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मन-जीवन से जुड़े  उत्सवी सतरंगी अहसास

09:02 AM Mar 19, 2024 IST

डॉ. मोनिका शर्मा
रंग प्रेम का हो या प्रकृति का, परम्परा का हो या यादों का- हर रंग किसी न किसी भाव से जुड़ा होता है। कुछ न कुछ कहता सा लगता है। होली का त्योहार भी हर बार ऐसे ही कुछ सतरंगी अहसासों को साथ ले आता है, जो हमें रंगों से जुड़े जीवन और जीवन से जुड़े रंगों की ओर मोड़ देते हैं। उल्लास के इस उत्सव में फिर याद आता है कि ज़िन्दगी की कितनी ही खुशियां इन्हीं रंगों में समाहित हैं। वैसे भी हमारे यहां तो हर मौके के लिए रंग हैं और हर रंग का अपना महत्व और उजास। तभी तो इन्द्रधनुष के सात रंग ज़िन्दगी के भी हर पहलू में नज़र आते हैं। रंगों से जुड़ा एक दिलचस्प पहलू यह है कि हर रंग अपनी पहचान और प्रभाव रखता है। रंग ही तो हैं जो धरती की हरियाली और सूरज की सुनहरी रोशनी का फर्क समझाते हैं। रंगों से ही क्षितिज तक फैले आसमान का नीलापन और वसंत में खिले फूलों की सतरंगी छटा अलग नज़र आती है। इन्हीं रंगों के साझे उत्सव की छटा बनकर आता है होली का त्योहार।

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रीति-रिवाज के रंग

हमारे सामाजिक-पारिवारिक परिवेश में रीति-रिवाज और परम्परा भी रंगों से जुड़ी सी लगती है। आंगन की रंगोली से लेकर लोकगीतों तक, सभी में रंग भरे होते हैं। परिधान भी खास रंग और अवसर मुताबिक परम्पराओं से जोड़कर ही पहने जाते हैं। यह सतरंगी छटा ही ज़िन्दगी का उल्लास है। हमारे परम्परागत जीवन से जुड़े ये रंग आस्था के भी रंग हैं। जो हमें ज़मीन से जोड़े रखते हैं। इसीलिए अपनी माटी से जोड़ने वाला होली का त्योहार भी हर ऊंच-नीच और भेदभाव से परे है। तभी तो कई आंचलिक परंपराओं और लोकजीवन के रंग इस पर्व पर देखने को मिलते हैं। देश के हर हिस्से में होली के मौके पर ढोलक-झांझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूबकर लोकगीत गाये जाते हैं। होली का पर्व भावनात्मक रंगों को गहनता से संजोये है जिसका असल भाव ही भाईचारे का है। आपसी जुड़ाव को बढ़ावा देने वाला है। नागरिकों का यही जुड़ाव सामाजिक जीवन का आधार भी है।

मन का मेल कराते रंग

कहते हैं कि जब मन से मन मिलता है तो ही होली का रंग खिलता है। इंसान की इंसान से जुड़ने की सोच सद्भाव और सामाजिकता का आधार बन इस त्योहार को और रंगीन बना देती है। सब गिले-शिकवे भूलकर गुलाल के रंग में रंग एक हो जाते हैं। हर ओर बस सतरंगी प्यार बरसता है। आपसी लगाव और समझ की यही सीख हमारी परम्पराओं में भी है। जो इस पर्व पर हर ओर नज़र आती है। रीति-रिवाज और परम्परा के इन्हीं रंगों में एक भक्ति का रंग भी है। बरसाने और वृंदावन की होली इसी परम्परा से जुड़ी है जो बरसों से चली आ रही है। यहां लठ्ठमार और फूलों की होली दोनों ही प्रीत के रंग लिए है। तभी तो होली के त्योहार में उत्सवधर्मिता के जो रंग बिखरते हैं वो मानवीय और पारिवारिक मूल्यों को भी जीवंत बना देते हैं। रंग दिलों की दूरियां ही नहीं मिटाते अपनों को करीब भी ले आते हैं।
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स्वास्थ्य से जुड़े रंग

रंग हमारी सेहत से भी जुड़े होते हैं। इनका सकारात्मक या नकारात्मक असर हमारे स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। आध्यात्मिक शोध यह बताते हैं कि अपनी रुचि के रंग के अनुसार कपड़े या आसपास की चीज़ें जीवन में शामिल की जाएं तो हम आध्यात्मिक स्तर पर बहुत अधिक प्रभावित होते हैं। मन और मस्तिष्क दोनों पर रंगों की छटा गहरा असर डालती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह बात सामने आ चुकी है। खान-पान भी रंगों से जुड़ा है। माना जाता है कि भारत एक अकेला देश है, जहां खानपान भी इतना रंगीन है। देश के हर हिस्से में अलग रंग और ढंग का खाना बनता है। वैज्ञानिक शोध भी इस बात पर मुहर लगा चुके हैं कि अगर भोजन की थाली में इंद्रधनुष के सातों रंगों को उतार देते हैं तो यह सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। यानी रंग सिर्फ़ चीज़ों की सुन्दरता से नहीं बल्कि गुणों से भी जुड़े हैं।

प्रकृति से जुड़े रंग

हमारे यहां कई त्योहार भी ख़ास रंगों से जुड़े हैं। इन दिनों हर ओर खिले टेसू के फूल और वासंतिक छटा इस पर्व को प्रकृति से जोड़ ही देती है। इस मौसम में मन को भी खुशनुमा माहौल मिलता है। यही वजह है कि होली के पर्व का प्रकृति से ही नहीं मन से भी सीधा संबंध है। खिला-खिला परिवेश मन को भी उमंग और उत्साह से भर देता है। हर ओर खिले फूल और मुठ्ठियों से उड़ता गुलाल पूरे माहौल को रंगीन बना देता है। बौराये आम के पेड़ और पलाश के फूलों से जंगल में छायी लालिमा से प्रकृति के हर हिस्से में उमंग और उत्साह दिखने लगता है। खेतों में सरसों व बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। जैसे प्रकृति हर ऋतु में नया रंग धरती है, हमारा जीवन भी समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है। कहते हैं कि कुदरत का हर रंग हमें स्वयं से जोड़ता है, सकारात्मकता और प्रसन्नता की ओर ले जाता है। होली के पर्व पर प्रकृति स्वयं हमसे जुड़ती सी नज़र आती है।

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