जम्मू-कश्मीर में पहली परीक्षा
आखिरकार लंबे इंतजार के बाद केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिये चुनावों की घोषणा कर दी गई है। वहीं हरियाणा में एक माह पूर्व चुनाव कराने की घोषणा हुई है। जे एंड के राज्य में तीन चरणों में मतदान 18 व 25 सितंबर व एक अक्तूबर को होगा। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने तीस सितंबर तक राज्य में विधानसभा चुनाव कराने के आदेश दिये थे। उल्लेखनीय है कि जे एंड के में अनुच्छेद 370 निरस्त करने के बाद इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था। तब से राज्य में राष्ट्रपति शासन चला आ रहा था। बहरहाल, परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद अब चुनावी परिदृश्य बदल गया है। एक ओर जम्मू क्षेत्र में परिसीमन के बाद विधानसभा सीटों की संख्या 37 से बढ़कर 43 हो गई हैं, वहीं कश्मीर विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 46 से बढ़कर 47 हो गई हैं। निश्चित तौर पर परिसीमन से बदलाव का असर राजनीतिक परिदृश्य पर पड़ेगा। लेकिन हाल के दिनों में राज्य में जैसे सिलसिलेवार तरीके से आतंकी हमले हुए हैं, वहां शांतिपूर्ण चुनाव प्रचार व मतदान कराना एक बड़ी चुनौती होगी। हाल के दिनों में आतंकवादियों ने अपनी रणनीति व सक्रियता के क्षेत्रों में बदलाव किया है। वे अब हिंदू-बहुल क्षेत्रों को निशाना बना रहे हैं जहां लंबी शांति व अन्य कारणों से सुरक्षा बलों की संख्या कम की गई थी। वहीं मुस्लिम बहुल कश्मीर में आतंकी गतिविधियां कम नजर आई हैं। ऐसी स्थिति में भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के सामने शांतिपूर्ण चुनाव प्रचार व मतदान सुनिश्चित करने की बड़ी चुनौती होगी। निश्चित रूप से भारत विरोधी ताकतें इन चुनावों में बाधा डालने का प्रयास करेंगी। मतदाता निर्भय होकर मतदान करने निकलें इसके लिये अनुकूल माहौल बनाना जरूरी होगा। एक ओर जहां जम्मू में भाजपा व कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला नजर आता है, वहीं दूसरी ओर कश्मीर में मैदान खुला होगा। जहां फारूख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस तथा महबूबा मुफ्ती की पीडीपी के साथ ही सज्जाद लोन की जेएंडके पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, अल्ताफ बुखारी की जेएंडके अपनी पार्टी व पूर्व कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद की पार्टी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी मैदान में होगी। आशंका है कि कट्टरपंथी रुझान वाले आजाद उम्मीदवार भी मुकाबले में आ सकते हैं।
वहीं दूसरी ओर दिल्ली से सटे हरियाणा में भी विधानसभा के लिये चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी गई है। यहां एक ही चरण में एक अक्तूबर को चुनाव होंगे और चार अक्तूबर को जम्मू-कश्मीर के साथ ही चुनाव परिणामों की घोषणा की जाएगी। जाहिरा तौर पर एक दशक से राज्य की सत्ता पर काबिज भाजपा को सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला करना पड़ सकता है। जिसकी बानगी पिछले महीनों में हुए लोकसभा चुनावों में नजर आई थी। हालिया लोकसभा चुनाव में पांच सीटें जीतने से उत्साहित कांग्रेस पूरे दमखम के साथ चुनाव मैदान में उतरेगी। यदि पिछली बार के विधानसभा चुनावों की तरह ही इस बार भी किसी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी जैसे दलों की भूमिका किंगमेकर की हो सकती है। दरअसल, हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल तीन नवंबर को खत्म हो रहा है। हरियाणा में लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने मनोहर लाल को मुख्यमंत्री पद से हटाकर नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाया था। लेकिन इसके बावजूद वर्ष 2019 में दस में से दस लोकसभा सीटें जीतने वाली भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव में पांच सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। इससे पहले बीजेपी व जेजेपी गठबंधन में खटास पड़ गई थी। दुष्यंत चौटाला के अलग होने पर भाजपा ने निर्दलीयों की मदद से सरकार चलाई। बहरहाल, राज्य में भाजपा व कांग्रेस में कड़े मुकाबले का कयास राजनीतिक पंडित लगा रहे हैं। दरअसल, हाल ही में चुनाव आयुक्तों द्वारा चुनाव संबंधी तैयारियों का जायजा लेने के लिये हरियाणा का दौरा करने के बाद संकेत मिलने लगे थे कि जल्दी चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा की जा सकती है। हरियाणा के बाईस जिलों में नब्बे सीटों में 73 सामान्य व 17 आरक्षित हैं। राज्य के दो करोड़ के करीब मतदाता नब्बे सीटों पर प्रत्याशियों के भविष्य का फैसला करेंगे। विश्वास किया जाना चाहिए कि इस चुनाव के जरिये जागरूक मतदाता लोकतांत्रिक परंपराओं को समृद्ध करने में रचनात्मक भूमिका निभाएंगे।