सूर्यदेव की आराधना का त्योहार
चेतनादित्य आलोक
माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रथ सप्तमी का त्योहार मनाया जाता है। इसे सूर्य जयंती, माघ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी, अर्क सप्तमी, अचला सप्तमी, भानु सप्तमी आदि नामों से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि महर्षि कश्यप एवं देवी अदिति के गर्भ से सूर्यदेव का जन्म इसी दिन को हुआ था। इसलिए संपूर्ण भारतवर्ष में रथ सप्तमी को सूर्यदेव के जन्मदिवस के रूप में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। श्रीसूर्यनारायण भगवान श्रीविष्णु के ही एक रूप हैं, जो जीवन का मूल स्रोत भी हैं। जीवन के आधार स्वरूप सूर्यदेव के संबंध में हमारे शास्त्रों की यह घोषणा वैज्ञानिक अवधारणाओं से भी मेल खाती है कि संपूर्ण विश्व को अपने महातेजस्वी स्वरूप से प्रकाशमय करने वाले सूर्यदेव के कारण ही पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व है। यही नहीं, प्राणियों को जीवन का सत्व प्रदान करने वाली विटामिन ‘डी’, जो शरीर के लिए बेहद आवश्यक मानी जाती है, सूर्य की किरणों से ही प्राप्त होता है। इनके अतिरिक्त कालचक्र की गति का ज्ञान अथवा समय का मापन भी सूर्यदेव के कारण ही संभव हो पाता है। इस बात से तो वैज्ञानिकों की भी सहमति रही है कि सूर्यदेव स्वयं तो प्रकाशमान हैं ही, अन्य सभी ग्रहों को भी ये ही अपने प्रकाश से प्रकाशित करते हैं।
सनातन धर्म की बात करें तो हमारे तमाम शास्त्रों में सूर्यदेव को साक्षात् देव माना गया है, जिनके दर्शन को साक्षात देव-दर्शन की उपमा दी गई है एवं सूर्यदेव के पूजन, दर्शन, ध्यान और साधना को आरोग्यवर्द्धक एवं वरदान तुल्य बताया गया है। हमारी संस्कृति आरंभ से ही नवग्रहों की पूजा, आराधना की बात करती आई है। इन नवग्रहों में सूर्यदेव को अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। देखा जाए तो यह महज संयोग नहीं है कि हमारे तमाम शास्त्रों में सूर्यदेव को ग्रहों के राजा के रूप में व्याख्यायित किया गया है। इसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र की बात करें तो भारतीय ज्योतिष शास्त्र में सूर्यदेव के एक नाम ‘रवि’ को ‘आत्मकारक’ बताया गया है। इनके अतिरिक्त राजा, मुखिया, सत्ता, अधिकार, कठोरता, तत्वनिष्ठ, कर्तृत्व, सन्मान, प्रसिद्धि, स्वास्थ्य, वैद्यकशास्त्र आदि का कारक रवि है। देखा जाए तो सूर्यदेव के रथ में जो सात घोड़े युक्त रहते हैं, वे सप्ताह के सात दिनों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि रथ में लगे बारह पहिये बारह राशियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ज्योतिष शास्त्र की यह घोषणा भी पूर्णतः वैज्ञानिक प्रतीत होती है कि यदि रवि यानी सूर्यदेव न हों, तो मनुष्य की आध्यात्मिक और चैतन्य शक्तियों का विकास तो छोड़िए, उनका बोध होना भी असंभव हो जाएगा। भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति की जन्मकुंडली में सूर्य जितना अधिक बलवान होता है, उसकी जीवन शक्ति और प्रतिरोधक क्षमता उतनी ही बेहतर होती है।
‘सूर्यग्रहणतुल्या तु शुक्ला माघस्य सप्तमी।
अचला सप्तमी दुर्गा शिवरात्रिर्महाभरः॥’
तात्पर्य यह कि रथ सप्तमी का दिन दान-पुण्य करने के लिए सूर्यग्रहण के समान अत्यधिक शुभ अवसर होता है। इस दिन अरुणोदय के दौरान स्नान करना अति उत्तम माना जाता है। सनातन परंपरा में सदा से ही यह मान्यता रही है कि सूर्योदय से पहले स्नान करना शुभ एवं कल्याणकारी होता है। सूर्योदय से पहले स्नान करने से सभी प्रकार की बीमारियों से मुक्ति मिलती है। यही कारण है कि इसे आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। संतों के बीच यह दिन अचला सप्तमी के नाम से विख्यात् है। विष्णु पुराण के अनुसार सूर्यदेव के रथ में लगे सात घोड़ों के नाम गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति हैं। रथ सप्तमी का त्योहार हमें यह सूचित करता है कि सूर्य नारायण उत्तरायण में मार्गक्रमण कर रहे हैं। तात्पर्य यह कि मौसम परिवर्तन के साथ ही माघ महीने की सप्तमी तिथि से सूर्यदेव उत्तर दिशा की ओर झुक जाते हैं। वैज्ञानिक भाषा में कहा जाए तो इसका अर्थ यह हुआ कि श्री सूर्यदेव अपने रथ को उत्तरी गोलार्द्ध में घुमा रहे हैं। वैसे रथसप्तमी किसानों के लिए फसल का दिन और दक्षिण भारत में धीरे-धीरे बढ़ते तापमान का सूचक माना जाता है। एक प्रकार से यह शीघ्र ही वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक भी होता है।
सनातन धर्म में सूर्य पूजा का बड़ा महत्व होता है। यह दिन पूरी श्रद्धा से सूर्यनारायण की पूजा करने तथा उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का होता है। प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति पर आयोजित होने वाला हल्दी-कुमकुम समारोह रथ सप्तमी के दिन संपन्न होते हैं। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस प्रकार उपासनादि करने से भगवान का विग्रह यानी मूर्ति जाग्रत होती है, ठीक उसी प्रकार प्रतिदिन प्रातःकाल अर्घ्य देने से सूर्यदेव को ऐसी शक्ति प्राप्त होती है कि वे संसार में व्याप्त अंधकार को नष्ट कर जगत को प्रकाशमान कर सकें, जबकि भक्त को ऐसा करने से लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त होती है। रथ सप्तमी के दिन सूर्यशक्तिम, सूर्यसहस्रनाम और गायत्री मंत्र का 108 बार जप करने के अतिरिक्त सूर्यदेव के 12 नामों का जप करना अत्यधिक शुभ माना जाता है।