फादर्स-डे आज
अशोक अंजुम
(1)
बेटे पर विश्वास करो यों मत घबराओ बाबूजी!
जो मन आए करो इशारा, पीयो-खाओ बाबूजी!
खूब किया है जीवन-भर ही नहीं कभी आराम किया
अब सुकून से घर पर बैठो, हुकुम चलाओ बाबूजी!
कब तक बेटों की उतरन से हर त्योहार मनाओगे
कसम आपको अब की कपड़े नये सिलाओ बाबूजी!
जिम्मेदारियों ने जीवन-भर नहीं निकलने दिया कभी
अम्मा के संग तीरथ जाओ, गंग नहाओ बाबूजी!
बोनस आज मिला है मुझको अकस्मात ही दफ्तर से
कहां खर्च करना है इसको, ज़रा बताओ बाबूजी!
राग-रागिनी, आल्हा-ऊदल सब के सब बिसरा बैठे
अब फुर्सत है झूम-झूम कर ढोला गाओ बाबूजी!
कष्ट कोई हो उसे छिपाकर हरदम मुस्काते रहते,
कहां दर्द है, यूं न छिपाओ, हमें बताओ बाबूजी!
(2)
डूबती उम्मीद को फिर रौशनाई दे रहा है,
वो पिता के हाथ में पहली कमाई दे रहा है।
चल पड़ा तो हूं ग़लत रस्ते पे वैसे बेखुदी में ,
रोकता था तू मुझे अब तक सुनाई दे रहा है।
हौसला फिर से खड़ा है लो अंधेरों के मुक़ाबिल,
शुक्रिया मौला उजाला अब दिखाई दे रहा है।
एक बूढ़े जिस्म से लाखों दुआएं झर रही हैं,
एक नन्हा हाथ मुसकाकर दवाई दे रहा है।
‘याद रखंूगा तुझे चाहे चला जाऊं कहीं भी’,
है मुझे मालूम तू क्योंकर सफ़ाई दे रहा है।