पवित्रता रूपी धर्म में प्रतिज्ञा का पर्व
ब्रह्माकुमारी प्रेमलता
प्राचीन काल से बहनें भाइयों की कलाई पर श्रावण मास की पूर्णिमा को राखी बांधती आ रही हैं। भाई-बहन का एक बहुत ही पवित्र व निर्मल स्नेह का नाता होता है। भाइयों को स्नेह के सूत्र में बांधने की यह बहुत ही हृदयस्पर्शी व भावनापूर्ण रस्म है। सूत के रंगे हुए कच्चे धागे और आज के रेशमी चमकीली नायलॉन की डोर में बहन का भाई के प्रति यह मौन संदेश भरा होता है कि कलाई पर बांधा गया यह रक्षा सूत्र भाई द्वारा अपनी जान की बाजी लगाकर भी बहन की लाज की रक्षा करेगा। भाई अपने दिल में अपनी बहन के प्रति स्नेह के समुद्र को समाये हुए खुशी-खुशी इतने बड़े बंधन को स्वीकार करता है।
इस अवसर पर भारतीय संस्कृति की वह झलक सामने आ जाती है कि किस तरह यहां भाई-बहनों में एक मासूम आयु से लेकर जीवन के अंत तक एक-दूसरे से स्नेह का यह संबंध अटूट बना रहता है। यदि यह तार किसी पारिवारिक तूफान के झटके से टूट भी जाती है तो भी अगली राखी पर फिर यह नया सूत्र उस स्नेह में एक नई जिंदगी व उमंग भर देता है। इस प्रकार यह स्नेह की धारा जीवन के अंत तक अविरल गति से बहती रहती है जैसे गंगा अपने उद्गम स्थल से लेकर सागर के संगम तक कहीं तेज तथा कहीं मधुर गति से बहती रहती है।
इस पर्व के बारे यह मान्यता है कि जब इंद्र देवता स्वर्ग का राज्य किसी असुर के हाथों हार गए थे तब इंद्राणी ने उन्हें राखी बांधी थी जिससे इंद्र ने अपना खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त किया था। यमुना ने भी अपने भाई यम को राखी बांधी थी तब यम ने कहा था कि जो नर इस राखी को बंधवायेगा उसे यमदूत दंड नहीं देंगे।
बहन और भाई के इस पवित्र नाते की महत्ाा को कायम रखते हुए संकट के समय हिंदू नारियों ने मुगल शासकों को भी यह रक्षा सूत्र बांध कर अपने सतीत्व, स्वमान व राज्य की रक्षा की थी।
आज के चुनौतीभरे व मूल्यों के क्षरण के दौर में राखी का महत्व और भी बढ़ जाता है। हर बहन को राखी बांधते समय अपने भाई से अब यह वचन लेना पड़ेगा कि जैसे वह उसे पवित्र दृष्टि से देखता है, इसी तरह ही संसार की हर माता-बहन को भी पवित्र नज़र से देखेगा तो सारी बहनें सुरक्षित हो पायेंगी। किसी की दृष्टि व विचारों को कठोरता से नहीं बदला जा सकता। मनुष्य के अंदर छुपे हुए गुण व शक्तियों को ज्ञान और स्नेह से व्यवहार में लाकर सब सुरक्षित हो सकते हैं। इसलिए हमें ईश्वरीय ज्ञान व निर्मल स्नेह की धारा में स्वयं को डुबोना पड़ेगा।
परमात्मा के प्रति स्नेह और समर्पणता तब ही हो सकती है जब मनुष्य अपने आप को विकारों से मुक्त करेगा। इसलिए कलाई का पंचरंगी धागा विकारों को समाप्त करके उसके स्थान पर शांति, आनंद, प्रेम, शक्ति और पवित्रता की धारणा करने का संदेश देता है। कन्या और ब्राह्मण दोनों ही पवित्र माने गए हैं। इस कारण राखी बहनों के साथ-साथ ब्राह्मण भी अपने यजमानों को बांधते हैं। ब्राह्मणों का पवित्र कर्म करना ही उनका स्वधर्म है। वे इस दिन केवल राखी ही नहीं बाधते बल्कि माथे पर तिलक भी देते हैं। बहनें भी अपने भाइयों के माथे पर चंदन और केसर का तिलक देती हैं। मस्तिष्क पर यह तिलक आत्मा को ज्ञान के रंग में रंगने और आत्मिक स्मृति में रहने का प्रतीक है। यदि सभी धर्म, जाति, देश, भाषाओं के लोग आत्मिक स्मृति को अपना लें तो सारे विश्व में भाईचारा स्थापित हो सकता है। राखी पवित्रता रूपी धर्म में रहने की प्रतिज्ञा करने व काम-वासना रूपी विष को छोड़ने का प्रतीक है। इसलिए इस पर्व को विष तोड़क पर्व भी कहा जाता है।