यादों की पगडंडियों पर संवेदना के अहसास
अरुण नैथानी
विपुल बाल साहित्य रचने वाले प्रकाश मनु यूं तो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, लेकिन उन्होंने कथा, काव्य,संस्मरण,उपन्यास व साक्षात्कार विधा में साधिकार लिखा है। वे एक संवेदनशील रचनाकार हैं और बेहद सरल-सहज भाषा-शैली में बात पाठकों के सामने रखते हैं। उनके द्वारा लिखा ‘हिंदी बाल साहित्य का इतिहास’ बाल साहित्य का प्रामाणिक दस्तावेज है। लोकप्रिय बाल पत्रिका नंदन में पच्चीस साल के व्यापक अनुभव ने उनके संवेदनशील सृजन को समृद्ध ही किया है।
आत्मकथा में मनु लिखते हैं कि ‘कौन मुझे साहित्य की राह पर ले आया? ...साहित्य मेरा मन-प्राण, मेरा शरीर, साहित्य मेरा-ओढ़ना-बिछौना और सांस में भी साहित्य।’ तो आत्मकथा में बचपन से किशोरवय की जीवंत यादें इन सवालों का जवाब देती हैं। बचपन से शर्मीला, एकांतप्रिय और बेहद संवेदनशील कुक्कू कैसे एक मार्मिक बाल साहित्यकार बनता है। विभाजन के बाद जड़ों से उखड़ना, शिकोहाबाद पहुंचना और खुद को फिर स्थापित करने के पिता के संघर्ष और ममतामयी मां की छांव में यह संवेदनशील रचनाकार पैदा होता है। अंतर्मुखी और चुपचाप रहने वाला यह बालक दरअसल जीवन के व्यापक अनुभवों को गुन रहा था। दादी-मां के सान्निध्य में सुनी कहानियां कल्पनाशीलता को नये आयाम दे रही थीं। भरे-पूरे परिवार का सहयोग सृजन के संस्कारों को सींच रहा था। खासकर प्रेमचंद के साहित्य से रूबरू कराने वाले श्याम भैया। अविभाजित भारत में जमींदार नाना का रुतबा और विभाजन पर पाक छोड़ने पर गांव वालों की अश्रुपूर्ण विदाई अंतर्मन को भिगो देती है।
दरअसल, आत्मकथा के इस पहले खंड में मनु के बाल्यकाल, किशोरावस्था और तरुणाई की जीवंत यादें हैं। उस कालखंड का परिदृश्य, जीवन के उतार-चढ़ाव, तमाम किस्से-कहानियां और स्मृतियों का सागर हिलोरे लेता है। माता-पिता का दुलार, गुरुजनों की सीख, बड़े भाई-बहनों का प्रेम, कुछ खट्टी-मिठ्ठी यादें, पिता का रौबीला व्यक्तित्व और कुछ बाकी कसक आत्मकथा में उपन्यास जैसी सरसता-रोचकता का पुट ले आती हैं। आत्मकथा में पूरे प्रारंभिक जीवन का सरस प्रवाह है। एक बालक की संवेदनशील रचनाकार बनने की सरस कहानी। जो बाद की उनकी कई चर्चित रचनाओं की भावभूमि भी बनीं। मनु की याददाश्त गजब की है, वे छोटी-छोटी घटनाओं को बेहद संवेदनशील ढंग से इक्कीसवीं सदी के पाठकों तक हूबहू पहुंचा देते हैं।
अविभाजित भारत के सरगोधा जनपद के कुरड़ गांव की दिल को छूने वाली स्मृतियों का जीवंत वर्णन इस आत्मकथा में है, जबकि बड़ी बहन व पांच बड़े भाई ही वहां जन्मे थे। कभी चंद्रप्रकाश के नाम से पुकारे जाने वाले प्रकाश मनु का जन्म स्वतंत्र भारत में हुआ, लेकिन बड़े किस्सागो भाई से सुने किस्सों को उन्होंने हूबहू पाठकों तक पहुंचा दिया। इस जीवन यात्रा में ममतामयी मां की यादें आंखे नम कर देती हैं।
पुस्तक : मैं मनु (आत्मकथा) रचनाकार : प्रकाश मनु प्रकाशक : श्वेतवर्णा प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 320 मूल्य : रु. 399.