बढ़ती उम्र के अहसास
कृष्णलता यादव
मॉरीशस की कवयित्री डॉ. सुरीति रघुनंदन की कलम से नि:सृत छोटी-छोटी 179 कविताओं का संग्रह है ‘उम्र को भूल जाओ’। कविताओं का केन्द्रीय भाव है कि उम्र को बढ़ना है, वह बढ़ेगी लेकिन बढ़ती उम्र से डरे, घबराये बिना उसका भरपूर आनंद लेना चाहिए।
उम्मीदों और सजगता की मशाल रोशन करती ये कविताएं खरी बात करती हैं कि जीते जी न औलाद को सब कुछ दे देना। संत्रास और संघर्ष व्यक्ति के व्यक्तित्व को मांजते-निखारते हैं, यूं भी ज़िंदगी में सम्भावनाओं की कमी नहीं। बढ़ती उम्र की चिड़िया चहकती रहे, इसके लिए मस्त रहें, व्यस्त रहें और आशा के फूल सजाते रहें। तन पर उभरी झुर्रियां देख मायूस नहीं होना, इन्हें जीवन की किताब मानकर उम्र के मुकुट से स्वयं को सजाइए/कुछ कर गुजरने की आग दहकनी चाहिए और अनुभवों को बांटते रहिए। एक अन्य स्थान पर वे सुझाव देती हैं– उत्कृष्ट विचारों के संग रहना/ सही उसूल होता है। कवयित्री के भावों की उज्ज्वलता का एक नमूना देखिए– ज़रूरतमंदों के रुदन पे/ हम हास लिख दें।
वृद्धावस्था-उद्बोधन के अतिरिक्त प्रेम की पुकार, प्राकृतिक उपादान तथा रिश्तों की उलझन-सुलझन भी संग्रह का हिस्सा बनी है। उपमा, अनुप्रास, रूपक अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया गया है। बानगी स्वरूप चंद उपमान– प्रेम काव्याकरण, मन की आंखें, दिखावे की थाली, प्रतिभा का फूल, कारवां हिचकी का, चाटुकारिता की उम्र, मन की सांकल, दुख के कतरे आदि। हिन्दी, उर्दू और देशज शब्दावली का स्वाभाविक प्रयोग है। सूक्तिपरकता-सम्मिलन ने कथ्य की रोचकता में श्रीवृद्धि की है।
पुस्तक : उम्र को भूल जाओ कवयित्री : डॉ. सुरीति रघुनंदन प्रकाशक : आधारशिला पब्लिशिंग हाउस, चंडीगढ़ पृष्ठ : 90 मूल्य : रु. 325.