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आध्यात्मिक उत्थान और स्वास्थ्य संरक्षण का व्रत

09:10 PM Jun 26, 2023 IST
आध्यात्मिक उत्थान और स्वास्थ्य संरक्षण का व्रत
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राजेंद्र कुमार शर्मा
हिंदू धर्म और इसकी धार्मिक मान्यताएं एक स्वस्थ जीवनशैली और प्राकृतिक संरक्षण का आह्वान करती है। जिन धार्मिक क्रियाओं को हमने उनके वैज्ञानिक पक्ष को समझें बिना, अंधविश्वास का नाम देकर त्याग दिया, पश्चिम देशों ने उनके वैज्ञानिक पक्ष को समझ, उनका अनुसरण आरंभ कर दिया। हिन्दू पंचांग में पड़ने वाले व्रत, त्योहार को ऋतुओं के अनुसार समायोजित किया गया है। ऋतुओं और व्रत, त्योहारों के बीच के इस सामंजस्य का एक मुख्य उद्देश्य मानव स्वास्थ्य तथा प्रकृति संरक्षण रहा है।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कुछ जगहों पर इसे ‘पद्मनाभा’ भी कहते हैं। इसी दिन से चातुर्मास या चौमासा का आरंभ होता है। इस दिन से भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद देवोत्थानी एकादशी पर उठते हैं। जिसे देवउठनी ग्यारस भी कहा जाता है। चातुर्मास में सभी शुभ-कार्य जैसे यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षा-ग्रहण, यज्ञ, गृहप्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा आदि प्रतिबंधित रहते हैं। पुराणों में इसे हरिशयन या योगनिद्रा कहा गया है। धार्मिक साहित्य के अनुसार हरि शब्द सूर्य, चन्द्रमा, वायु, विष्णु आदि अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है।
वैज्ञानिक दृष्टि से इन चार माह में बादल और वर्षा के कारण सूर्य, चन्द्रमा का तेज क्षीण हो जाता है। शरीर में पित्त स्वरूप अग्नि की गति शांत हो जाने के कारण शारीरिक शक्ति क्षीण या कम हो जाती है। वैज्ञानिकों की खोजें भी दिखाती है कि सूर्य की ऊर्जा के क्षीण होने तथा वर्षा ऋतु में नमी की मात्रा अधिक होने के कारण चातुर्मास्य में कई प्रकार के कीटाणु अर्थात‍् रोगजनित सूक्ष्मजीव उत्पन्न हो जाते हैं। अब चूंकि घरों में संपन्न होने वाला कोई भी शुभ कार्य बिना सामूहिक भोज के पूर्ण नहीं होता और चातुर्मास में जब रोगजनित सूक्ष्मजीवों की संख्या में वृद्धि हो रही होती है तो ऐसे में इस प्रकार के गरिष्ठ भोजन स्वास्थ्य को हानि पहुंचा सकते है। अतः इन चार माह में शुभ कार्यों को प्रतिबंधित माना गया है।
पुराण के अनुसार यह भी कहा गया है कि भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा। इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर बलि को पाताल लोक का अधिपति बना दिया और कहा वर मांगो। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें। देवी लक्ष्मी जी ने बलि को अपना भाई मानते हुए, भगवान विष्णु से बलि को वर देने की प्रार्थना की। तब इसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा वर का पालन करते हुए तीनों देवता 4-4 माह पाताल लोक में निवास करते हैं। विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठानी एकादशी तक, शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक निवास करते हैं।

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देवशयनी एकादशी 29 जून

व्रत का महत्व
आषाढ़ एकादशी को सौभाग्य की एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पद्म पुराण के अनुसार इस दिन उपवास करने से जान-बूझकर या अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है अर्थात‍् रोगों से मुक्ति मिलती है। शरीर उपवास द्वारा स्वस्थ रहता है। इस दिन पूरे मन और नियम से पूजा करने से महिलाओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवशयनी एकादशी का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। चातुर्मास में व्यक्ति अपनी रुचि अनुसार दैनिक व्यवहार के पदार्थों का त्याग करके शुभ फल सुनिश्चित कर सकता है।
पदार्थों के त्याग के पीछे भी वैज्ञानिक तर्क है अर्थात‍् जो पदार्थ वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त नहीं हैं उनका त्याग तथा जो स्वास्थ्य के लिए अच्छे हैं उनको ग्रहण करना चाहिए। त्याग किए जाने वाले पदार्थ जैसे मधुर वाणी के लिए गुड़ का, दीर्घायु के लिए तेल का, सौभाग्य के लिए मीठे तेल का, स्वर्ग प्राप्ति के लिए पुष्पादि भोगों का, पलंग पर सोना त्यागना, झूठ बोलना, मांस, दही, चावल, मूली, बैगन आदि का त्याग कर देना चाहिए।
यदि वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो पाएंगे कि यह पदार्थ वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ही माने गए है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार इस वर्ष आषाढ़ माह की देवशयनी एकादशी 29 जून, मंगलवार को मनाई जाएगी। एकादशी तिथि प्रारंभ 29 जून अपराह्न 3:18 बजे, एकादशी तिथि की समाप्ति 30 जून पूर्वाह्न 2:42 बजे है।

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