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फर्जी बिल बने, टेंडर राशि भी होती रही रिवाइज

12:39 PM Jul 04, 2022 IST

दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू

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चंडीगढ़, 3 जुलाई

फरीदाबाद नगर निगम के घोटाले में निगम अधिकारियों व कर्मचारियों के अलावा कई आईएएस अधिकारियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। बड़ी बात यह है कि इस मामले में कुछ अधिकारियों को तो जांच का पार्ट बनाया गया है लेकिन टेंडर प्रक्रिया में हुई बड़े स्तर की धांधली को अंदरखाने दबाने की कोशिश हो रही है। स्थिति यह है कि इस पूरे मामले में न केवल फर्जी बिल पास हुए बल्कि विकास कार्यों के लिए तय टेंडर की राशि को भी कई गुणा तक बढ़ाया गया।

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इसी के चलते यह घोटाला 200 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। निगम के कार्यकारी अभियंता-। की ओर से 26 फरवरी, 2021 को निगम की वित्तीय सविंदा समिति के चेयरमैन को लिखे पत्र में भी यह बात सामने आई है कि वर्क आॅर्डर में टेंडर कार्यों की राशि में बार-बार संशोधन किया गया है। यह चिट्ठी केवल वार्ड-14 के विकास कार्यों से जुड़ी है। इसमें ही करोड़ों रुपये का खेल अधिकारियों ने ठेकेदारों के साथ मिलीभगत करके कर दिया।

इस वार्ड में गलियों में इंटर-लॉकिंग टाइल लगाने के अलग-अलग कामों में यह घोटाला हुआ है। अकेले वार्ड नंबर-14 ही नहीं, फरीदाबाद नगर निगम के तहत आने वाले फरीदाबाद शहर, एनआईटी, बड़खल व बल्लभगढ़ में भी इसी तरह से करोड़ों रुपये की हेराफेरी हुई है। इतना ही नहीं, ऐसे भी कई मामले हैं, जिनमें ठेकेदारों को करोड़ों रुपये का भुगतान तो कर दिया लेकिन ग्राउंड पर ये काम हुए ही नहीं। फिलहाल स्टेट विजिलेंस ब्यूरो द्वारा इस मामले की जांच की जा रही है। अहम बात यह है कि विजिलेंस ब्यूरो ने निगम आयुक्त रहे दो आईएएस अधिकारियों के खिलाफ मुख्य सचिव से नियम-17ए के तहत कार्रवाई करने की अनुमति मांगी है। यहां सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि निगम में यह घोटाला कोई एक दिन में तो हुआ नहीं। इन विकास कार्यों के लिए टेंडर जारी करने से लेकर पेमेंट जारी होने तक कई वर्ष लगे हैं। इस अवधि में नगर निगम आयुक्त भी बदलते रहे।

ऐसे में निगम आयुक्त रहने वाले चुनिंदा अधिकारियों पर ही जांच सीमित करना, बड़े सवाल उठा रहा है। दैनिक ट्रिब्यून के पास इस घोटाले से जुड़े कुछ दस्तावेज उपलब्ध हैं। ये कागजात पूरे निगम के नहीं बल्कि कुछ एरिया के हैं। इन क्षेत्रों में विभिन्न विकास कार्यों के लिए 4 करोड़ 21 लाख 43 हजार 73 रुपये के वर्क आॅर्डर हुए। बाद में इसे रिवाइज करके 22 करोड़ 66 लाख 77 हजार 397 रुपये कर दिया। बात यहीं खत्म नहीं हुई। कुछ काम ऐसे हैं, जिनका रिवाइज एस्टिमेट तैयार करने के दो से लेकर 25 दिन के अंतराल में उन्हें फिर से यानी री-रिवाइज कर दिया गया।

इस तरह से 4 करोड़ 21 लाख रुपये के विकास कार्य आखिर में बढ़कर 29 करोड़ 49 लाख 49 हजार 147 रुपये में पूरे हुए। इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है कि इतनी कम अवधि में ऐसी कौन सी महंगाई बढ़ गई थी कि बार-बार बजट में संशोधन करना पड़ा। अनुमानित लागू राशि में संशोधन करने के अधिकार तो हैं, लेकिन इसके लिए बाकायदा यह तय किया हुआ है कि कितने प्रतिशत तक पैसा बढ़ाया जा सकता है। यहां तो सात गुणा से भी अधिक बढ़ोतरी हुई है।

नियमों ही नहीं, सरकार को भी ठेंगा

निगम के जिन अधिकारियों ने सतबीर सिंह ठेकेदार के वर्क आॅर्डर को दो बार रिवाइज किया, उन्हें न तो नियमों की परवाह थी और न ही सरकार का कोई डर था। नियमों में स्पष्ट है कि निगम आयुक्त के पास किसी भी वर्क आॅर्डर को अधिकतम 10 प्रतिशत तक बढ़ाने के अधिकार हैं। इसमें भी यह शर्त है कि संबंधित कार्य की लागत 1 करोड़ रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए।

एक करोड़ से ढाई करोड़ रुपये तक के कार्यों के लिए मेयर की अध्यक्षता वाली फाइनेंस कमेटी की परमिशन जरूरी है। इससे अधिक राशि के कार्यों की मंजूरी सरकार से लेनी होती है। इन नियमों को पूरी तरह से अनदेखा करते हुए 5 लाख के काम को करीब दो करोड़ तक पहुंचा दिया। स्टेट विजिलेंस ब्यूरो ने भी यह स्वीकार किया है कि वर्क आॅर्डर को रिवाइज व रि-रिवाइज करने में नियमों का उल्लंघन हुआ है और इसमें गबन से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

ऐसे अंजाम दिया घोटाले को

(नोट : ये कुछ उदाहरण हैं। इसी तरह के अनेक कार्य हैं, जिनकी राशि में फरीदाबाद नगर निगम द्वारा कई-कई गुणा तक बढ़ोतरी की गई। आरटीआई के जरिये इस पूरे मामले से जुड़े दस्तावेज जुटाए गए हैं)

ज्यादातर कार्य एक ही ठेकेदार को

अहम बात यह है कि नगर निगम द्वारा सतबीर सिंह नामक एक ही ठेकेदार से ज्यादातर काम करवाए गए। दैनिक ट्रिब्यून के पास पहुंचे दस्तावेजों में से वाटर सप्लाई लाइन से जुड़े एक काम के अलावा बाकी सभी कार्यों का ठेका सतबीर सिंह को दिया गया। वार्ड नंबर-36 की त्रिखा कालोनी में वाटर सप्लाई पाइप लाइन का ठेका एमएल इंटरप्राइजिज को दिया गया, लेकिन इसमें भी बड़ा खेल हुआ। इसके लिए 94 लाख 88 हजार रुपये का वर्क आॅर्डर 3 दिसंबर, 2018 को जारी हुआ। मगर बाद में इसे बढ़ाकर 1 करोड़ 28 लाख 99 हजार रुपये कर दिया गया।

उन पर कार्रवाई नहीं, जिनके समय हुए वर्क ऑर्डर

नगर निगम के इस घोटाले का एक पक्ष यह भी है कि स्टेट विजिलेंस ब्यूरो ने केवल पेमेंट करने वाले आईएएस अधिकारियों के खिलाफ ही नियम-17ए के तहत कार्रवाई करने की इजाजत सरकार से मांगी है। विजिलेंस ने उन अधिकारियों को लेकर अभी तक कोई एक्शन नहीं लिया है, जिनके समय में वर्क आॅर्डर जारी हुए, वर्क आॅर्डर को रिवाइज और रि-रिवाइज किया गया।

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