For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

Fake Encounter Case : 32 साल पुराने मामले में फैसला, CBI ने तत्कालीन SHO को उम्र कैद व कांस्टेबल को सुनाई 5 साल की सजा

06:39 PM Mar 06, 2025 IST
fake encounter case   32 साल पुराने मामले में फैसला  cbi ने तत्कालीन sho को उम्र कैद व कांस्टेबल को सुनाई 5 साल की सजा
Advertisement

(राजीव तनेजा)
मोहाली 6 मार्च

Advertisement

सीबीआई कोर्ट मोहाली ने वर्ष 1993 में हुए एक फर्जी एनकाउंटर मामले में तत्कालीन एसएचओ पट्टी सीता राम को आईपीसी की धारा 302 में उम्र कैद व दो लाख जुर्माना, धारा 201 में पांच साल कैद व 50 हजार जुर्माना, धारा 218 में दो साल कैद व 20 हजार जुर्माने की सजा सुनाई है। इसी तरह मामले में सीता राम के सह-आरोपी तत्कालीन पुलिस स्टेशन पट्टी में तैनात कांस्टेबल राज पाल को धारा 201 व 120बी में 5 साल कैर व 50 हजार रुपये जुर्माना लगाया है।

कोर्ट ने जुर्माने की डेढ़-डेढ़ लाख राशि मृतक सुखवंत सिंह व गुरदेव सिंह के परिवार को देने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने 3 मार्च को दोषियों को दोषी करार दिया था। घटना के 32 साल बाद सीबीआई कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। वर्ष 1993 में तरनतारन पुलिस ने दो युवकों को मारा हुआ दिखाया था। इस मामले में 11 पुलिस अधिकारियों पर अपहरण, अवैध कारावास और हत्या का आरोप लगा था। पीड़ित परिवारों के वकील सरबजीत सिंह वेरका ने कहा कि सीबीआई ने इस मामले में 48 गवाहों का हवाला दिया था, लेकिन मुकदमे के दौरान केवल 22 गवाहों ने गवाही दी क्योंकि 23 गवाहों की देरी से सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई।

Advertisement

इस तथ्य के कारण कुछ आरोपी बरी हो गए। इसी तरह 4 आरोपी सरदूल सिंह, अमरजीत सिंह, दीदार सिंह और समीर सिंह की मुकदमे के लंबित रहने दौरान मृत्यु हो गई। अंत में मुकदमा शुरू होने के 2 साल के भीतर राकेश कुमार गुप्ता की सीबीआई विशेष कोर्ट ने फैसला सुनाया। 2 आरोपियों को दोषी ठहराते हुए 5 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।

सीबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के आधार पर जांच की जिसमें यह खुलासा हुआ कि 30 जनवरी 1993 को गुरदेव सिंह उर्फ देबा निवासी गलालीपुर जिला तरनतारन को एएसआई नोरंग सिंह प्रभारी पुलिस पोस्ट कैरों तरनतारन के नेतृत्व में पुलिस पार्टी द्वारा उसके घर से हिरासत में लिया गया था। उसके बाद 5 फरवरी 1993 को एक अन्य युवक सुखवंत सिंह को एएसआई दीदार सिंह पुलिस स्टेशन पट्टी जिला तरनतारन के नेतृत्व में पुलिस पार्टी द्वारा गांव बहमनीवाला जिला तरनतारन से हिरासत में लिया था।

बाद में दोनों को 6 फरवरी 1993 को थाना पट्टी के भागूपुर इलाके में मुठभेड़ में मारा गया दिखा दिया। मुठभेड़ की मनगढ़ंत कहानी बनाई गई और थाना पट्टी तरनतारन में एफआईआर दर्ज की गई। दोनों मृतकों के शवों का लावारिस तरीके से अंतिम संस्कार कर दिया गया और उन्हें परिवारों को नहीं सौंपा गया। उस समय पुलिस ने दावा किया था कि दोनों हत्या, जबरन वसूली आदि के 300 मामलों में शामिल थे, लेकिन सीबीआई जांच के दौरान यह तथ्य गलत पाया गया।

वर्ष 2000 में जांच पूरी करने के बाद सीबीआई ने तरनतारन के 11 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र पेश किया था, जिनमें नोरंग सिंह तत्कालीन प्रभारी पुलिस पोस्ट कैरों, एएसआई दीदार सिंह, कश्मीर सिंह तत्कालीन डीएसपी पट्टी, सीता राम तत्कालीन एसएचओ पट्टी, दर्शन सिंह, गोबिंदर सिंह तत्कालीन एसएचओ वल्टोहा, एएसआई शमीर सिंह, एएसआई फकीर सिंह, कांस्टेबल सरदूल सिंह, कांस्टेबल राजपाल और कांस्टेबल अमरजीत सिंह शामिल थे।

वर्ष 2001 में उनके खिलाफ आरोप तय किए गए थे, लेकिन उसके बाद पंजाब अशांत क्षेत्र अधिनियम 1983 के तहत आवश्यक मंजूरी की दलील के साथ आरोपियों की याचिकाओं के आधार पर उच्च न्यायालयों द्वारा मामला 2021 तक स्थगित रहा जिन्हें बाद में खारिज कर दिया गया। हैरानी की बात यह है कि सीबीआई द्वारा एकत्र किए गए सभी सबूत इस मामले की न्यायिक फाइल से गायब हो गए और कोर्ट द्वारा सूचित किए जाने के बाद माननीय उच्च न्यायालय के आदेश पर रिकॉर्ड का पुनर्निर्माण किया गया।

अंत में घटना के 30 साल बाद वर्ष 2023 में पहले अभियोजन पक्ष के गवाह का बयान दर्ज किया गया है। सीबीआई ने इस मामले में 1995 में पारित माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के आधार पर जांच की थी। शुरू में सीबीआई ने प्रारंभिक जांच की और 27 नवंबर 1996 को ज्ञान सिंह नाम के एक व्यक्ति का बयान दर्ज किया। बाद में फरवरी 1997 में सीबीआई ने एएसआई नोरंग सिंह पुलिस पोस्ट कैरों और पुलिस स्टेशन पट्टी के अन्य लोगों के खिलाफ नियमित मामला दर्ज किया था।

Advertisement
Tags :
Advertisement