फास्ट फूड यानी पैसा खर्च कर बीमारी मोल लेने वाली बात !
सुनील दीक्षित/निस
कनीना, 10 जुलाई
फास्ट फूड व जंक फूड का प्रचलन दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। इसका व्यवसाय करने वाले लोग भले ही आर्थिक रूप से फल-फूल रहे हों लेकिन इसका इस्तेमाल करने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। फास्ट फूड में शामिल पीजा, बर्गर, चाउमिन, गोलगप्पे, दही-भल्ले, छोले-भटूरे, सैंडविच आदि बच्चों से लेकर जवान तक चाव से खाते हैं। सड़क किनारे धूल-मिट्टी तथा मच्छर-मक्खियों के चंगुल में फंसे इन खाद्य पदार्थों को चटखारे लेकर खाया जा रहा है। लैब टेस्टिंग में भले ही इन खाद्य पदार्थों के नमूने फेल होते हों, लेकिन बच्चों, युवक-युवतियों की नजरों में वे पूर्ण रूप से ‘पास’ हैं। ये खाद्य पदार्थ पैसे खर्च कर बीमारी मोल खरीदने जैसे हैं। एक अनुमान के आधार पर कनीना सब डिवीजन के विभिन्न गावों एवं शहर में फास्ट फूड के करीब 500 बूथ संचालित हैं जबकि जिलेभर में इनकी संख्या 2400 आंकी गई है। इन खाद्य पदार्थों की बिक्री ऑनलाइन भी होने लगी है, जिससे बची-खुची गुणवत्ता भी तार-तार हो रही है।
समय-समय पर लिये जाते हैं सैंपल : डॉ. राजेश वर्मा
फूड सेफ्टी अधिकारी डॉ. राजेश वर्मा ने बताया कि उनके पास महेंद्रगढ़, रेवाड़ी तथा झज्जर जिले की जिम्मेवारी है। फिर भी खाद्य वस्तुओं के समय-समय पर सैंपल एकत्रित कर जांच के लिए लैब में भेजे जा रहे हैं। आमजन के स्वास्थ से खिलवाड नहीं होने दिया जाएगा।
नागरिक अस्पताल नारनौल में कार्यरत डॉ. दिनेश कुमार ने बताया कि फास्ट फूड का इस्तेमाल स्वास्थ पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है। उनकी राय में फास्ट फूड से अपच, गैस की समस्या, लिवर समस्या, मधुमेह, बीपी, बवासीर, हार्ट समस्या, कैंसर, आतों की सफाई न होने की समस्या, दांत-मसूड़ों के खराब होने की समस्या तथा त्वचा रोग सम्ंबधी विकार उत्पन्न हो जाते हैं। इम्युनिटी घट जाती है तथा मोटापा बढ़ने लगता है।
क्या कहते हैं एडीसी
जिले के अतिरिक्त उपायुक्त दीपक बाबूलाल करवा ने बताया कि भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण की देखरेख में फूड सेफ्टी एक्ट लागू है। उन्होंने बताया कि जुलाई माह के प्रथम सप्ताह में महेंद्रगढ में जिलेभर से खाद्य पदार्थों की निम्र गुणवत्ता मिलने पर 4 लाख रुपये का चालान किया गया।