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बेखौफ बर्बरता

06:17 AM Sep 30, 2023 IST

उज्जैन में एक बालिका के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना ने फिर देश को शर्मसार किया। भले ही डॉक्टरों के प्रयासों से उसकी जान बच गई है, लेकिन बच्चियों व महिलाओं के साथ आए दिन होने वाले दुराचार के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि हमारे समाज का भयावह स्याह सच ही उजागर कर रही है। गंभीर अवस्था व असामान्य स्थिति में कई किलोमीटर पैदल चलने वाली लड़की को कोई मदद नहीं मिली, कई घंटों तक पुलिस को घटना की भनक तक नहीं लगी। असामान्य हालात हमारी सामाजिक चेतना को नहीं झकझोरते। किसी ने नोटिस नहीं लिया कि एक अकेली बालिका को कैसे टैंपो चालक इधर-उधर ले जा रहा है। हालांकि, सीसीटीवी कैमरे की निशानदेही पर पुलिस अपराधियों तक पहुंची है और आरोपी टैंपो चालक को हिरासत में लिया है। लेकिन सवाल यह है कि उन उपायों का क्या असर हुआ जो दिल्ली के निर्भया कांड के बाद लागू किये गये थे। सवाल यह भी कि उस कांड के बाद उपजा जनाक्रोश फिर क्यों नहीं उभरता। जबकि देश के विभिन्न भागों में बच्चियों व महिलाओं के साथ बर्बरता की खबरें लगातार आ रही हैं। ये घटनाएं हमारी हर तरक्की पर सवालिया निशान लगाती हैं। कानून व्यवस्था की शिथिलता का का प्रश्न पैदा करती हैं कि क्यों अपराधियों में कानून का भय खत्म हो रहा है। वह भी तब जबकि बलात्कार के जघन्य मामलों में फांसी तक का प्रावधान किया गया। ऐसे अपराधों में बड़े किशोरों की संलिप्तता के बाद पॉक्सो कानून में संशोधन किया गया है। जिससे जघन्य अपराधों में लिप्त बड़े किशोरों को वयस्कों जैसा दंड दिया जा सके। समाज विज्ञानियों के लिये मंथन का विषय होना चाहिए कि समाज में स्त्रियों के प्रति ऐसी घृणित सोच क्यों पनप रही है। देश के विभिन्न भागों में असहाय व संकट में फंसी स्त्रियों को यौन हिंसा का शिकार बनाने का सिलसिला जारी है। जिसके चलते आज देश दुनिया के उन देशों में शुमार है जो यौन हिंसा की दृष्टि से खतरनाक माने जाते हैं।
देश आज फिर उन सवालों का जवाब मांग रहा है जो दिल्ली के बर्बर निर्भया कांड के बाद उपजे थे। दरअसल, निर्भया कांड से उपजे आक्रोश को दबाने के लिये जो उपाय किये गये थे वे कारगर साबित नहीं हुए हैं। तभी हर दिन समाज के मुंह पर कालिख पोतने वाली घटनाएं सामने आती हैं। जो समाज में नैतिक मूल्यों के पतन को भी दर्शाती हैं। कभी दिल्ली, कभी कठुआ तो कभी पटना का नाम आता है मगर बर्बरता एक जैसी है। पिछले दिनों राजस्थान से भी ऐसी दिल दहला देने वाली घटना सामने आई। राजनेता भी अपनी सुविधा से विरोध करते हैं। राजनीतिक दल वहीं मुखर नजर आते हैं जहां उनकी सरकार नहीं होती है। अपने दल की सरकार में उनकी व्याख्या अलग होती है। मगर आंकड़े डराने वाले हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, कड़े कानून बनाये जाने के बाद भी पिछले एक दशक में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में सतासी फीसदी की वृद्धि हुई है। यह आंकड़ा किसी भी सभ्य समाज को शर्मसार करने वाला है कि वहां हर बीस मिनट में दुराचार का एक मामला सामने आता है। यह विचारणीय प्रश्न है कि देश में यौन हिंसा के उफान की असली वजह क्या है? कुछ जानकार इसे इंटरनेट पर अश्लील सामग्री के सैलाब का परिणाम बताते हैं, जिसके चलते यौन कुंठित लोग समाज में बच्चियों व कमजोर महिलाओं को अपना शिकार बनाते हैं। दूसरे नशे के अंधाधुंध प्रचलन ने भी आग में घी का काम किया है। पिछले कुछ वर्षों में जघन्य यौन हिंसा करने वाले अपराधियों ने स्वीकारा कि वारदात से पहले उन्होंने मोबाइल पर अश्लील फिल्में देखी। या फिर अपराध करते वक्त नशे का सेवन किया हुआ था। बहरहाल, जिस देश में नारी को पूजने की बात होती थी वहां लगातार ऐसे भयावह मामलों का प्रकाश में आना समाज व सरकार की गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। सिर्फ कानून सख्त करने से समस्या का समाधान संभव नहीं है। समाज को सजग-सचेत होकर इसका प्रतिकार करना होगा। पुलिस को संवेदनशील, जवाबदेह और सतर्क बनाने की भी जरूरत है।

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