भ्रूण के भ्रम
मनुष्य भले ही दुनिया का नीति-नियंता बनने का दंभ भरे लेकिन तमाम वैज्ञानिक उन्नति के बावजूद कुदरत के तमाम सवाल आज भी अनुत्तरित हैं। वो बात अलग है कि दुनिया पर वर्चस्व बनाने की कवायद में जुटी विश्व की महाशक्तियां बाजार प्रेरित अनुसंधानों के जरिये नये-नये दावे करती रहती हैं। भले ही औपनिवेशक सत्ताओं के दिन अब लद गये हों लेकिन वैज्ञानिक व अनुसंधान से हासिल नवीनतम ज्ञान के जरिये वे विश्व पर राज के सपने लगातार देखती रहती हैं। यह बात सर्वविदित है कि डायनामाइट के आविष्कारक अल्फ्रेड नोबेल को कालांतर में इसके मानवता के लिये अभिशाप साबित होने को लेकर अपराधबोध हुआ था। फिर उन्होंने दुनिया में शांति के प्रयासों को प्रोत्साहन के जरिये पश्चाताप करने का प्रयास किया। हाल ही में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की उन्नत तकनीक तैयार करने वाले वैज्ञानिक ने भी इसके भयावह परिणामों को भांप कर माफी मांगी और खुद को इस प्रोजेक्ट से अलग कर लिया। परमाणु शक्ति की खोज ने हिरोशिमा व नागासाकी को जो त्रास दिया, उसने ऐसे शोध-अनुसंधान की नैतिकता पर प्रश्नचिन्ह खड़े किये हैं। अब वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने पुरुष शुक्राणु और स्त्री अंडाणुओं का इस्तेमाल किये बिना मानव भ्रूण बनाने में कामयाबी हासिल कर ली है। दलील दी जा रही है कि इससे जेनेटिक डिसऑर्डर्स को समझने में मदद मिलेगी। मसलन बार-बार गर्भपात होने जैसी समस्याओं के जीव वैज्ञानिक कारणों को समझने में सहायता मिलेगी। निस्संदेह, दुनिया में तमाम नई खोजों के आविष्कार के वक्त इसका मकसद मानवता का कल्याण भी बताया गया। लेकिन जब भी कुदरत की नैसर्गिक व्यवस्था को चुनौती देने के प्रयास किये गये, उसके घातक परिणाम ही सामने आए हैं। पिछले दिनों जिस कोविड नामक महामारी ने दुनिया की आर्थिक व सामाजिक व्यवस्था को तहस-नहस कर दिया, उसको लेकर चीन की लैब में विषाणु तैयार करने की बहस अभी तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पायी है। बहुत संभव है कि कालांतर में स्टेम कोशिकाओं के जरिये मॉडल मानव भ्रूण विकसित करने के प्रयासों को लेकर नैतिक व वैधानिक प्रश्नों को लेकर नई बहस शुरू हो जाये।
उल्लेखनीय है कि वैज्ञानिकों ने स्टेम सेल के जरिये तीन मॉडल मानव भ्रूण तैयार कर लिये हैं। प्रथम द्रष्टया में, ये भ्रूण आरंभिक चरण के मानव भ्रूण जैसे ही हैं। जिसको लेकर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और इंटरनेशनल सोसायटी फॉर स्टेम सेल रिसर्च खासी उत्साहित हैं। लेकिन जानकार मान रहे हैं कि कृत्रिम भ्रूण का चिकित्सीय अनुसंधान के लिये तुरंत प्रयोग किये जाने की संभावना कम ही है। जाहिर है कि किसी कृत्रिम भ्रूण को किसी महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित करने की कोई भी कोशिश हाल-फिलहाल कानून के खिलाफ होगी। यदि तुरंत इसका इस्तेमाल नहीं हो सकेगा तो इस अनुसंधान की अगली कड़ी तलाशना भी सहज नहीं होगा। शोध अभियान से जुड़े वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि सामान्य मानव भ्रूण जैसा मॉडल तैयार करने से मानव जीवन की विकास यात्रा से जुड़े नये तथ्यों को सामने लाया जा सकेगा। जो दुनिया में कुछ आश्चर्यचकित करने वाले परिणाम सामने ला सकते हैं। बताते हैं कि इस्राइल के एक संस्थान ने चूहे के स्टेम सेल से भ्रूण तैयार करके उसमें इसके अंगों के विकास को होता देखा है, जिसकी सफलता से उत्साहित वैज्ञानिकों ने मानव भ्रूण के मॉडल तैयार करने में रुचि दिखायी है। दावा किया जा रहा है कि कैम्ब्रिज की लैब में हुए प्रयोग में चौदह दिन के सामान्य मानव भ्रूण के रूप में विकसित हुआ है। निश्चित रूप से इन प्रयासों का दुनिया में खासा विरोध होगा। समाज के लिये इससे नई चुनौतियां पैदा होंगी। खासकर धर्मगुरुओं और प्रकृतिवादियों की तरफ से कड़ा प्रतिवाद होगा, जो प्रकृति की रचनावली में मानवीय हस्तक्षेप को घातक मानते हैं। उनका मानना है कि यह कदम कृत्रिम मनुष्य तैयार करने की दिशा में पहला कदम है जो मानवता के लिये घातक साबित हो सकता है। सवाल ऐसे मानव की संवेदना को लेकर भी उठाये जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर इस सफलता को मूर्त रूप देने के प्रयासों में कानूनी प्रावधानों का न होना एक बड़ी बाधा बनेगी।