सच्चाई की अभिव्यक्ति
फ्रेडरिक 1740 से 1786 तक प्रशिया के सम्राट रहे। वह एक कुशल शासक होने के साथ-साथ नाटक लिखने का भी शौक रखते थे। हर सप्ताह नाटक लिखते, अपने दरबारियों को सुनाते, और उनकी वाहवाही लूटते। इससे राजा को बड़ा नाटककार होने का भ्रम हो गया। उसी दौरान प्रशिया में प्रसिद्ध नाटककार वाल्टेयर की ख्याति चरम पर थी। फ्रेडरिक ने वाल्टेयर को अपना नाटक सुनाने के लिए दरबार में आमंत्रित किया। नाटक सुनने के बाद दरबारी वाहवाही करने लगे, पर वाल्टेयर ने साफ कहा कि दरबारी झूठी प्रशंसा कर रहे हैं और नाटक दोयम दर्जे का है। राजा यह सुनकर क्रोधित हुआ और वाल्टेयर को जेल में डाल दिया। कुछ साल बाद राजा ने फिर से वाल्टेयर को नाटक सुनाने के लिए बुलाया, यह सोचकर कि जेल की यातना के बाद वह उसके नाटक की प्रशंसा करेगा। राजा ने नाटक पढ़ना शुरू किया, लेकिन इस बार वाल्टेयर सुनते-सुनते बीच में ही उठ खड़ा हुआ और जेल की ओर चल दिया। फ्रेडरिक ने पूछा, ‘कहां जा रहे हो?’ वाल्टेयर ने जवाब दिया, ‘आपका यह नाटक सुनने से तो जेल की यातना अच्छी है।’ वाल्टेयर की इस निर्भीकता से फ्रेडरिक बहुत प्रभावित हुआ और उसे रिहा करके अपना साहित्यिक गुरु मान लिया।
प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा