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फडणवीस सत्ताधीश

04:00 AM Dec 06, 2024 IST

आखिरकार अनिश्चय व अटकलों पर विराम लगाते हुए गुरुवार को भाजपा के दिग्गज नेता देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। सत्ता का खेल देखिए पिछली पारी में फडणवीस मुख्यमंत्री बनने के बाद सरकार में उपमुख्यमंत्री बने थे, वहीं इस बार पिछली बार के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे उपमुख्यमंत्री बने हैं। सत्ता का आंकड़ा पक्ष में न होते हुए भी शिंदे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं पर विराम नहीं लगा पाए। तभी नवंबर में स्पष्ट बहुमत हासिल करने वाले महायुति गठबंधन को दिसंबर में सरकार बनानी पड़ी। चुनाव में तय हुए राजनीतिक कद से इतर शिंदे ज्यादा हासिल करने के प्रयास में सिर्फ शपथ ग्रहण समारोह को आगे ही बढ़ा सके। लेकिन दीवार पर लिखी इबारत स्पष्ट थी कि महायुति की प्रचंड जीत में शिवसेना का शिंदे गुट भाजपा की सीटों के मुकाबले आधी सीटें भी हासिल नहीं कर पाया। फिर भी उनके समर्थक आस लगा रहे थे कि बिहार की तर्ज पर भाजपा फैसला लेगी, जिसमें भाजपा द्वारा ज्यादा सीटें हासिल करने पर भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया था। लेकिन कुछ इंतजार के बाद भाजपा ने एकनाथ शिंदे को बता दिया कि सरकार के नाथ फडणवीस ही होंगे। जाहिर है भाजपा ने राजनीतिक चतुराई से महाराष्ट्र की राजनीति को संचालित करने वाली शिवसेना व राष्ट्रवादी कांग्रेस में विभाजन का लाभ उठाकर खुद को मजबूत स्थिति में ला दिया है। वहीं अपने सहयोगियों को ऐसी स्थिति में ला दिया है कि सत्ता की चाबी किसी एक के हाथ में न रह सके। निस्संदेह, आज देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा ने महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी जमीन मजबूत कर ली है। बहरहाल, हकीकत यही है कि फडणवीस महाराष्ट्र में तीसरी बार मुख्यमंत्री बन गए हैं। लेकिन इस बार उनके सामने पहले से ज्यादा चुनौतियां खड़ी हैं। मुख्यमंत्री के रूप में उनका पहला कार्यकाल अच्छा माना जाता है। राज्य के लोग उनकी सरकार द्वारा किए गए कार्यों को याद करते हैं।
हालांकि, फडणवीस जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो उनके पास राज्य में प्रशासन चलाने का अनुभव नहीं था। लेकिन उन्होंने बखूबी सरकार चलायी। मगर पिछली बार भी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद उद्धव ठाकरे की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते वे मुख्यमंत्री बनने से वंचित रह गए। बल्कि कालांतर उन्हें उपमुख्यमंत्री का पद संभालना पड़ा। लेकिन उन्होंने भाजपा आलाकमान के फैसले को सहजता से स्वीकार किया। जिसका लाभ उन्हें इस बार मिला, जब पार्टी नेतृत्व ने उन्हें प्राकृतिक रूप से मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना। उनकी सफलता के पीछे पहले कार्यकाल में हुए महत्वपूर्ण कार्य भी रहे हैं। जिसमें किसानों के जल संकट को दूर करने वाली जलयुक्त शिविर योजना, मुंबई-नागपुर को जोड़ने वाली पचपन हजार करोड़ की एक्सप्रेस परियोजना व मेट्रो नेटवर्क के विस्तार से भाजपा के जनाधार को बढ़ाने वाला बताया जाता है। लेकिन आज राज्य की आर्थिक स्थिति संतोषजनक नहीं रही। राजकोषीय घाटे को लेकर चिंताएं हैं। बेरोजगारी बड़ी समस्या है। पूंजीगत खर्चों में कमी आई है तो राजस्व भी घटा है। वहीं आने वाले दिनों में मराठा आरक्षण का जिन्न बोतल से बाहर आ सकता है। हालिया विधानसभा चुनाव में जमीन खिसकने से आहत मराठा क्षत्रप इस मुहिम को हवा दे सकते हैं। वहीं ओबीसी वर्ग को फिक्र है कि कहीं उनके हिस्से का आरक्षण मराठाओं को न दे दिया जाए। महायुति गठबंधन ने मराठा आंदोलनकारियों को राहत देने का आश्वासन दिया है। उम्मीद है कि फडणवीस सरकार में शामिल दो मराठा क्षत्रप शिंदे व पवार संकटमोचक की भूमिका निभा सकते हैं। वैसे इस मुद्दे पर अदालत की भी बड़ी भूमिका होगी। फडणवीस सरकार के सामने चुनौती होगी कि हालिया विधानसभा चुनाव में गेमचेंजर बतायी जा रही ‘लाडकी बहिना’ योजना के तहत बढ़ाकर दी जाने वाली बड़ी धनराशि के लिये वित्तीय संसाधन सरकार कैसे जुटाती है। चुनावी वायदे के अनुसार लक्षित महिला समूह को अब पंद्रह सौ के बजाय 2100 रुपये की राशि दी जानी है। वह भी तब जब राज्य के वित्तीय संसाधन सिमटे हैं। वहीं कृषि उत्पादों के पर्याप्त दाम न मिलने से किसानों में खासा रोष व्याप्त है। इन चुनौतियों का मुकाबला फडणवीस सरकार की प्राथमिकता होगी।

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