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दिल-दिमाग की सफाई का त्योहार

05:47 AM Oct 31, 2024 IST

शमीम शर्मा

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कुछ लोगों का कहना है कि भारत का सबसे बड़ा त्योहार दिवाली नहीं घरवाली है, जिसे हर महीने कई-कई बार मनाना पड़ता है। वैसे सोचा जाये तो हम हिंदुस्तानियों की दिवाली है या नहीं, यह तो पता नहीं पर असली दिवाली तो अमेज़न और फ्लिपकार्ट वाले मना रहे हें। उन्हें कोई गिफ्ट-मिठाई नहीं दे रहा पर फिर भी दूसरों के गिफ्ट पैकेट और दिवाली का सामान इधर से उधर करने में ही चांदी कूट रहे हैं। एक सच्चाई यह भी है कि चॉकलेट और बिस्कुट-नमकीन वाले चाहे कितने ही विज्ञापन दे दें पर वे सोन पापड़ी के मार्किट को टस से मस नहीं कर सकते।
धनतेरस के दिन एक आदमी ने सुबह उठते ही अपने दोस्त को फोन करके पूछा कि हवाई जहाज कितनी एवरेज देता है। जवाब में सवाल मिला कि तुझे एवरेज से क्या लेना? वह आदमी बोला- यार मैं सोचता हूं कि इस धनतेरस पर एक हवाई जहाज खरीद लूं। धनतेरस के दिन हवाई जहाज कितने बिके, नहीं पता पर झाड़ू, झाड़न की बिक्री भी रिकॉर्ड तोड़ रही है। दरअसल दीपों का त्योहार सफाई और मिठाई का है। सफाई का ज्यादा है क्योंकि अन्त में मिठाई का भी सफाया ही करना होता है।
दिवाली पर इतनी मिठाई खाई नहीं जाती जितनी डिलीट करनी पड़ती है। लोग भर-भर मिठाई थाल के थाल और डिब्बे के डिब्बे मोबाइल पर भेज रहे हैं। यूं लग रहा है कि मिठाई की दुकान खोलनी पड़ेगी पर डाटा फुल हो जाने के कारण डिलीट कर्म करना पड़ रहा है। इसके अलावा मोबाइल में दीये इतने इकट्ठे हो गये हैं कि लगता है चार्जिंग करते हुए तेल न बहने लग जाये। मोमबत्तियों और बिजली की लड़ियों के तो कहने ही क्या।
घरों में रोज़ाना साफ-सफाई का काम होता है पर फिर भी दिवाली की सफाई में कितना कचरा निकल आता है। कोई नहीं बता सकता कि इतना कचरा निकलता कहां से है।
एक आशिक का कहना है—
इतना दर्द न प्यार में है ना जुदाई में,
जितना दर्द है दिवाली की सफाई में।
इस पर एक मनचले का कहना है कि अपने गुल्लक, तिजोरी की सफाई करवाने के लिये हमसे सम्पर्क करें। जरूरत इस बात की है कि नाराजगी और बदले की भावनाओं के जाले झाड़ कर अपने दिल-दिमाग की सफाई कर ली जाये तो ज्यादा खुशियां मिल सकती हैं और लागत भी नहीं आयेगी।
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एक बर की बात है अक दिवाली के दिन नत्थू मिठाई की दुकान पै बैठ्या दे धड़ाधड़ मिठाई तौलण लाग रह्या। उसका ढब्बी सुरजा आया तो बूज्झण लाग्या- हां रै! इतणी मिठाई देखकै तेरा खाण नैं जी कोणी करै। नत्थू बोल्या-भाई! जी तो बहोत करै पर मालिक के डर के मारे मैं तो चाट कै धर ‍द‍्यूं।

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