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संतानों को संकट से बचाने वाला व्रत

08:53 AM Apr 01, 2024 IST
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आर.सी. शर्मा
राजस्थान और हरियाणा के कुछ हिस्सों में शीतला अष्टमी के व्रत को बसोड़ा भी कहते हैं। क्योंकि चैत्र मास की अष्टमी के बाद घरों में बासी खाना, खाना छोड़ दिया जाता है। इसलिए संकेत के रूप मंे इस दिन मां शीतला को बासी भोजन से ही भोग लगाने की परंपरा है। व्रती महिलाएं एक रात पहले ही तमाम तरह के पकवान बनाकर रख लेती हैं, उनका व्रत भी सप्तमी से ही शुरू होता है जो कि अगले दिन यानी अष्टमी को पूजा के बाद मां शीतला को भोग अर्पण करके पूरा किया जाता है। इस बार शीतला अष्टमी 2 अप्रैल को पड़ रही है। इस दिन माताओं को अपने बच्चों की सुरक्षा हेतु मां शीतला की पूजा-अर्चना करना चाहिए, क्योंकि वे संतानों को सुरक्षित रखती हैं।
शीतला अष्टमी का व्रत आमतौर पर होली के 8वें दिन होता है। इस दिन मां शीतला की पूजा की जाती है ताकि वह सर्दी और गर्मी से होने वाली बीमारियों से बच्चों की रक्षा करे। संक्रामक रोगों से पीड़ित बच्चाें को मां शीतला की कृपा से आराम मिलता है। इसके साथ ही शीतला अष्टमी के व्रत का रिश्ता घर के सुख एवं समृद्ध से भी है। माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से बच्चों को चेचक, खसरा और आंखों की बीमारियां नहीं होतीं। इस दिन मां शीतला को प्रसन्न करने के लिए नीम के पेड़ पर जल चढ़ाना चाहिए। स्कंदपुराण में कहा गया है कि मां शीतला हमें विभिन्न तरह के रोगों से बचाती हैं।
शीतला अष्टमी के दिन व्रत रहने वाली मांओं को मां शीतला को भोग दही, रबड़ी, चावल जैसी रात की बनी चीजों से लगाना चाहिए और इस दिन पूजा के समय शीतला स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। शीतला अष्टमी का व्रत वास्तव में सप्तमी के दिन शुरू हो जाता है, जो कि अष्टमी के दिन पूजा-अर्चना और आरती के बाद खोला जाता है। शीतला माता की जिस मूर्ति के सामने इस दिन उनकी पूजा और आराधना करनी चाहिए, वह उनका वह रूप होना चाहिए, जिसमें मां शीतला अपनी हाथों मंे कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते लिए होती हैं। साथ ही इस दिन मां शीतला को जो कलश समर्पित किया जाता है, उसमें दाल के दानों के रूप में विषाणुनाशक, रोगाणुनाशक, शीतल स्वास्थ्यवर्धक जल मौजूद रहता है।
शीतला अष्टमी के लिए विशेष व्रत रखने वाली स्त्रियों को इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाना चाहिए और परिवार के सभी लोगों को इस दिन बासी भोजन ही करना चाहिए। मां शीतला को ताजा भोजन का भोग नहीं लगाना चाहिए। उन्हें भी बासी बने भोजन का भोग लगाना चाहिए। साथ ही इस दिन घर में झाड़ू भी नहीं लगाना चाहिए। शीतला अष्टमी का व्रत भारत की कृषि परंपरा से गहरे से जुड़ा है। इसलिए इस दिन कुम्हारन को प्रसाद के रूप में घर में बने पकवानों के साथ-साथ कुछ दक्षिणा भी देना चाहिए। माना जाता है कि जब तक दिए गए पकवानों या फलाें में से कुम्हारन कुछ नहीं खाती, तब तक व्रत पूरा नहीं होता। एक तरह से यह व्रत समाज के एक कुम्हार प्रतिनिधि वर्ग की प्रतिष्ठा करता है और इससे समाज में बराबरी का संदेश संचारित होता है।
शीतला माता के भोग में दही, रबड़ी और चावल जरूर होने चाहिए। सप्तमी के दिन जब इस व्रत की शुरुआत करें, उस दिन महिलाओं को मीठे चावल, हल्दी, चने की दाल और लोटे में पानी लेकर पूजा करनी चाहिए। मां शीतला को लोटे से जल अर्पित करना चाहिए और उसमें कुछ जल को अपने ऊपर भी डालना चाहिए। शीतला माता की पूजा दरअसल सप्तमी से ही शुरू होती है और अष्टमी के दिन व्रत खोला जाता है। इसलिए जब व्रत के पकवान या बसोड़ा बनाएं तो व्रत रखने वाली मांओं को नहाकर रसोई बनानी चाहिए। सप्तमी के दिन मां शीतला की पूजा की थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, मीठे चावल, नमक पारे और मठरियां रखनी चाहिए। साथ ही पूजा की दूसरी थाली में आटे का दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, हल्दी और मौली तथा बड़कुल की माला, कुछ सिक्के और मेहंदी रखनी चाहिए। पूजा की थाली में ठंडे पानी का लोटा भी होना चाहिए। माना जाता है कि मां शीतला को नारंगी रंग पसंद है, इसलिए इस दिन नारंगी रंग की साड़ी पहनकर पूजा करना चाहिए।

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