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नेताओं पर बनी फिल्में विवाद और प्रतिसाद

08:26 AM Jul 15, 2023 IST
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हेमंत पाल

फ़िल्में मनोरंजन का माध्यम होती हैं, इनका राजनीति से कोई वास्ता नहीं होता। लेकिन, फिर भी फिल्मों के नाम पर राजनीति भी होती है और राजनीतिक विषयों पर फ़िल्में भी बनती रहती हैं। यहां तक कि कई राजनेताओं पर भी फ़िल्में बनाई जाती हैं। इंदिरा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री से लेकर नरेंद्र मोदी तक पर फ़िल्म बनी। लेकिन, कुछ ऐसे जन नेताओं पर भी फ़िल्में बनाई गई, जो किसी बड़े पद पर नहीं पहुंचे। अभी भी देश के दो प्रधानमंत्रियों पर बन रही फ़िल्में चर्चा में हैं। एक है इंदिरा गांधी पर और दूसरी अटल बिहारी वाजपेयी पर। ये दोनों राजनेता अपने समय में काफी चर्चित रहे। नाम से जाहिर है इंदिरा गांधी पर बन रही नई फिल्म 'इमरजेंसी' इस महिला राजनेता के विवादास्पद दौर के फैसलों पर बन रही है।
'आंधी' से 'इंदु सरकार' तक
इससे पहले गुलजार ने 1975 में 'आंधी' फिल्म बनाई थी, जिसमें फिल्म की नायिका सुचित्रा सेन एक महिला राजनेता के किरदार में नजर आई थीं। हालांकि, फिल्म की कहानी से इंदिरा गांधी का कोई तारतम्य नहीं था, पर नायिका के पहनावे को पूर्व प्रधानमंत्री से जोड़कर देखा गया। विवाद होने पर इस फिल्म को प्रतिबंधित कर दिया गया था। साल 1977 में जब कांग्रेस सरकार गिरी और जनता पार्टी की सरकार आई, तब इस फिल्म को रिलीज़ किया। वैसे इंदिरा गांधी पर पहले भी कई फिल्में बन चुकी हैं, जिसमें पहले आई फिल्मों के अलावा 2005 में आई अमु, 2016 में रिलीज हुई अक्तूबर, 2017 में आई 'इंदु सरकार' शामिल हैं। वहीं कई फिल्मों की कहानी में इंदिरा गांधी को भी जोड़ा गया। ऐसी फिल्मों में बेल बॉटम, पीएम नरेंद्र मोदी, थलाइवी और ठाकरे के नाम सामने आते हैं।

खींचतान ही ज्यादा हुई
नेताओं के जीवन पर , हालांकि, कोई भी फिल्म ऐसी नहीं आई जो यादगार बने। बल्कि, ऐसी राजनीतिक फिल्मों को लेकर खींचतान ही ज्यादा हुई। पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर तो आज तक कोई फिल्म नहीं बनी, पर एक अमेरिकन फिल्म डायरेक्टर ने 'अ डे इन द लाइफ ऑफ प्राइम मिनिस्टर नेहरू' नाम की डॉक्यूमेंट्री जरूर बनाई थी। साल 2019 में आई फिल्म 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर बनाई गईजो उनके मीडिया एडवाइजर रहे संजय बारू की किताब पर बनी थी। इस फिल्म के जरिए उन्हें कांग्रेस आलाकमान की कठपुतली बताया गया, जो चाहकर भी अपने फैसले नहीं ले पाए। यह फिल्म विवादों में तो आई, पर चली नहीं। इसी साल आई फिल्म 'द ताशकंद फाइल्स' को विवेक अग्निहोत्री ने बनाया था व मूल कथानक पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमयी मौत पर था। फिल्म के जरिये तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर सवाल खड़े किए गए थे। इसमें एक डायलॉग है 'दुनिया की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी का दूसरा प्रधानमंत्री ताशकंद जाता है। ताशकंद वॉर ट्रीटी पर साइन करता है और मर जाता है। सैकड़ों सस्पीशियस होते हैं, लेकिन एन्क्वायरी कमीशन नहीं बैठाया जाता!'
बायोपिक के रूप में कथानक
'पीएम नरेंद्र मोदी' फिल्म भी 2019 में ही आई थी जिसे बायोपिक की तरह बनाया गया। इस फिल्म को 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले परदे पर लाने की तैयारी थी। लेकिन, रोक लगा दी गई व बाद में रिलीज की। लेकिन, फिल्म को वो सफलता नहीं मिली, जिसकी उम्मीद शायद निर्देशक उमंग कुमार ने की होगी। फिल्म में नरेंद्र मोदी का किरदार विवेक ओबेरॉय ने निभाया। इस नजरिये से देखा जाए तो 1993 में आई फिल्म 'सरदार' ज्यादा सफल रही। इसे केतन मेहता ने निर्देशित किया था। जाने-माने राजनेता सरदार वल्लभभाई पटेल के जीवन पर आधारित इस फिल्म में आज़ादी के संघर्ष और उनकी राजनीतिक भूमिका के बारे बताया था।
किस्सा खास विवादास्पद फिल्म का

राजनीतिक नेताओं के जीवन के अलावा भी कुछ ऐसी फ़िल्में बनी जिनका काल्पनिक कथानक राजनीति पर केंद्रित रहा। इनमें सबसे ज्यादा विवादास्पद फिल्म रही 1977 में आई 'किस्सा कुर्सी का!' यह राजनीति पर एक व्यंग्यात्मक फिल्म थी। अमृत नाहटा खुद नेता थे, उन्होंने ही यह फिल्म भी बनाई थी। आपातकाल के विरोध ने उन्हें यह फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया लेकिन सरकार ने रिलीज़ नहीं होने दिया। फिल्म इंदिरा गांधी और संजय गांधी पर आधारित थी। यह फिल्म 1975 में बनी लेकिन रिलीज़ रोक इसका मास्टर प्रिंट जला दिया। साल 1977 में दोबारा बनाकर रिलीज किया।
फिल्म 'गांधी' बनाकर रचा इतिहास
महात्मा गांधी के असल जीवन पर रिचर्ड एटनबरो ने 1982 में फिल्म 'गांधी' बनाकर तो इतिहास रच दिया था। फ़िल्म का निर्देशन रिचर्ड एटनबरो ने किया और बेन किंग्सले ने गांधी की भूमिका निभाई थी, इन दोनों को अकादमी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के अकादमी पुरस्कार के साथ आठ अन्य अवॉर्ड भी मिले थे। इसके बाद 2007 में 'गांधी माई फादर' आई जिसे फिरोज अब्बास खान ने बनाया। इसकी कहानी गांधी जी और उनके पुत्र हरिलाल पर केंद्रित थी।
'ठाकरे' नाम से बायोपिक
शिवसेना के संस्थापक और महाराष्ट्र के बड़े नेता रहे बाल ठाकरे पर 2019 में 'ठाकरे' नाम से बायोपिक बनाई गई थी जिसका निर्देशन अभिजीत पंसे ने किया। फिल्म के जरिये बाल ठाकरे के शुरुआती संघर्ष से लेकर उन्हें शिवसेना बनाने तक की कहानी थी। अखबार में कार्टूनिस्ट के काम से उन्हें महाराष्ट्र के नेता के रूप में उभरते दिखाया गया। इस फिल्म में उन अनुत्तरित सवालों का जवाब देने की कोशिश की गई थी, जिससे बाल ठाकरे हमेशा घिरे रहे। मसलन उन्होंने आपातकाल का समर्थन क्यों किया। इसके बावजूद ऐसा लगा कि सिर्फ शिवसेना की छवि चमकाने के लिए इस कहानी को गढ़ा गया था।
इस शृंखला में एक और बायोपिक 'मैं अटल हूं' पर काम शुरू हो गया जो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन पर आधारित है। इस फिल्म को संदीप सिंह और विनोद भानुशाली प्रोड्यूस कर रहे हैं जिसकी कहानी किताब ‘द अनटोल्ड वाजपेयी’ पर आधारित होगी। डायरेक्टर रवि जाधव हैं। इस फिल्म का मोशन पोस्टर भी जारी किया गया जिसमें वाजपेयी के भाषण के कुछ अंश हैं- 'सत्ता का खेल तो चलता रहेगा, सरकारें आएंगी, जाएंगी। पार्टियां बनेंगी-बिगड़ेंगी। लेकिन ये देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए!' राजनीति से प्रेरित जब भी फ़िल्में बनीं, उनमें राजनीतिक उलटफेर ही ज्यादा दिखाया गया। जब भी सियासी घटनाओं या नेताओं पर फिल्में बनी, बवाल जरूर मचा है।
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नेताओंप्रतिसादफिल्मेंविवाद
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