फर्जी खबरें खतरनाक
देश की शीर्ष अदालत ने सोशल मीडिया मंचों और वेब पोर्टल्स पर फर्जी खबरों को लेकर गंभीर चिंता जतायी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मीडिया के एक वर्ग में दिखायी जाने वाली खबरों में सांप्रदायिकता का रंग होने से देश की छवि खराब हो रही है। प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने पिछले दिनों जमीयत उलेमा-ए-हिंद एवं संबंधित अन्य याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहा कि यह बहुत बड़ी समस्या है कि इस देश में हर चीज मीडिया के एक वर्ग द्वारा सांप्रदायिकता के पहलू से दिखायी जाती है। सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणियां विचारणीय हैं और इस दिशा में प्रभावी कदम उठाए जाने की जरूरत है। असल में, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अफवाहों के कई ऐसे दौर चलते हैं, जिनके कारण समाज में वैमनस्य तो फैलता ही है, आपरधिक वारदातें तक हो जाती हैं। अफवाहों या झूठी खबरों को लेकर आज जिस ‘न्यू मीडिया’ की बात की जा रही है, उसका दायरा सिर्फ यूट्यूब, ट्विटर या फेसबुक तक ही सीमित नहीं है। ऐसा मुख्यधारा के मीडिया में भी हो रहा है, खासतौर से कुछ टीवी चैनलों पर। ये चैनल समाचारों को सांप्रदायिक रंग देते हैं। हालांकि केबल टीवी नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम के तहत ऐसे मामलों के लिए वैधानिक तंत्र है, लेकिन उन चैनलों पर नकेल नहीं कसी जा रही है जो दिन-ब-दिन जहर उगलते हैं।
पिछले साल की शुरुआत में कोविड-19 के प्रकोप ने एक ‘सूचना महामारी (इन्फोडेमिक)’ को जन्म दिया। नतीजतन ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर गलत सूचनाओं की बाढ़-सी आ गयी। मार्च, 2020 में दिल्ली में तबलीगी जमात के कोरोना वायरस ‘सुपरस्प्रेडर’ के रूप में सामने आने के बाद पूरे मुस्लिम समुदाय ने खुद को बदनाम-सा पाया। इसी मुद्दे पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपनी याचिका में निजामुद्दीन स्थित मरकज में धार्मिक सभा से संबंधित ‘फर्जी खबरें’ फैलाने वालों पर कड़ी कार्रवाई करने का केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया। केंद्र ने बार-बार तर्क दिया है कि वह ऐसे मामलों में रोक का आदेश जारी नहीं कर सकता। केंद्र का तर्क है, ‘यह कदम नागरिकों को जानने की स्वतंत्रता और एक सूचित समाज सुनिश्चित करने के लिए पत्रकारों के अधिकार को प्रभावी ढंग से नष्ट कर देगा।’ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नियमित सलाह और चेतावनी का प्रभावी निगरानी तंत्र बनाने की जरूरत है ताकि समाज में विष वमन नहीं हो। असल में, विभाजनकारी एजेंडा के साथ प्रसारित या प्रचारित समाचार लोकतांत्रिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करते हैं और इससे जुड़े लोग कानून और व्यवस्था के लिए खतरा बनते हैं। विभाजनकारी और समाज में वैमनस्यता फैलाने वाली सामग्री की पहचान की जानी चाहिए और उसे जबरन हटाया जाना चाहिए। भारत जैसे लोकतांत्रिक और विविधता वाले देश में विभाजनकारी एजेंडा के लिए कोई स्थान होना ही नहीं चाहिए।