त्योहार आज और कल
-सत्यव्रत बेंजवाल
रक्षाबंधन का पर्व श्रावण पूर्णिमा के अपराहzwj;्न काल में मनाया जाता है। यदि इस दिन भद्रा हो और दूसरे दिन उदयकािलक पूर्णिमा तिथि त्रिमुहूर्त-व्यािपनी (अपराहzwj;्न तक) हो तो उसी उदयकािलक पूिर्णमा (द्वितीय दिवस) में रक्षाबंधन करना शुभप्रद होता है।
इस बार 11 अगस्त को पूिर्णमा अपराहzwj;्नव्यािपनी भद्रादोष से व्याप्त है तथा 12 अगस्त को पूिर्णमा त्रिमुहूर्त व्यािपनी नहीं है। इस दिन पूिर्णमा प्रात: 7.06 पर समाप्त हो जाएगी। शास्त्र कथनानुसार 11 अगस्त को प्रदोषकाल के समय भद्रारहित काल में राित्र 8.53 के बाद रक्षाबंधन पर्व मनाना शुभ रहेगा। रक्षाबंधन प्रदोष काल से पूर्व करना चािहए, (निशीथकाल आरंभ होने से पहले) 11 अगस्त को पंजाब, हरियाणा, हि.प्र., ज.क. आिद शहरों में प्रदोषकाल सायं 7.12 से 9.50 तक रहेगा। अत: धािर्मक मान्यताओं के अनुरूप भद्रा समािप्त रात 8.53 बाद तथा 9.50 से पूर्व एक घंटे के भीतर रक्षाबंधन कार्य करना चािहए।
आपात्कालीन व आवश्यक परिस्थितिवश, यात्रा-भ्रमण, फौज, डzwj;zwj;्यूटी आिद कार्यों में परिहार स्वरूप भद्रामुख (सायं 6.20 से 8.02) का समय त्यागकर भद्रापुच्छ काल (सायं 5.18 से 6.20) का समय रक्षाबंधन कर सकते हैं। अत: शास्त्रानुसार 11 अगस्त को भद्रा के उपरान्त प्रदोषकाल (रात 8.53 से 9.50) में रक्षाबंधन मनाना शुभ होगा। किन्तु प्राचीनकाल से चली परंपरानुसार पंजाब, हिमाचल, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर आिद प्रदेशों में उदय-व्यािपनी पूिर्णमा के दिन प्रात: काल ही रक्षाबंधन पर्व मनाने का प्रचलन है। अत: 12 अगस्त को त्रिमुहूर्त-न्यून पूर्णिमा के दिन ही (प्रात: 7.06 से पूर्व) उिदत पू्र्णिमा को ही रक्षाबंधन पर्व मनाएंगे।