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नारी शक्ति के उजाले  का प्रतिष्ठा पर्व

11:04 AM Oct 29, 2024 IST

डॉ. मोनिका शर्मा
सामाजिक-पारिवारिक मेलजोल की उमंगों को लिए रोशनी का उत्सव दिवाली, स्त्री शक्ति के उजास का पर्व भी है। असल में ज्ञान और धन जीवन से जुड़े सबसे अहम पक्ष हैं। जीवन को सार्थक बनाने के लिए ज्ञान और सहज-सुखी जिंदगी के लिए धन आवश्यक है। इतना ही नहीं, समाज के लिए सार्थक कार्य करने की सोच को धरातल पर उतारने के लिए भी समझ की सही दिशा और विवेक जरूरी है। वहीं बेहतरी के इन प्रयासों को बल देने के लिए आर्थिक सबलता भी एक अहम पहलू है। उजास के इस पर्व पर मां सरस्वती और देवी लक्ष्मी की आराधना की जाती है। पूजन-अर्चन से जुड़ी यह रीत आम जीवन में भी स्त्री शक्ति के सम्मान के महत्व को रेखांकित करती है।

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स्त्री सम्मान का भाव
दीपावली के त्योहार पर प्रथम पूज्य श्री गणेश के साथ मां लक्ष्मी और ज्ञान की देवी सरस्वती के पूजन का विधान है। यह रिवाज स्त्री के संवेदनशील हृदय में भरे विवेक और गृहलक्ष्मी के रूप में परिवार को सहेजने-संभालने के गुणों को ही प्रतिबिंबित करता है। परिवार में स्त्रियां धुरी के समान बहुत कुछ थामे रहती हैं तो समाज में जुड़ाव को पोसती हैं। मेलजोल के मानस से लेकर अपनों की मनुहार और सही मार्गदर्शन तक, महिलाएं आत्मज्ञान और सजगता की वाहक रही हैं। नयी पीढ़ी में भी इन गुणों को स्त्रियां भी पोसती हैं। इतना ही नहीं, दिवाली पर बंगाल में देवी के काली रूप की भी उपासना की जाती है। माता काली दुष्टों का नाश करने वाली शक्ति के रूप में पूजी जाती हैं। साहस और वीरता की प्रतीक हैं। साथ ही भगवान राम के चौदह वर्ष के वनवास उपरांत अयोध्या लौटने से जुड़ा यह उत्सव माता सीता के व्यक्तित्व को समझने-जानने का भी पर्व है। उनकी सशक्त, संयमित और बुराई के आगे ना झुकने की शक्ति को प्रतिबिम्बित करता है। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है तो माता सीता भी आदर्श बेटी, आदर्श पत्नी और एक आदर्श मां के रूप में पूजनीय हैं। यही वजह है कि उजास का यह पर्व आध्यात्मिक, धार्मिक, परम्परागत और व्यावहारिक जीवन में सशक्त स्त्रीमन के आलोक के मायने समझाता है। महिलाओं के मन-जीवन में सदा से बसी मानवीय उजास का मान करने की सीख देता है। दैवीय स्वरूप में पूजने वाले समाज को वास्तविक धरातल पर स्त्रियों के सम्मान का पाठ पढ़ाता है।

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विवेकशील भूमिका के मान का संदेश
स्त्रियों के विवेकशील व्यक्तित्व की सहज स्वीकार्यता आज भी नदारद है। दीपपर्व, मां शारदा की उपासना के रिवाज के माध्यम से महिलाओं के ज्ञान को मान देने का भी संदेश देता है। वाणी और कला की देवी सरस्वती की अर्चना अपनी कलात्मक सोच से घर-आंगन संवारती महिलाओं के श्रम के मान का भाव लिए है। चेतना और बुद्धि-चातुर्य की देवी सरस्वती का स्मरण सहज जीवन में भी महिलाओं के गुणों की अनदेखी न करने से जुड़ा है। विद्या और विवेक की देवी का पूजन स्त्रियों को घर के भीतर ही नहीं, बाहर भी कमतर समझने की पुरातनपंथी सोच को खारिज करने की उजासमयी रीत है। यूं भी यह पर्व अज्ञान के अंधेरे पर ज्ञान रूपी प्रकाश की जीत का ही उत्सव है। आज भी कभी उपहास तो कभी धीर-गंभीर तानेबाजी, स्त्रियों की विवेकशील सोच को लेकर बहुत कुछ कहा जाता है। असल में विवेकशील होने का मतलब ही है किसी भी परिस्थिति में सही निर्णय करने की समझ रखना। विवेक यानि मन-मस्तिष्क की वह भीतरी शक्ति जो भले-बुरे का अंतर करने का आधार बने। ऐसा दृष्टिकोण को जीवन मूल्यों और जवाबदेही को साथ लेकर चले। हमारे समाज में महिलाएं बहुत सी बातों को लेकर ऐसा ही सधा दृष्टिकोण और दायित्व-बोध रखती हैं। ऐसे में दीपोत्सव के उजास में मां सरस्वती की उपासना का रिवाज स्त्रियों के बुद्धि-चातुर्य का सम्मान करने का भी संदेश लिए है।

आर्थिक चमक की पोषक
स्त्रियां जीवन में प्रकाश की वाहक बनती हैं। प्रकाश, भीतरी हो या बाहरी, इंसान को सही मार्ग दिखाता है। मनोबल बढ़ाता है। ऊर्जा को पोसता है। ऐसे में प्रकाश फैलाने वाली स्त्रियों की शक्ति तो बहुत कुछ थामे हुए है। आज हर वर्ग में बढ़ती कामकाजी स्त्रियों की संख्या घर ही देश की आर्थिकी को बल देने में भी अहम भूमिका निभा रही है। यहां तक कि गृहिणियां भी अपने घर की समृद्धि की चमक कायम रखने में कोई कसर नहीं छोड़तीं। असल में धन बचाना या किफायत से खर्च करना भी कमाना ही है। घर तक सिमटी महिलाएं भी परिवार को आर्थिक मजबूती देने वाली हैं। दीपोत्सव से जुड़ी अहम रीत लक्ष्मी पूजन की है। लक्ष्मी शुभता का प्रतीक भी मानी जाती हैं। लक्ष्मी शब्द का अर्थ लक्ष्य पूरा करने या जीवन भर साथ रहने से भी जुड़ा है। जिसका अर्थ है कि धन से मनोरथ पूरे हों और आजीवन घर-परिवार में समृद्धि बनी रहे। हमारे देश में तो बेटी को भी लक्ष्मी कहे जाने का रिवाज है। पत्नी की गृहलक्ष्मी कहा जाता है। स्त्रियों के साथ-स्नेह को परिवार की समृद्धि से जोड़ा गया है। मौजूदा दौर में धन-वैभव भी बड़ी शक्ति है। शुभता के मार्ग पर चलते हुए इस शक्ति को पाना और ज्ञान से साथ उपयोग करना हर तरह से सुखदायी होता है। हमारे देश की स्त्रीशक्ति कमाने, बचाने और सहेजने तक, हर स्तर पर इस आर्थिक चमक को पोसती आई है।

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