर्स लेना चाहिए था। सेशन के बीच में उसका विषय बदला गया तो एग्जाम में अच्छे नंबर आए। ऐसा ही एक मामला अंशिका का भी है जिसके माता-पिता दोनों डॉक्टर हैं। उनकी इच्छा थी कि बेटी भी साइंस ले और डॉक्टर बने। लेकिन, अंशिका की रुचि इंटीरियर डेकोरेशन में थी। उसने कुछ दिन साइंस की पढ़ाई भी की, पर मन नहीं लगा। इसके बाद परिवार ने उसे अपनी रुचि का विषय दिलाया।

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बच्चों की रुचि का रखें ख्याल

ये हमारे आसपास के वे उदाहरण हैं, जो हम रोजमर्रा की जिंदगी में देखते रहते हैं। लेकिन, अकसर बच्चे की रुचि को परिवार गंभीरता से नहीं लेता। वे अपना सपना बच्चे पर थोपना चाहते हैं! जबकि, हर बच्चे में अपनी अलग प्रतिभा होती है, बचपन में ही बच्चे की काउंसलिंग कराकर उसका पता किया जा सकता है। हमारे देश में अभी इसकी कमी है। बच्चे घर वालों के दबाव में अपनी प्रतिभा को समझ नहीं पाते और फिर उसी विषय को लेकर पढ़ाई करते रहते हैं।

काउंसलिंग से समझें बच्चों का रुझान

अमेरिका समेत कई देशों में इस दिशा में काफी पहले से काम शुरू हो गया। वहां स्कूली शिक्षा के दौरान ही बच्चे की रुचि से उसकी प्रतिभा को परख लिया जाता है। काउंसलिंग के जरिये पता कर लिया जाता है कि बच्चा आगे चलकर क्या बेहतर करना चाहता है। अमेरिका में रह रहे एक भारतीय परिवार की बेटी को खगोल शास्त्र में काफी रुचि थी। वह अक्सर रात को आसमान की तरफ देखा करती थी। तारे क्या हैं, चांद छोटा और बड़ा क्यों होता है और पृथ्वी घूमती क्यों है! ऐसे कई सवाल वो पूछती थी। काउंसलिंग की गई तो पता चला कि बड़ी होकर वह खगोल विज्ञानी बनकर ‘नासा’ में काम करना चाहती है। इसके बाद उसकी रुचि को ही आगे बढ़ाया गया। यही स्थिति यदि हमारे यहां होती तो उस बच्ची को किसी और विषय की पढ़ाई में लगा दिया जाता।
10वीं के बाद बच्चा कौन सा विषय चुने, यह बेहद गंभीर मसला है। क्योंकि, यह फैसला उसके कैरियर की पहली सीढ़ी होता है। यहां जिस भी विषय का चुनाव किया जाता है, बाद में वही आगे की पढ़ाई और कैरियर की दिशा भी निर्धारित करता है। विषय के चुनाव को लेकर बच्चे व पैरेंट्स पसोपेश में रहते हैं। लेकिन माता-पिता खुद तय कर लेते हैं। कई बार टीचर्स से सलाह ली जाती है। कई बार बच्चा दोस्तों के साथ विषय चुन लेता है। जबकि, इसके लिए बाकायदा काउंसलिंग होना चाहिए।

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व्यावहारिक पक्ष को न करे दरकिनार

एक बच्चे रोहित को वाद-विवाद स्पर्धाओं में भाग लेना अच्छा लगता था। परिवार को लगा कि उसकी तर्क क्षमता अच्छी है, तो वकील बनेगा। लेकिन, इस बात की क्या गारंटी कि उसमें अच्छा वकील बनने की भी क़ाबिलियत है! रुचि के साथ उसका व्यावहारिक पहलू भी देखा जाना जरूरी है। उसे मनोवैज्ञानिक तरीके से परखा जाना जरूरी है।

हर बच्चा अपने आप में यूनिक

हर बच्चे में कोई न कोई खूबी जरूर होती है। ज्यादा जिम्मेदारी परिवार और स्कूल की है कि वे उसे सही समय पर पहचाने और सही फैसला लें। कई बार माता-पिता अपने बच्चे की क़ाबिलियत पहचान तो लेते हैं। लेकिन, वे या तो उस पर अपने सपनें थोप देते हैं, या फिर बच्चे की मर्जी पर छोड़ देते हैं। इस गलती का अहसास उन्हें बाद में होता है। आजकल हर फील्ड में उजला कैरियर है, बस जरूरत है, बच्चे की रुचि परखने की, उसे तराशने की और उस दिशा में आगे बढ़ने की।

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