मोक्ष देने वाला व्रत
चेतनादित्य आलोक
आश्विन अथवा क्वार महीने के कृष्णपक्ष की एकादशी को ‘इंदिरा एकादशी’ कहा जाता है। पितृपक्ष के दौरान पड़ने के कारण इसका एक नाम ‘पितृपक्ष एकादशी’ भी है। यह व्रत भक्तों को सभी कष्टों और समस्याओं से मुक्ति दिलाने में मदद करता है। इंदिरा एकादशी की खास बात यह है कि यह पितरों की मुक्ति के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है।
पद्मपुराण के अनुसार इस एकादशी की ऐसी महिमा है कि जो व्यक्ति यह व्रत करके भगवान श्रीहरि विष्णु का विधिपूर्वक पूजन करता है, उसको मृत्यु के बाद भी पुण्य-लाभ मिलता है तथा उसकी सात पीढ़ियों तक पितरों को तृप्ति मिलती है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और वैकुंठ-धाम की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत एवं पूजन कर इसके पुण्य को पूर्वजों के नाम से दान करने वाले भक्त के पूर्वजों को तो मोक्ष मिलता ही है, साथ ही व्रत-पूजन करने वाले को स्वयं भी इसके पुण्य-प्रभाव से वैकुण्ठ-धाम की प्राप्ति होती है।
पुराणों में बताया गया है कि जितना पुण्य कन्यादान अथवा हजारों वर्षों तक तपस्या करने से प्राप्त होता है, उससे भी अधिक पुण्य की प्राप्ति केवल इंदिरा एकादशी का व्रत और भगवान श्रीहरि विष्णु की विधिवत् पूजा करने से हो जाती है।
शास्त्रों में अन्य सभी एकादशियों की भांति इंदिरा एकादशी व्रत के शुभ अवसर पर भी ब्राह्मणों, निर्धनों एवं जरूरतमंद लोगों को दान देने की विशेष महिमा बतायी गयी है। मान्यता है कि घी, दूध, दही एवं अन्न का दान करने से व्रती के जीवन में सुख-समृद्धि आती है तथा सेहत अच्छी रहती है। इस अवसर पर भूखे लोगों को भोजन कराने का भी विधान है। व्रत के उत्तम लाभ पाने हेतु व्रती भगवान श्रीहरि विष्णु की स्तुति एवं ‘श्रीविष्णुसहस्रनाम’ का पाठ करे। इनके अतिरिक्त ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का यथासंभव जप भी कर सकते हैं।
इंदिरा एकादशी को तुलसी, अशोक, आंवला, चंदन एवं पीपल अथवा इनमें से किसी एक वृक्ष का पौधा लगाने से भगवान श्रीहरि विष्णु तो प्रसन्न होते ही हैं, साथ ही पितरों को भी संतुष्टि मिलती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णन है कि एक बार पांडव राजा युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से इंदिरा एकादशी का महत्व जानने की इच्छा प्रकट की तो भगवान ने बताया कि इंदिरा एकादशी सभी पापों का नाश करने वाली है। यह व्रती के पितरों को मोक्ष प्रदान करती है। जो लोग मात्र इस व्रत की कथा भी ध्यान से सुन लेते हैं, उनको पुण्य की प्राप्ति होती है।